आठ प्रकार के बुखार

बुखार (ज्वर)

बुखार सबसे पहले शरीर में होने वाली बीमारियों से पहले इसे इंगित करने के रूप में आता है और उसके बाद ही वे रोग अपने मूल रूप में प्रकट होते हैं।

यहां बुखार के विस्तृत लक्षण दिए गए हैं जिन्हें आयुर्वेद में ज्वर कहा जाता है और इसे ठीक करने के प्रयास यहां प्रस्तुत किए गए हैं।

बुखार की उत्पत्ति और प्रकार

गलत आहार विहार से आमाशय में रह रहे वायु, पित्त और कफ खराब हो जाता है। इस गलत आहार का रस इन तीनों दोषों में विक्षेप डाल कर जठराग्नी को मंद कर देता है। जठराग्नि की गर्मी बहार निकल कर शरीर के सारे अंग को अग्निरूप यानि की उष्ण कर देता हैं जिन्हें हम बुखार के नाम से जानते हैं।

आयुर्वेद में बुखार के आठ प्रकार बताए गए हैं।

1          वायु का बुखार

2          पित्त का बुखार

3          कफ का बुखार

4          वात और पित्त का बुखार

5          वात और कफ़ का बुखार

6          कफ़ और पित्त का बुखार

7          सन्निपात का बुखार

8          आगंतुक बुखार

बुखार के लक्षण

जब शरीर में ज्वर होता है तो शरीर गर्म हो जाता है, पसीना नहीं आता, प्यास नहीं होती, शरीर के सभी अंग कड़े हो जाते हैं, सिर में दर्द होता है, हाथ पैर में दर्द होता है, किसी भी वस्तु में मन नहीं लगता है और व्याकुल सा बना रहता है। यह सभी लक्षणे दिखे तब जानना की उसे बुखार है।

वायु का बुखार के लक्षण

शरीर के अंग कांपते हैं, शरीर सामान्य से अधिक गर्म होता है, गला, होंठ और मुंह सूख जाता है, नींद और छींक नहीं आती है, शरीर शुष्क हो जाता है, सिर में पीड़ा होती है, सारे अंगो में पीड़ा व्याप्त रहती है, मुँह में से स्वाद निकल जाता है, मल नहीं उतरता, पेट में शूल पैदा होती है, पेट में आफरा, जम्हाई बहुत ज्यादा हो, तो जान लें कि यह वात (वायु) का बुखार है।


સન્નિપાત નો તાવ (ત્રિદોષ-સન્નિપાત જવર)1-

सन्निपात का ज्वर (त्रिदोष-सन्निपात ज्वर)

तीनों दोषों के कारण होने वाले ज्वर को सन्निपात ज्वर कहते हैं। पूरी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

सभी प्रकार के बुखार का प्राथमिक उपचार

जिस व्यक्ति को तेज बुखार हो उसे तीन दफा उबाल आए गर्म पानी पिलाए। रोगी की शक्ति को देखकर हल्का उपवास करना चाहिए अथवा पथ्य व हल्का भोजन कराना। अत्यधिक हवा न हो और खराब हवा न आती हो और नमी न हो ऐसी साफ जगह पर रोगी को रखें। सुंदर, मुलायम और पतले वस्त्र अच्छादित बिस्तर पर लिटाए और तीन दिन तक कड़वी और रेचक दवाएं न दें।

ये प्रयास करने के बाद ४ मासा (3.5 ग्राम) सौंठ और ४ मासा (3.5 ग्राम) धनिया का कवाथ (काढ़ा) बनाकर रोगी को पिलाएं ताकि बुखार गायब हो जाए और भूख महसूस हो।

वायु का बुखार के उपाय

हरा चिरायता, नागरमोथा, खस, बड़ी कटेरी, बंगकटिया, नीम की गिलोय, गोखरू, लाल शेवरा,चट्टा की घास, और सौंठ। ये सभी औषध सामान मात्रा में ले के पीसके कवाथ बनाने की विधि से कवाथ बनाकर रोगी को पिलाने से वायु के बुखार का नाश  हो जाता है।

कवाथ (काढ़ा)

सौंठ, नीम की गिलोय, धमासा, जवासा, कालीपाट, कर्चुर, अड़ूसा, अरंडी की जड़ और पोहकर मूल ये सभी औषधिया लेकर पीस कर कवाथ बनाए। इस (काढ़े) कवाथ को रोगी को पिलाने से वायु के कारन आया वातज्वर नष्ट हो जाता है।

हिंगुलेश्वर रस

शुद्ध सिंगरिफ, पिपली और शुद्ध बचनाग लें और खरल में पानी के साथ अच्छी तरह से गूंद लें और आधी रत्ती की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस गोली को दिन में एक बार लगातार क्रमानुसार ५ गोली खाने से वातज्वर का नाश होता है।

कवाथ (काढ़ा)

शतावरी और नीम की गिलोय के रस को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ (काढ़ा) बना लें। इस काढ़े में एक तोला पुराना गुड़ डालकर रोगी को पिलाने से बुखार उतर जाएगा।

काली किसमिस, पिपली, पित्तपापरा और सौंफ ये तीनो औषधिया एक एक तोला लेकर इसका कवाथ बनाके रोगी को पिलाने से वातज्वर का नाश हो जाता हैं।

पथ्य और निर्देश

वातज्वर से पीड़ित रोगी को मूंग, मोठ, मसूर की दाल और कुलथी दाल का पानी पथ्य है।

वायु के बुखार में ७ दिन के बाद कवाथ (काढ़े) का प्रयोग करें।

पित्त का बुखार के लक्षण

आंखों में जलन, मुंह में तीखापन, बढ़ी हुई प्यास, चक्कर आना, बकबक करना, शरीर में गर्मी, तेज बुखार, मल पतला आना, उल्टी, नींद न आना, मुंह का सूखापन और पक जाना, पसीना आना, और मल, मूत्र, और आंखें पीली दिखाई देना, ये सभी लक्षणे हो तब जान लें कि यह पित्त का बुखार (ज्वर) है।

पित्त का बुखार के उपाय

पित्त के बुखार में पित्त को शमन करने वाले औषधिया का प्रयोग करे।

कवाथ

नागरमोथा, धमासा, पित्तपापरा-खस , हरा चिरायता, और नीम की अंतरछाल (अंदरूनी छाल) सभी औषधिया समान मात्रा में लेकर विधि अनुसार कवाथ बनाके पीने से पित्त का बुखार का नाश होता हैं।

किसमिस, कटुकी, अमलतास का गुड़, नागरमोथा, हरड़, और पित्तपापरा इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पित्तज्वर, प्यास, तंद्रा, जलन, बेहोशी, बकबक करना, मुख में सूखापन, चक्कर आना और पित्त का प्रमेह ये सभी रोग ठीक हो जाता है।

पित्तपापरा, नागरमोथा और हरा चिरायता ये सभी औषधि सवा तोला अनुसार लेकर कवाथ बनाकर तीन दिनों तक पीने से पित्तज्वर (पित्त का बुखार) ठीक हो जाता है।

रक्तचंदन, पद्मक, धनिया, नीम की गिलोय, और नीम की अंतरछाल इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पित्तज्वर, जलन, प्यास और उल्टी ये सभी रोग ठीक हो जाते है। और जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।

चूर्ण

1          २ मासा (2 gram)           खेर

2          २ मासा (2 gram)           कटुकी

3          २४ रति (3.25  gram)     मिश्री

4          २४ रति (3.25  gram)     वीरणवालो (a grass-like fragrant root)

उपरोक्त सभी औषधि को लेकर इसका बारीक चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ लेने से पित्तज्वर (पित्त का बुखार) ठीक हो जाता है।

पेय

चंदन काष्ठ २४ रत्ती, और विरणवालो २४ रत्ती लेकर इसका वस्त्रगाळ चूर्ण तैयार कर ले। इस चूर्ण को ६ तोला फ़ालसा के शर्बत में ३ तोला मिश्री मिलाके पिने से पित्तज्वर दूर होता है।

पित्तज्वर का अन्य उपाय

चावल के लावा (popcorn) ​​के पानी में मिश्री मिलाकर पीने से उपद्रव करने वाला पित्तज्वर दूर हो जाता है।

गेहूं के आटे में मिश्री और पानी मिलाकर आग पर अच्छी तरह उबालकर पतली रबड़ी बनाकर पीने से पित्त का बुखार (पित्तज्वर) ठीक हो जाता है।

मीठा अनार का शरबत पीने से पित्तज्वर ठीक हो जाता है।

फालसा के शरबत में सेंधा नमक मिलाकर पीने से पित्तज्वर ठीक हो जाता है।

मूंग की दाल के पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज्वर का नाश हो जाता है।

काली किशमिश के शरबत में मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज्वर ठीक हो जाता है।

मालिश

गुलाब की पंखुड़ियों का पांच से सात सफेद तिल को पुट देकर  उसका तेल निकाल लें। इस गुलाब के तेल से रोगी के शरीर पर मसाज करने से दाहज्वर दूर हो जाता है।

सौ बार या हजार बार पानी से धोए हुए घी से शरीर पर मर्दन (मसाज) करने से दाहज्वर तुरंत ठीक हो जाता है।

नीम के कोमल पत्तों को बारीक कूट लें और उसमें पानी डाल के अच्छी तरह हिलाए ताकि पानी में झाग आ जाए। इस झाग को शरीर पर लगाने (मसाज करने) से या झाग में बेहड़ा मिलाकर शरीर पर मसाज करने से दाह का दर्द तुरंत दूर हो जाता है।

पथ्य और निर्देश

पित्तज्वर होने पर चावल का लावा (पॉपकॉर्न) को मिश्री और दही के साथ पानी में मिलाकर पीने की सलाह दी जाती है।

मूंग से बना यूष से भिगोकर और मिश्री मिलाकर पकाया हुआ चावल खाने से लाभ होता है इसके आलावा पित्त को शांत करने वाला पदार्थो का सेवन हितकारी है। इसके अलावा अन्य अहितकारी है।

पित्त ज्वर के 10 दिन बाद कवाथ (काढ़े) का सेवन करें।

कफ़ का बुखार के लक्षण

जो व्यक्ति को भोजन ऊपर अरुचि होती है, उसका शरीर में जड़ता और रोमांचित व रोम खड़े हो जाता है, नाखून सफेद हो जाते हैं, नींद भारी मात्रा में आती है, शरीर ठंडा हो जाता है, मुंह मीठा सा हो जाता है, बुखार विशेष नहीं होता, आलस्य आती है, सांस लेने में तकलीफ होती है और खांसी और जुकाम होता है तो जानना की उसे   कफ़ का बुखार है।

कफ़ का बुखार के उपाय

कवाथ

नीम की अंतरछाल, सौंठ, नीम की गिलोय, बंगकटिया, पुष्कर की जड़, कटुकी, कर्चुर, अड़ूसा, कायफल, पिपली, और शतावरी इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ (काढ़े) बनाकर पिने से कफज्वर ठीक होता है।

बैंगनी, नीम की गिलोय, सौंठ, और पुष्करमूल इन सभी औषधिया को बराबर मात्रा में लेकर इसका  कवाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से कफ्ज्वर, वातज्वर, और त्रिदोष ज्वर भी ठीक हो जाता है।

बंगकटिया, पिपली, काकराशिंगी, नीम की गिलोय, और अड़ूसा इन सभी औषधिया को २ – २ टांक (4.4 grams) लेकर इसका कवाथ बनाके पिने से कफज्वर, सांस की तकलीफ, खांसी और मन्दाग्नि से छुटकारा मिलता है।

अडूसा का कवाथ पीने से कफज्वर तुरंत दूर हो जाता है।

शितभंजी रस को अडूसा और सौंठ का कवाथ (काढ़ा) के साथ पीने से कफज्वर तुरंत ठीक हो जाता है।

चूर्ण

कायफल, पिपली, काकराशिंगी और पुष्करमूल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्वण बनाले और वस्त्र से छान लें। इस चूर्ण को 1 तोला लें और इसमें शहद मिलाएं। इस मिश्रण को चाटने से कफज्वर, सांस फूलना और खांसी जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

सौंठ, अदरक, काली मिर्च, पिपली, चीता, पिपलामूल, जीरा, काला जीरा, लौंग, इलायची, भुनी हींग, अजवाइन, और बोडीअजवाइन यह सभी औषधिया समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाले और कपडे से छान ले। 1 तोला इस चूर्ण को गर्म पानी के साथ पीने से पाचन शक्ति बढ़ती है, भूख लगती है और कफज्वर दूर हो जाता है।

परहेज

कफ ज्वर से पीड़ित रोगी को थोड़ा थोडा करके उबला हुआ पानी पिलाएं।

12 हल्का उपवास कराना। कफ के बुखार के रोगी, क्षय रोग के रोगी, तेज जठराग्नि वाला, गर्भवती महिलाएं, बच्चे को, बुजुर्ग को, डरपोक या भयभीत हो उसे, प्यासे और दुर्बल रोगियों को उपवास नहीं करवाना चाहिए।

उपवास के बाद मूंग, मोठ या कुलथी दाल का यूष बनाकर पिलाने से लाभकारी और पथ्य है।

गलगल का केसर को सेंधा नमक के साथ देना पथ्य है।

दिन में सोना हानिकारक (कुपथ्य) है।

वात और पित्त का बुखार के लक्षण (वातपित्त ज्वर)

जिन रोगियों को वात और पित्त दोनों दोषो के कारण बुखार आया हो, उन्हें बेहोशी, चक्कर आना, जलन, नींद न आना, सिरदर्द, गला और मुंह सूखना, उल्टी, रोमांच, अरुचि, आंखों में अँधेरा छाना, पूरे शरीर में दर्द, जम्हाई आना, और बकवास करना ये सभी लक्षणे दिखाई पड़ते है। और यदि यह लक्षणे दिखे, तो जान लें कि रोगी को वात और पित्त दोनों दोष से युक्त बुखार है।

वात और पित्त का बुखार के उपाय

कवाथ

बलाबीज (या अतीबला की जड़), नीम की गिलोय, अरंडी की जड़, नागरमोठा, पद्मक, भारंगी, पिपली, खस, और रक्तचंदन, इन सभी जड़ी-बूटियों को ५ – ५ मासा वजन में लें और फिर कूट के इसका कवाथ (काढ़ा) बनाकर सेवन करने से वातपित्त ज्वर से छुटकारा मिलता है।

नीम की गिलोय, पित्तपापरा, हरा चिरायता, नागरमोथा और सौंठ, को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले फिर इसका कवाथ (काढ़ा) बनाकर लगातार उचित मात्रा में पीने से वातपित्त ज्वर ठीक हो जाता है।

नीम की गिलोय, पित्तपापरा, सौंठ, नागरमोथा और अडूसा को बराबर मात्रा में लेकर कूट लेने के बाद इसका कवाथ (काढ़ा) बनाकर उचित मात्रा में रोगी को पिलाने से वातपित्त ज्वर ठीक हो जाता है।

कड़वा परवल, नीम की अंतरछाल, नीम की गिलोय, और कटुकी, इन सभी औषधिया को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ बनाकर पीने से वातपित्त ज्वर दूर हो जाता है।

महुआ, मुलेठी, भोलिया, अनंतमूल, नागरमोथा, और अमलतास का गुड़। यह सभी औषधिया लेकर कूट के इसका कवाथ बनाले और रोगी को इस कवाथ पिलाने से वातपित्त ज्वर दूर हो जाता है।

अन्य उपचार

चावल का लावा (पोपकोर्न) ​​के पानी में मिश्री और शहद मिलाकर पीने से वातपित्त ज्वर ठीक हो जाता है।

सौंठ, काली मिर्च, पिपली, लेकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कपड़े से छान लें। इस चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से वातपित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।

वात और कफ़ का बुखार (वातकफ़ ज्वर)

वातकफ़ ज्वर के लक्षण

 जिस रोगी को खांसी, अरुचि, जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, दर्द, जुकाम, संताप, कांपना, शरीर में भारीपन, अनिद्रा, पसीना, सांस की तकलीफ, पेट में शूल, संवहनी सांप या हंस की तरह वक्र और धीमी चले, पेशाब का रंग धुआँ या सफेद और सुरमा जैसा हो, दस्त का रंग काला और चिपचिपा हो, आँखों का रंग धुएँ के सामान हो, मुख में मीठापन और कषाय रहता है, जीभ काली या सफेद – पानी की तरह सफेद, गले में से कफ़ की आवाजे आए, शरीर को ठंड लगती है, ऐसे लक्षण हो तब यह जानना की रोगी को वातकफ़ दोष लगा है और इसी कारण उसे वातकफ ज्वर आ गया है।

वातकफ़ ज्वर के उपाय

उपरोक्त लक्षणों वाले बुखार के रोगी को 10 दिन तक उपवास करवाना। रोगी को उबलते हुए आधा रह जाए एसा उबला हुआ पानी दें।

कवाथ

हरा चिरायता, नागरमोथा, नीम की गिलोय, और सौंठ, इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर कूट के इसका कवाथ बनाकर पीना चाहिए और इस पर पथ्य पदार्थ का सेवन किया जाए तो किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं होगा।

इस प्रकार के बुखार में यदि निम्न कवाथ (काढ़ा) बनाकर रोगी को पिलाया जाए तो बुखार तुरंत नष्ट हो जाता है।

कायफल, देवदार, भारंगी, बच, नागरमोथा, धनिया, पित्तपापरा, हरड, सौंठ, और करंज की जड़। इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर कूट के कवाथ (काढ़ा) बना लें। इस कवाथ को शहद और हींग के साथ पीने से वातकफ ज्वर (बुखार) दूर हो जाता है और खांसी, हिचकी, शोष, सांस की तकलीफ और गले की तकलीफ आदि दूर हो जाते है।

नागरमोथा, पित्तपापरा, गिलोय, सौंठ, और धामासा यह सभी औषधिया को बराबर मात्रा में लेकर कूट के इसका कवाथ बना के पिने से वातकफ़ ज्वर, उल्टी, जलन, मुख का शोष, आदि दूर हो जाता है।

बंगकटिया, सौंठ,पिपली, और नीम की गिलोय, ये सभी औषधिया को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ बनाकर पिने से वातकफ़ ज्वर का नाश हो जाता है।

लाल शेवरा, चट्टा की घास, बंगकटिया, बड़ी कटेरी, गोखरू, बेलफल की गिरी (गर्भ), अरणी, भद्रपर्णी, अड़ूसा, और पाढ़ल, इस दशमूल का कवाथ (काढा) बनाकर और इसमें पिपली मिलाकर सेवन करने से वातकफ़ ज्वर (बुखार) दूर हो जाता है।

अन्य उपाय

जब यह ज्वर आता है तो मुँह सूख जाता है, तालू सूख जाता है, जीभ खुरदुरी होती है। तब गलगल के केसर में सेंधा नमक और काली मिर्च मिला के चूर्ण बनाले। इस चूर्ण का लेप बनाकर जीभ के ऊपर इस लेप लगाने से मुह और तालु का शोष और जीभ की कठोरता दूर होती है।

हरा चिरायता, नीम की गिलोय, देवदार, कायफल और बच, ये सभी औषधि को समान मात्रा में लेकर कूट के इसका काढ़ा बनाकर पीने से वातकफजवर से छुटकारा मिलता है।

कफ़ और पित्त का बुखार (कफ़पित्त ज्वर)

कफ़पित्त ज्वर के लक्षण

जिस रोगी का मुंह और जीभ कफ से युक्त बना रहे, तन्द्रा, मतली, खांसी, अरुचि, बढ़ी हुई प्यास, शरीर में जलन, ठंड लगना, शरीर में दर्द, सीने में दर्द, चक्कर आना, भूख न लगना, शरीर में जकड़न, हंस और मेंढक के समान नाडी का चलना, लाली के साथ चिपचिपा सफेद मूत्र और मल होता है, आंखें मेंढक की आंखों की तरह हरी पीली होती हैं, मुंह मीठा और कड़वा होता है, जीभ सफेद और थोड़ी लाल होती है, ये सभी लक्षणे दिखे तब जान लें कि रोगी कफ़पित्त ज्वर (बुखार) से पीड़ित है।

कफ़पित्त ज्वर के उपाय

कफ ज्वर के रोगी को 15 दिन तक उपवास करवाना चाहिए और पानी को तब तक उबालना चाहिए जब तक कि चार भाग जल में से साडे तिन भाग पानी जल जाए और आधा भाग पानी रह जाए, उस जल को पीलाए।

कवाथ

नीम की गिलोय, रक्तचंदन, सौंठ, खस, कायफल और दारू हल्दी, इस सभी औषधि को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले और इसका कवाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से कफपित्त ज्वर दूर हो जाता है।

नीम की अंतरछाल, रक्तचंदन, कटुकी, नीम की गिलोय, और धनिया इन सभी औषधिया को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले और फिर इसका कवाथ बनाकर पिने से कफपित्त ज्वर दूर हो जाता है। साथ ही ये कवाथ जनल, अरुचि, प्यास और उल्टी को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।

नीम की गिलोय, इन्द्रजौ, नीम की अंतरछाल, जंगली चिचोण्डा, कटुकी, सौंठ, रक्तचंदन, और नागरमोथा, ये सभी औषधिया लेकर कूट के चूर्ण बनाले और वस्त्र से छान ले। इस चूर्ण को अष्टावेश के पानी (आठवे हिस्से का पानी शेष रह जाये तब तक उबला हुआ पानी) के साथ पीने से बुखार, सांस की तकलीफ, गर्मी, सीने में दर्द और अरुचि ये सभी रोग ठीक हो जाता है। इस औषधि को “अमाताष्टक कवाथ” कहा जाता है।

नीम की गिलोय, बंगकटिया, बड़ी कटेरी, कर्चुर, दारूहल्दी, पिपली, अडूसा, जंगली चिचोण्डा (कड़वा परवल), नीम की अंतरछाल, और हरा चिरायता, इन सभी जड़ी-बूटियों को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले और विधि से उसका कवाथ बनाकर दो वक्त पिने से कफपित्त ज्वर का नाश हो जाता है।

काली किशमिश, अमलतास का गुड़, धनिया, कटुकी, पीपलामूल, सौंठ, और पिपली इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कुटके विधियुक्त कवाथ बनाके दिन में दो वक्त पिने से शूल, भ्रम, मूर्छा, अरुचि, उल्टी, और कफपित्त ज्वर का नाश हो जाता है।

अन्य उपाय

1          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध पारा

2          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध गंधक

3          ५ टांक (22 grams)        काली मिर्च

4          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध टंकण भस्म

ऊपर बताई गई औषधिया लेकर चूर्ण बनाले और कपड़े से छान ले फिर अदरक के रस की ७ भावनाए दे उसी प्रकार पान के रास की ७ भावनाए दे और अच्छी तरह गूंद ले।

इस औषधि की ४ रती वजन के अनुसार ही गोलियां बनालें।

इस औषधि की एक गोली सुबह और एक गोली शाम को नियमित और लगातार ७ दिन तक सेवन करने से कफपित्त ज्वर निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है।

सन्निपात का बुखार (त्रिदोष-सन्निपात ज्वर)

त्रिदोष-सन्निपात ज्वर की उत्पत्ति, निदान, और लक्षणे

उत्पत्ति

जो व्यक्ति बहुत अधिक चिकना, बहुत खट्टा, बहुत गर्म, बहुत मसालेदार, बहुत मीठा, और बहुत अधिक सुखा भोजन करता है, और विरुद्बध आहार करता है, बहुत अधिक खाता है, दूषित पानी पीता है, क्रोधी, रोगग्रस्त महिला के साथ यौन संबंध रखता है। बुरा या कच्चा मांस खाए, और सर्दी, धुप, देश, ऋतु, और ग्रह की स्थिति प्रतिकूल होए तब, ऐसी परिस्थितिया सन्निपात की उत्पत्ति का कारण बनती हैं।

निदान और लक्षणे

सन्निपात के बुखार वाले मरीजों को अचानक दाह-जलन पैदा होती है तो क्षणमात्र में सर्दी लगती है, स्वभाव विपरीत हो जाए, सभी इंद्रियों अपने अपने धर्म को त्याग करता है, पूरे शरीर में गंभीर दर्द, हड्डियों, जोड़ों और सिर में अत्यधिक पीड़ा, आँखे लाल और काली हो जाए और आँसू का आना, कानों में शोर और दर्द महेसुस करना, गला अवरुद्ध हो जाए, तंद्रा, मोह, बकबक करना, खांसी, सांस की तकलीफ, अरुचि, भ्रम, जीभ काली, खुरदुरी और जड़ हो जाए, रक्त युक्त कफ का स्त्राव, दिन में नींद आए और रात में न आना, बहुत पसीना आना या बिलकुल नहीं आना, अचानक रोना या हँसना, गाना, चक्कर आना, बहुत प्यास लगना, सीने में दर्द, पेशाब न आना और अगर आए तो पीला, लाल या काला और थोड़ी मात्रा आए, शरीर कमजोर हो जाता है, गले में कफ़ बजता है, बोलते समय अस्पष्ट वाणी या बिलकुल आवाज न लिकलना,  होंठ और मुंह का पकना, पेट में भारीपन महसूस होना, मल काला और सफेद और सूअर के मांस जैसा होना या फिर मल आता ही नहीं और नाड़ी की गति धीमी और त्रुटक महसूस की जा सकती है।

यदि रोगियों में इस प्रकार के लक्षण दिखाई दें, तो जानना की उन्हें  त्रिदोष कुपित हुआ है और इसी कारणवश उसे सन्निपात ज्वर आया हुआ है।

सन्निपात ज्वर के लिए एक चतुर चिकित्सक को मंत्र, तंत्र, यंत्र, दाहन, दंश और उत्तम जड़ी-बूटियों का उपयोग करके रोगी का उपचार करना चाहिए और उसे काल के मुख से बचाना चाहिए, क्योंकि सन्निपात और मृत्यु में अधिक अंतर नहीं होता है। ऐसे मरीजों को बचाना वैद्य की काल के सामने जीत मानी जा सकती है।

त्रिदोष-सन्निपात ज्वर के उपाय

सन्निपात ज्वर (बुखार) के रोगी को अर्धावशेष पानी (उबालते हुए आधा रह जाए वो पानी), आधा शेर (५०० मिली) पानी में एक टांक सौंठ का पाउडर मिलाकर वो पानी पिलाए। यह पानी किसी ऐसे जल स्रोत से लिया जाना चाहिए जो हल्का और विकार रहित हो और दिन में उबला हुआ पानी दिन में पिलाए और रात में उबला हुआ पानी रातमे पिलाए।

एक समझदार व्यक्ति को सन्निपात के रोगी की देखरेख में रखना।

रोगी को ऐसी जगह पर रखें जहाँ ठंडी हवा की गतिविधि न हो और ठंडा उपचार न करें।

सात दिन के बाद काढ़ा या कवाथ दें।

कवाथ

कायफल, पिपलामूल, इन्द्रजौ, भारंगी, सौंठ, हरा चिरायता, कालीमिर्च, पिपर, काकराशिंगी, पुष्करमूल, रास्ना, बंगकटिया, अजवाईन, बोडीअजवाईन, छडीला, बच, कालीपाट और जंगली कालीमिर्च, इन सभी औषधिया को समान मात्रा में लेकर कूट ले।

इस चूर्ण में से दो टांक लेकर इसका कवाथ बनाकर सुबह-शाम दिन में दो बार पीने से सन्निपात रोग, सभी वस्तुओ का ज्ञान नष्ट हो गया हो, पसीना बहुत आता हो, चित्तभ्रम, पेटशूल, आफरों, और वायु व कफ़ के रोग दूर हो जाते है।

आक की जड़, हरा चिरायता, देवदार, रास्ना, निर्गुण्डी, बच, अरणी, सहजन, पिपली, जंगली कालीमिर्च, चीता, सौंठ, अतिविषा, और भृंगराज, ये सभी औषधिया अध्कचरी कूट ले और इनका कवाथ बनाले। इस कवाथ को सुबह-शाम दो बार पीने से सन्निपात, धनुर्वायु, जबड़े की जकड़न, चित्तभ्रम, सुवारोग, सांस की तकलीफ, खांसी और वायु के रोग ठीक हो जाता है।

चूर्ण

जब सन्निपात से पीड़ित रोगी की जीभ सुन्न हो जाए तो गलगल के केसर, सेंधा नमक और कालीमिर्च का चूर्ण बनाकर फिर लेप बनाले, इस लेप जीभ पर लगाएं ताकि सुन्नता दूर हो जाए।

नस्य (भाप)

बच, मुलेठी का शिरा, सेंधा नमक, कालीमिर्च, और पिपली इन सभी जड़ी बूटियों को लेकर एक बारीक कूट लें, फिर इस चूर्ण को गर्म पानी में डालकर इस पानी के भाप का नस्य लेने से सन्निपात के जिन रोगी का ज्ञान नष्ट हो गया हो उसे फिर से ज्ञान प्राप्त होता है।

1          ५ टांक (22 gram)         शुद्ध पारा

2          ५ टांक (22 gram)         शुद्ध गंधक

3          १० टांक (22 gram)        त्रिकटु (सौंठ, कालीमिर्च, और पिपली)

पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को मिलाकर कज्जली बनाले इसके बाद धतूरा के बिज के रस की ३ भावनाए देके एक दिन तक खरल करे।

फिर बारीक कटा हुआ त्रिकटु डालकर अच्छी तरह मिला लें। इस रस का नस्य देने से रोगी का सन्निपात रोग मिट जाता है। इस रस को उन्मत रस कहा जाता है।

भैरवांजन रस (अंजन)

1          10 टांक (44 grams)      शुद्ध जमालगोटा

2          1 टांक (4.4 grams)       कालीमिर्च

3          1 टांक (4.4 grams)       पिपलामूल

उपरोक्त तीनों जड़ी-बूटियों को जाम्बीरी (एक प्रकार का खट्टा नींबू) के रस में ७ दिन तक खरल करे उसके पश्च्यात आंखों में अंजन करने से सन्निपात नष्ट हो जाता है।

शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, कालीमिर्च, और पिपली ये सभी औषध समान मात्रा में ले इससे तिन गुना वजन में शुद्ध जमालगोटा लें।

सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक की कज्जली बनाले। इस कज्जली में काली मिर्च, पिपली और जमालगोटा मिलाकर गुंदले। उसके बाद जाम्बीरी के रस में ८ दिन तक खरल करके इस रस का अंजन करने से सन्निपात नष्ट हो जाता है। इस रस को भैरवांजन रस  कहते हैं।

सिरस के बीज, पिपली, काली मिर्च, सेंधा नमक, लहसुन, मनशील और बच, इस सभी औषधिया समान मात्रा में लेकर बारीक कूट के इसे गौमूत्र में एक दिन तक खरल करके इस रस का आँखों में अंजन करने से सन्निपात का नाश हो जाता है।

पंचवत्क्र रस

1          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध पारा

2          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध गंधक

3          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध बचनाग

4          ५ टांक (22 grams)        शुद्ध टंकण भस्म

5          ५ टांक (22 grams)        काली मिर्च

सबसे पहले पारा और गंधक की कज्जली बना ले। फिर अन्य जड़ी-बूटियां डालकर धतूरे के बीजों के रस में एक प्रहर तक खरल करे। इस औषधि को सुखाकर दो रती के वजन के बराबर लेकर सेवन करे। इस औषध के सेवन से भयानक सन्निपात दूर हो जाता है।

यह औषध लेंने के बाद और दही चावल का आहार करे। इस रस को पंचवत्क्र रस कहते हैं।

स्वच्छंद भैरव रस

1          ४ टांक (17.6 grams)     शुद्ध पारा

2          ४ टांक (17.6 grams)     शुद्ध गंधक

3          ४ टांक (17.6 grams)     शुद्ध बचनाग

4          ३ टांक (13.2 grams)     जायफल

5          ७ टांक (30.8 grams)     पिपली

सबसे पहले पारा और गंधक की कज्जली बनाले। फिर बाकी जड़ी बूटियों को कूटके इस तैयार की गई कज्जली में मिलाए। इस मिश्रण को अदरक के रस में एक दिन तक घोटना और फिर एक रती वजन के बराबर की गोलिया बनाले।

इस औषध की एक गोली या एक रति लेने से सन्निपात ज्वर (बुखार), मलेरिया, हैजा, मिर्गी, विषम ज्वर, पुराना बुखार, मन्दाग्नि, और सिर के दर्दनाक रोग ठीक हो जाते हैं। इस रस को स्वच्छंद भैरव रस कहा जाता है।

भयानक सन्निपात के उपाय

शुद्ध पारो, शुद्ध बचनाग, कालीमिर्च, निलाथोथा, और नौसादर, इस सभी औषधि को बराबर मात्रा में लेकर बारीक़ कूट लें। फिर इसे धतूरा और लहसुन के रस में मिलाकर रोटी बनाकर रोगी के सिर पर (रोगी के सिर के बाल हटाने के बाद) बांध दें।

इस रोटी को एक प्रहर तक सिर पर रखें। यदि रोगी को गर्मी का अनुभव हो और वह शुद्धि में आ जाए तो रोगी जीवित रहता है लेकिन यदि उसे गर्मी नहीं लगती है तो वह जीवित नहीं रहेगा।

लहसुन, राई और अमलतास की जड़ को लेकर गाय के मूत्र में बारीक कूट लें। इस औषध की रोटी बना लें। रोगी के सिर के बाल उतरवा कर बचनाग के चूर्ण को सिर पर मलने के बाद इस रोटी को सिर पर बांधकर एक प्रहर तक रख दें।

यदि रोगी को इस औषध के प्रयोग से गर्मी का अहेसास हो और होश आता है तो रोगी जिंदा रहेगा अन्यथा जीवित नही रहेगा।

गंभीर सन्निपात के रोगी को बिच्छू का डंक मारने से सन्निपात ठीक हो जाता है।

काला सांप काटने से सन्निपात के रोगी को होश आता है।

हालांकि ये उपाय सबसे अच्छे हैं, लेकिन इन्हें न करें क्योंकि ये लोक के खिलाफ हैं।

पैरों के तलवों में, दोनों भौंहों के बीच में या माथे में लोहे की छड़ को बहुत गर्म करके दाहन करे, ताकि सन्निपात नष्ट हो जाए।

आगंतुक बुखार (आगंतुक ज्वर)

उत्पत्ति

आगंतुक बुखार का एक-एक करके वर्णन करना संभव नहीं है क्योंकि यह कई तरह से होता है। इसलिए हमने सभी पहलुओं को कुछ में और यदि संभव हो इतना कवर करने का प्रयास किया है।

किसी शस्त्र का प्रहार लगने से अर्थात पत्थर, लाठी, लात, तलवार या किसी धारदार अस्त्र, की चोट लगने से, काम, क्रोध, शोक, भय या भूतादि के आवेश से, शत्रु द्वारा किए गए मंत्र-तंत्र से, ब्राम्हण, गुरु, वृध्ध, सिद्ध आदि महानुभावो के श्राप से,  विष खाने से, ज्वर के रोगी या जहरीले पौधों के संपर्क में आने से, और दुर्गंधयुक्त या ख़राब स्वाद की औषधिया से उत्पन्न होने वाला ज्वर को आगंतुक ज्वर (बुखार) कहते हैं।

दोषों (वात-पित्त-कफ) आगंतुक बुखार का कारण नहीं है क्योंकि यह दर्द के कारण होता है लेकिन बुखार की उत्पत्ति के बाद दोषों इसके साथ संबंधित होता है (ज्वर के साथ दोषे मिल जाता है)।

शस्त्रादि की चोट लगने पर उत्पन्न हुए बुखार (ज्वर) के लक्षण

शस्त्र लगने से दर्द उत्पन्न होता है और दर्द के कारण वायु कुपीत होता है, यह कुपीत वायु रक्त को बिगाड़ कर पीड़ा उत्पन्न कर देती है और उस जगह में दर्द और सूजन का कारण बनती है साथ ही शरीर के घायल हिस्से का रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार वायु के सम्बन्ध से ज्वर उत्पन्न होता है।

उपाय

एसे बुखार के रोगियों को उपवास (लंघन) नहीं करवाना चाहिए। कडवी और गर्म चीजों का योग न करें (ऐसी चीजे न दे)। मीठे और चिकने पदार्थों खिलाए। प्रभावित जगज पर सेंकना। यदि कोई गहरा या विशेष घाव है, तो टीचिंग करवाए और उपयुक्त पट्टी लगाएं।

काम, क्रोध, शोक, भय, और भूतादि के आवेश से उत्पन्न हुए ज्वर के लक्षण

कामज्वर

मनोवांछित स्त्री या पुरुष के न मिलने से या काम का वेग से जो ज्वर आता है उसे कामज्वर कहते हैं। इस बुखार के कारण मन अस्थिर होता है, आंखों बंध हो जाए, शारीर में सुस्ती, भूख न लगना और अंत:करण में पीड़ा होती है। अनिद्रा, जलन, बेहोशी, बदन में दर्द, आंखें चपल रहती हैं और शर्म, धैर्य और बुद्धि का नाश होता है। वारंवार प्यास लगती है और अक्सर नि:श्वास भरता है।

उपाय

मनचाही स्त्री या पुरुष की प्राप्ति और यदि वह स्त्री या पुरुष भोग वस्तुओं के साथ अपने प्रिय पात्र के साथ हास्य विलास में संलग्न रहता है, तो कामज्वर समाप्त हो जाता है।

सुंदर नौयौवना, चपल तेज आँखों वाली, तंग और गोल ऊंचे स्तनों वाली सुंदर युवती, सोलह वर्षीय यौवना के साथ, और यौवना को मनोवांछित सुडौल पुरुष के साथ, यौन संबंध में संलग्न रहेना ताकि काम के वेग से पैदा हुआ बुखार नष्ट हो जाए।

भयज्वर/शोकज्वर/क्रोधज्वर

भय या शोक के कारण होने वाला बुखार में बकवा होता है। दस्त, भूख न लगना और चित्त की अस्थिरता होती है। इस बुखार को भयज्वर या शोकज्वर कहते हैं।

क्रोध से उत्पन्न हुए बुखार के लक्षणों में कंपकंपी, सिरदर्द होता है, साथ ही पित्तज्वर के लक्षण दिखने में आता हैं। इस बुखार को क्रोधज्वर कहते हैं।

उपाय

भय और शोक से पीड़ित रोगियों को सुंदर कहानियाँ सुनाना। जिस प्रकार का भय उत्पन्न हुआ है उस भय को किसी भी प्रकार से समाप्त किया जाना चाहिए ताकि बुखार दूर करने में सहायता मिले।

क्रोध ज्वर वाले रोगी को मीठी-मीठी बातें कहने से और बाते पर प्रेम बढ़ाने वाला वचनों से क्रोध ज्वर दूर हो जाता है।

भूतादि के आवेश से उत्पन्न हुए बुखार

भूतादि के आवेश से जिसको बुखार आया हो उसे उद्वेग, हँसी, रोना, कांपना और चित्त की अस्थिरता आदि लक्षण दिखाई पड़ते है। इस ज्वर को भुतज्वर कहते हैं। कुछ ऋषियों के अनुसार इस ज्वर (बुखार) को विषम वेग के कारण विषमज्वर में गिना जाता है।

उपाय

भुतज्वर के रोगी का इलाज मंत्र, तंत्र, यंत्र और नास या अंजन के योग से करना। खुद के धर्म के अनुसार अपने धर्म के मुताबिक उपाय करने चाहिए।

अभिशाप (श्राप) और मानस ज्वर

अभिशाप (श्राप) से आया हुआ ज्वर मोह और प्यास को उत्पन्न करता है। ऐसे रोगी को तीव्र शौच होता है। हर चीज पर ग्लानी की भावना पैदा होती है। दस्त, बेहोशी, भ्रम, जलन, और मन तप्त होता है।

मानसज्वर का अर्थ है पुत्र, मित्र, पत्नी, धन और मनचाही वस्तु के नाश से उत्पन्न होने वाला ज्वर। इस बुखार में ऊपर बताए गए लक्षण भी दिखाई देते हैं।

उपाय

इस प्रकार के ज्वर में अपने धर्म के अनुसार ईश्वर की आराधना करना सर्वोत्तम होता है। इस प्रकार का ज्वर धैर्य धारण करने, मन को भाए ऐसा मीठा, मिष्टान्न और रुचिकर भोजन और अति स्वादिष्ट सब्जियां खाने से ठीक हो जाता है।

औषधिया में ख़राब के उग्र गंध

औषधि में तेज या खराब गंध या औषध के खराब स्वाद के कारण आया हुआ बुखार में बेहोशी, माथे में दर्द, उल्टी और छींक का आना इत्यादि लक्षणे दीखते है।

उपाय

इस बुखार को दूर करने के लिए सुंदर और स्वादिष्ट औषधिया का उपयोग करना, रुचिकर व्यंजनों और इत्र आदि सुगंधी द्रव्यों के प्रयोग से राहत मिलती है।

विष के कारण हुआ बुखार

जहर के कारण होने वाले बुखार में मुख काला पड़ जाए, शरीर में जलन, भोजन के ऊपर आभाव, दस्त, प्यास, शरीर में दर्द और बेहोशी होती है।

उपाय

इस ज्वर में विषों को नष्ट करने वाले तथा विष नष्ट करने वाले प्रयोग करना।

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