गर्भ के बारे में सार्थक जानकारी
गर्भ क्या है?
सर्वे प्राणिका अवतरण का आधार भ्रूण यानि गर्भ है। भ्रूण की उत्पत्ति का स्थान मासिक धर्म वाली महिला है। भ्रूण भविष्य के अवतार का पूर्व रूप है।
12 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं में योनि स्राव प्रत्येक माह के दौरान एक निश्चित अंतराल पर 3 से 5 दिनों तक रहता है और महिला शरीर की प्रकृति के अनुसार होता है। ऐसी महिला को मासिक धर्म वाली महिला कहा जाता है।
ये वो दिन हैं जब मासिक धर्म वाली महिला गर्भधारण कर सकती है। इस समय को ऋतुकाल कहते हैं। यह ऋतुकाल सोलह रातों की होती है। महिलाओं के लिए गर्भधारण के लिए इन दिनों को सबसे अच्छा दिन कहा जाता है।
महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पालन करने के नियम:
जब एक महिला को मासिक धर्म होता है, तो उसकी योनि और अंडरवियर खून से भिगाहुआ सा हो जाते हैं। यह ऋतुकालका (मासिक धर्मका) मूल रूप है।
मासिक धर्म के दिन से लेकर मासिक धर्म के दौरान स्त्री को हिंसा नहीं करनी चाहिए, दुखी नहीं होना चाहिए, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए, परपुरुषों की ओर नहीं देखना चाहिए, जमीन पर सोना चाहिए, नाखून नहीं काटना चाहिए, सिर पर तेल और आंखों में काजल नहीं करना चाहिए। शरीर के ऊपर किसी भी प्रकार का सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
आंखों में आंसू लाने वाली हर चीज का त्याग करें। दिन में न सोएं, न दौड़ें और न ही व्यायाम करें, शोरगुल वाले माहौल में न रहें और जोर से बात न करें या जोर से हंसें मत।
यात्रा न करें, जमीन की खुदाई या खुरेदने का काम न करें, सेक्स न करें और ज्यादा चलने वाली हवा में न रहें।
मासिक धर्म के दौरान नियमों का पालन न करने वाली महिलाओंको होनेवाला नुकसान
यदि मासिक धर्म वाली महिला इन दिनों अनजाने में या गलती से नियमों का पालन नहीं करती है और बताए गए कर्म नहीं करती है, तो यह गर्भ को प्रभावित कर सकता है और गंभीर परिणाम दे सकता है।
मासिक धर्म वाली महिला के रोने से गर्भ को नेत्र रोग होता है। तेल मलने से कुष्ठ और अन्य त्वचा रोग होते हैं।
नाखून काटने से खराब नाखून वाला गर्भ हो सकते हैं, शरीर पर विलोपनों करनेसे और नहाने से गर्भ दुखी स्वभावका हो सकता हैं।
दिन में सोने से गर्भ आलसी और नींद से भरे और शोर से बहरे हो जाते हैं। हंसने से तालू, दांत, जीभ और होंठ लाल सा हो जाते हैं।
ज्यादा बोलने से गर्भ बकवास करने वाला, मेहनत करने से पागलपन वाला और खुदाई या जमीन खुदेरनेसे ठोकर खाने वाला हो सकता है। बहुत ज्यादा हवामे रहने से गर्भकों दीवाना बना सकता है।
मासिक धर्म के बाद महिला का कर्तव्य
माहवारी के बाद रजस्वला स्त्रीको आनंदित होकर, विकार से मुक्त होकर, ईश्वर आज्ञा से, भगवान का पूजन करके, इष्टदेव का पूजन करके और श्रद्धा पूर्वक अपने पति की सेवा में उपलब्ध बनना चाहिए।
स्त्री के गर्भाशय में मासिक धर्म के बाद वीर्य और आर्तव जमा हो जाता है और गर्भधारण के बाद उसके पति का मुंह दिखनेसे जो बच्चा होता है, वही पिता के समान अवतरीत होता है।
जिस दिन से रक्तस्राव होता है उसी दिनसे 16 रातों का ऋतुकाल कहा जाता है। यानि के महिला की योनि का द्वार 16 दिनों तक खुला रहता है। इसका मतलब है कि इन दिनों में एक महिला गर्भधारण कर सकती है।
रक्तस्राव के दौरान संभोग वर्जित है। इसलिए जब रक्तस्राव रुकने लगे, तो अगले कुछ दिनों के बाद में कामक्रीडा मे रत हो जाना चाहिए।
ब्लीडिंग के दौरान संभोग करने से भ्रूण तो नहीं रहता लेकिन महिला और खासकर पुरुष को ज्यादा नुकसान होता है।
गर्भधारण के बाद के लक्षण
गर्भवती होने के बाद महिला को योनि से रक्तस्राव या डिस्चार्ज नहीं होता है। शरीर थका हुआ महसूस करता है और शरीर कठोर और तनावग्रस्त महसूस करता है। प्यास लगना, मिचली आना और योनि के मुड़ने पर जानना चाहिए की स्त्री गर्भवती होगी।
गर्भवती महिला के दोनों निप्पल के लक्षण काले या बैंगनी काले रंग के होते हैं, आंखों में मिचली आती है, हल्का खाना खाने के बावजूद उल्टी होती है, शरीर तैलीय रहता है और अंग सूख जाते हैं, आदि लक्षणे गर्भवती मे दिखे जा सकते है।
गर्भके विकासका क्रम
गर्भ रहने और उसमें अंगों और उपांगों का सर्जन होने का मूल कारण और कुछ नहीं बल्कि ईश्वर की आज्ञा है। गर्भ में अंगों और उपांगों के निर्माण में जो गुण या दोष उत्पन्न होते हैं, वे धर्म-अधर्म के अनुसार नियति के कारण होते हैं।
पहला दांत बाहर गिर जाता है और दूसरा दांत गिरने के बाद नहीं बढ़ता, हाथ पैरों के नीचे बाल नहीं होते, यह सब दैवीय प्रकृति के कारण होता है।
- पहले महीने में, वीर्य और आर्तव भ्रूण में वैसा ही पड़ा रहता है जैसे मूलरूपमे हो, यानि की तरल रूप में रहते हैं।
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दूसरे महीने में वो तरल पदार्थ वात, पित्त, और कफ के साथ पककर द्रव गाढ़ा हो जाता है।
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तीसरे महीने में दो अंग दो हाथके, दो अंग दो पैरके, और एक सिर, ऐसे पांच पिंड और सूक्ष्म अंगो का सर्जन होता हैं।
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चौथे महीने में प्रत्येक अंग स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे एसा बनता है। चूंकि हृदय भी चौथे महीने में होता है, इसलिए इन दिनों में उसमें चेतना भी स्पष्ट हो जाती है।
चूंकि इस मास के दौरान भ्रूण में चेतना होती है, इसलिए वह कई तरह की चीजों की इच्छा रखता है। उस समय एक महिला के दो दिल होते हैं (एक उसका अपना और एक भ्रूण का दिल) इसलिए गर्भवती महिला को दोहरे दिल वाली महिला कहा जाता है। इस समय गर्भवती महिला की हर मनोकामना पूरी करनी चाहिए।
इन दिनों में गर्भवती महिला की जो भी मनोकामना होती है उसे पूरी करनि चाहिए। इसकी उपेक्षा करने से स्त्री अपंग, लंगड़ा, शारीरिक अशक्त, अंधी, या विकृत संतान को जन्म देती है।
इस समय गर्भवती महिला की खाने-पीने की सभी इच्छाओं को पूरा करने से, महिला एक वीर और लंबे समय तक जीवित रहने वाले पुत्र को जन्म देती है।
- पांचवें महीने में गर्भ में मन का उदय होता है।
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छठे महीने में गर्भस्थ शिशु में बुद्धि के प्रति जागरूकता पैदा होती है।
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सातवें महीने तक, सभी अंग अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं।
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ओज आठवें महीने में फैलता है। इस मास के दौरान, जीव समय-समय पर बच्चे और मां में प्रवेश करता है। तो गर्भवती महिला और अजन्मे बच्चे दोनों को अक्सर खुशी और दुख का अनुभव होता है। साथ ही आठवें महीने में अगर कोई बच्चा ओज के बिना पैदा होता है तो वह जीवंत नहीं रहता है। क्योंकि इस माह में ओज स्थिर नहीं रहता है।
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नौवें महीने में, दसवें महीने में, ग्यारहवें या बारहवें महीने में भी महिला बच्चे को जन्म देती है। यदि कोई विकार है, तो ज्यादा दिन भी बीत जाते हैं।
संतान संबंधी
संतान के संबंध में धारणाएं
पति-पत्नी और परिवारमे शामिल लोगों की अपेक्षा है कि उनके परिवार में गुणोंसे पूर्ण, शीलवान,अच्छे, सभ्य, लंबे समय तक जीवित रहने वाले, स्वस्थ बच्चे हों। कई परिवार इस बात से चिंतित हैं कि पारिवारमें आनेवाले नवजात शिशु, कुलदीपक कैसा होगा।
और इस संबंध में परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी मानसिकता के अनुसार अवधारणाएँ बनाते रहते हैं। लेकिन सच तो यह है कि ऐसा होनहार बच्चा इस तरह पैदा नहीं होता।
इसके लिए थोड़ा संयमी जीवन, थोड़ी तपस्या, थोड़ा विश्वास, थोड़ा धैर्य चाहिए। एक बच्चा उतना ही योग्य होगा जितना कि एक युगल का संयम पूर्ण जीवन। तो आइए जानते हैं कुछ नियमों के बारे में।
उत्तम संतान प्राप्ति के लिए उचित नियम
1 संयम बरतें
पति-पत्नी को चाहिए कि देह सुख को गौण मान लें, अर्थात बन पाए तब तक संभोग न हो जाए यानि की संभोग से बचना चाहिए। साल में एक बार सेक्स करना। न हो सके तो महीने में एक बार ही सेक्स करें।
२ व्यसन
यह आज की एक विकराल समस्या है। किसी भी तरह का नशा आपके सपनों पर पानी फेर सकता है। व्यसन आपके किसी भी संकल्प को पूरा न होने देगा, जिसके परिणामस्वरूप पछतावे के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। तो अपनी उज्ज्वल पीढी के सुवर्णकाल के लिए कोई भी व्यसन चाहे छोटा हो या बड़ा, उसे छोड़ दो।
3 अदरक
अदरक एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। अदरक का उपयोग कैंसर जैसी बीमारियों में भी किया जाता है। अदरक का छिलका उतारकर छोटे छोटे टुकडेमे काट ले, इस टुकडोमे निम्बुके रस निचोड़ कर उसे सूखने के लिए रखदो। सूखने के बाद कांच की बोतल में भरकर रख लें।
जब भी आप नशे की लत के बारे में सोचें तो अदरक का एक टुकड़ा अपने मुंह में रख लें। ऐसे करनेसे नशा छूट जाएगा। इतना ही नहीं आप की संकल्पकी शक्तिओमे सुधार होंगे।
4 योग और प्राणायाम
नियमित रूप से प्राणायाम और योग करें। योग और प्राणायाम शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी स्वस्थ और स्फुर्तीला रखते हैं। इतना ही नहीं यह आपके शुभ संकल्पों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता है।
5 नियमितता रखे
पूरा दिन के लिए दैनिक समयपत्रक बनालो जिसमे आप अपनी नियमितता रखे।
6 आहार
पौष्टिक, संतुलित और सादा भोजन करें। चिड़चिड़े और गर्म और मसालेदार भोजनसे और लम्बे समय तक उसका सेवनके परिणाम हानिकारक होते है। इसलिए सावधान बने रहो।
प्रसव के बाद महिला को पालन करनेका उचित नियम
प्रसवोत्तर महिलाको उचित आहार-विहार का पालन करना चाहिए। थकान महेसूस हो एसा सख्त काम न करें। मैथुन करना, ठंडी वस्तुओं, बासी खाद्य पदार्थ, फास्ट फूड और जंक फूड्स, ये सब प्रसूता महिला के लिए हानिकारक हैं।
भोजन पाचन न हों और अजीर्ण हो एसा खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। अजीर्ण हो तब भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि एससे सुवारोग होना संभव है।
हवा वाले स्थान पर न बैठें, खट्टे और नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन न करें, ऐसा व्यवहार न करें जिससे दोषे कुपित हो, विपरीत भोजन न करें आदि नियमो का पालन विवेकपूर्ण आचरण करना चाहिए। विवेकपूर्ण तरीके से नियमों का पालन करने से आप बीमार और दूसरी समस्याएं होने से बचेंगे ।
यदि कोई प्रसूता महिला अपने आहार विहार में कोई गलती करती है तो उससे होने वाली बीमारी काफी मुश्किलों और मेहनत से समाप्त होती है। इसलिए प्रसवोत्तर महिलाओं को परहेज रखना और आहार का पालन करना चाहिए।
प्रसवोत्तर महिला को एक महीने तक नियमित आहार पर होना चाहिए जब दूषित खून बहना बंद हो जाए और वह शुद्ध हो जाती है तब तक।
प्रसूता महिलाओं को शुद्ध होने के बाद एक माह तक घी का सेवन करना चाहिए। बिना पेट भरे छोटे-छोटे भोजन करें। और नियमित शेक और तेल का मालिश करना चाहिए।
मातृत्व धारण करने वाली महिलाओं को शिशु को जन्म देने के बाद चार महीने तक नियमों का पालन करना चाहिए।