पतलेपन के उपाय

पतलेपन के उपाय (दुबले शरीर को पुष्ट बनाने के लिए)

शरीर का पतले होने का कारण

वायु उत्पन्न हो एसा और सूखे भोजन का सेवन करने से, बहुत अधिक उपवास करने से, बहुत कम खाने से, बार-बार उल्टी या रेच की क्रियाए करने से, शोक करने से, चिंता करने से, भय लगने से, आदि के कारण से, अत्यधिक संभोग करने से, मल-मूत्र और निंद्रा आदि का वेग रोकने से, लंबे समय तक बीमार रहने से, बहुत अधिक व्यायाम करने से, और बहुत अधिक जागने से, व्यक्ति का शरीर अत्यंत कमजोर और दुर्बल हो जाता है। आयुर्वेद में इस रोग को कार्श्य रोग (पतलापन) कहा जाता है।

अत्यधिक दुबलेपन के लक्षण

जिस व्यक्ति के कूल्हे, होंठ और गर्दन शुष्क दिखाई देते हैं, शरीर के ऊपर की नसें स्पष्ट रूप से दिखाई देती हो एसा पतला शरीर हो, जिस व्यक्ति के शरीर में केवल त्वचा और हड्डियां ही बचा हो, जो व्यक्ति में जोड़ और सिर अन्य उपांगों की तुलना में बड़े और मोटे दिखाई देते हैं, एसा व्यक्ति अत्यंत दुर्बल कहलाता है।

अत्यधिक दुबलेपन से होने वाले रोग

जब कोई व्यक्ति बहुत कमजोर हो जाता है, तो वह तिल्ली, खांसी, सांस की तकलीफ, आफुल्लन, बवासीर, पेट के रोग, कब्ज और आफरा जैसे रोगों का आक्रमण शीघ्रता से आने की सम्भावना है।

दुर्बल लेकिन बलवान होने का कारण

गर्भाधान के समय जिस व्यक्ति के पिता के वीर्य का बड़ा हिस्सा व वसा (मेंद) का हिस्सा कम रहा हो, तब इससे पैदा हुआ बालक दिखने में कमजोर (दुर्बल) होने के बावजूद बलवान होता है।

मोटा किन्तु बलहीन होने का कारण

गर्भाधान के समय पिता के वीर्य का भाग कम और वसा का भाग अधिक होता है तब इससे जन्मा बालक शरीर से तो पुष्ट दिखाई देता है किन्तु वे बल विहीन हो सकता है।

दुर्बलता दूर करने का उपाय

घी, दूध, मांस, आदि जैसे खाद्य पदार्थ और अश्वगंधा जैसी जड़ी-बूटियाँ शरीर की धातुओं को मजबूत करती हैं और शक्ति और वीर्य को बढ़ाती हैं। ऐसे खाद्य पदार्थों और औषधो के सेवन से दुर्बलता (कमजोरी) दूर होती है।

चंद्रोदय रस

1          ४ तोला (46.64 grams)                सोने की पन्नी

2          ३२ तोला (373.12 grams)            शुद्ध पारद

3          ६४ (746.24 grams)                    तोला शुद्ध गंधक

4          ४ तोला (46.64 grams)                जायफल

5          ४ तोला (46.64 grams)                भीमसेनी कपूर

6          ४ तोला (46.64 grams)                लौंग

7          ४ तोला (46.64 grams)                समुद्रसोख

8          ४ मासा (3.89 grams)                 कस्तूरी

सबसे पहले पारे (पारद) और गंधक की कज्जली बना लें। इस कज्जली में सोने की पन्नी डालकर 24 घंटे (एक दिन) के लिए खरल में गूंद लें और इसी तरह एलोवेरा के रस में 24 घंटे तक के लिए गूंद लें।

तैयार रस को किसी कांच की तेज आग को सह सके ऐसी बोतल में भरकर फिर कपडमट्टी करके सुखा ले। फिर इसे वालुका यंत्र में विधिवत से रख कर 72 घंटे (3 दिन) तक लगातार क्रमवर्धित अग्नि दें। जब रस पक जाए तो वह लाल हो जाता है, जब लगे की रस पक है तब बोतल को बाहर निकाल लें और ठंडी होने पर बोतल को तोड़ कर उसमें से रस निकाल लें.

इस रस में जायफल, भीमसेनी कपूर, लौंग और समुद्रसोख डालकर मिश्रण को अच्छी तरह से गूंद लें। फिर इस रस में कस्तूरी डालकर अच्छी तरह गूंद लें।

इस तैयार हुई औषधि को चंद्रोदय रस कहते हैं।

पान के पत्ते में ३ रती (0.546 gram) इस रस का सेवन  करने से और उचित अनुपन करने से और नियमानुसार परहेज व आहार का पालन करने से शरीर की धातुएं पुष्ट होती हैं, जिससे शरीर भी मजबूत और बलवान बनता है। इस चंद्रोदय के रस के सेवन से पुरुष की कामेच्छा में अति वृद्धि होती है और महिलाओं की यौन प्रवृत्ति को संतुष्ट करता है।

अनुपान

चंद्रोदय रस के सेवन के तुरंत बाद ताजा दूध पिएं, नरम मांस खाएं, मेंदा से बना पदार्थो का सेवन करना, तीतर का मांस, गेहूं की रोटी और गूदा से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें। इसके अलावा रुचिकर और मनभावन स्वादिष्ट भोजन खाए।

इस प्रकार अनुपान के साथ चंद्रोदय के रस का सेवन करने से मनुष्य बलवान बनता है। यह रस वीर्य का स्तंभन करता है और सभी प्रकार के रोगों का नाश करता है। इस रस का सेवन जरूर करना चाहिए ताकि इसे स्त्रीओ के प्रिय हो सकें।

रससिंदूर (हरगौरी रस)

1          20 तोला (233.2 grams)             शुद्ध पारा

2          20 तोला (233.2 grams)             शुद्ध गंधक

3          2 टांक (8.8 gram)                     नौसादर

4          1 तोला (11.66 grams)               फिटकरी

सबसे पहले पारा-गंधक की कजली बनाएं। इस कज्जली में नौसादर और फिटकरी डालकर खरल में अच्छी तरह गूंद लें। फिर इस रस को एक मजबूत कांच की बोतल में भरकर ढक्ककन लगाकर उपर से कपडमिट्टी कर ले। इस बोतल को वालुका यंत्र में विधिपूर्वक रख कर 2 दिन तक अग्नि देकर पकाएं।  पकने पर (सिद्ध हो जाने पर) यह रस लाल हो जाएगा।

इस रस के सिद्ध होने के बाद बोतल को वालुका यंत्र से बाहर निकाल लें और ठंडा होने पर बोतल को तोड़कर रस को बाहर निकाल लें। इस औषध को रससिंदूर या हरगौरी रस कहा जाता है।

इस रसिंदूर 1 रति को लेकर पान के पत्ते में डालकर सेवन करने और उचित अनुपान करने से और परहेज का पालन करने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। हरगौरी रस शरीर को पुष्ट बनाता है और बल और जातीय शक्तियों का पोषण करता है। इस रस का सेवन आयुष्य और शरीर को कांतिमय सुंदर बनाता है। यह रस पुत्रदाता होने के साथ-साथ जठराग्नी को बढ़ाने वाला, तेज बढ़ाने वाला, रूचिकर, आनंद और उत्साह को बढ़ाने वाला है।

हरगौरी रस में काली मिर्च और शहद मिलाकर पीने से वायु के रोग ठीक हो जाता है।

चीता के चूर्ण और त्रिकटु के चूर्ण के अनुपान के साथ रससिंदूर का सेवन करने से कफ़ के रोग दूर होता है

इलायची, मिश्री, सौंठ, अदरक, बड़ी कटेरी, गिलोय और पानी का अनुपान के साथ यह रससिंदुर का सेवन करने से पित्त के रोग नष्ट हो जाते हैं।

इस हरगौरी रस को घी, हल्दी, त्रिफला और सेमल के रस के साथ सेवन करने से दुर्बलता दूर होती है और शरीर पुष्ट होता है।

दशमुलारिष्ट (दशमुलासव)

1          20 तोला (233.2 grams)              लाल शेवरा

2          20 तोला (233.2 grams)              चट्टा की घास

3          20 तोला (233.2 grams)              बंगकटिया

4          20 तोले (233.2 grams)               बड़ी कटेरी

5          20 तोला (233.2 grams)             गोखरु

6          20 तोला (233.2 grams)              बेल

7          20 तोला (233.2 grams)              अरणी

8          20 तोला (233.2 grams)              भद्रपर्णी

9          20 तोला (233.2 grams)              पाढ़ल

10        20 तोला (233.2 grams)              अड़ूसा

11        100 तोला (1,166 grams)            चीतामूल

12        100 तोला (1,166 grams)            पोहकर मूल

13        80 तोला (932.8 grams)              भोलिया

14        80 तोला (932.8 grams)              गिलोय

15        64 तोला (746.24 grams)            आवला

16        48 तोला (559.68 grams)            धमासा

17        32 तोला (373.12 grams)            दन्त धावन

18        32 तोला (373.12 grams)            विजयसार

19        32 तोला (373.12 grams)            हरड़

20        8 तोला (93.28 grams)                कट

21        8 तोला (93.28 grams)                मंजीठ

22        8 तोला (93.28 grams)                देवदार

23        8 तोला (93.28 grams)                विडंग

24        8 तोला (93.28 grams)                मुलेठी

25        8 तोला (93.28 grams)                भारंगी

26        8 तोला (93.28 grams)                कैठ

27        8 तोला (93.28 grams)                बहेड़ा

28        8 तोला (93.28 grams)                पुनर्नवा

29        8 तोला (93.28 grams)                जंगली कालीमिर्च

30        8 तोला (93.28 grams)                जटामांसी

31        8 तोला (93.28 grams)                प्रियंगु

32        8 तोला (93.28 grams)                अनंतमूल

33        8 तोला (93.28 grams)                काला जीरा

34        8 तोला (93.28 grams)                निशोथ

35        8 तोला (93.28 grams)                निर्गुण्डी के बीज

36        8 तोला (93.28 grams)                रास्ना

37        8 तोला (93.28 grams)                पिपली

38        8 तोला (93.28 grams)                सुपारी

39        8 तोला (93.28 grams)                कर्चुर

40        8 तोला (93.28 grams)                हल्दी

41        8 तोला (93.28 grams)                सौंफ

42        8 तोला (93.28 grams)                पदम्

43        8 तोला (93.28 grams)                नागेसर

44        8 तोला (93.28 grams)                नागरमोथा

45        8 तोला (93.28 grams)                इन्द्रजौ

46        8 तोला (93.28 grams)                सौंठ

47        16 तोला (93.28 grams)              कद्दू

48        16 तोला (93.28 grams)              मुलेठी

49        16 तोला (93.28 grams)              अश्वगंधा

50        16 तोला (93.28 grams)              वराहीकन्द

उपरोक्त सभी जड़ी बूटियों को लें और अधकचरा कूट ले। इस कुटा हुआ औषध को आठ गुना पानी में डालकर आग पर उबाल लें। इस उबलते पानी के तीन भाग जल जाए और जब एक चौथाई पानी रह जाए तो इसे नीचे उतारकर मिट्टी के बर्तन में छान लें।

एक अलग बर्तन में 240 तोले काली किसमिस लें और इसे चार गुना पानी में डालकर उबाल लें और जब पानी का एक हिस्सा जल जाए और तीन हिस्सा पानी रह जाए तो उसे नीचे उतारकर छान लें। इस पानी को पहले से तैयार औषधीय पानी में मिलाएं। जब इस औषध ठंडा हो जाए तो निम्नलिखित जड़ी-बूटियों का चूर्ण बनाकर उसमें मिला दें और अच्छी तरह हिलाकर मिश्रण तैयार कर लें।

1          128 तोला (1.50 kg.)                   शहद

2          1600 तोला (18.66 kg.)               गुड़

3          80 तोला (932.8 grams)              धवई के फूल

4          8 तोला (93.28 grams)                शीतलचीनी

5          8 तोला (93.28 grams)                खस

6          8 तोला (93.28 grams)                चंदन काष्ठ

7          8 तोला (93.28 grams)                जायफल

8          8 तोला (93.28 grams)                लौंग

9          8 तोला (93.28 grams)                इलायची

10        8 तोला (93.28 grams)                तेजपता

11        8 तोला (93.28 grams)                नागेसर

12        8 तोला (93.28 grams)                पिपली

13        1 टांक (4.4 gram)                      कस्तूरी

उपरोक्त सभी जड़ी बूटियों को पहले से तैयार मिश्रण में डालकर चिकना किया हुआ मिट्टी के बर्तन में भरकर इसके मुंह को ढक्कन से ढक दें और कपडमट्टी करके बर्तन का मुह बंध करले। इस मिट्टी के बर्तन को डेढ़ महीने तक जमीन में या खाद में गाड़ दें।

डेढ़ महीना बीतने के बाद इस बर्तन को बाहर निकाल लें। इस दौरान आसव तैयार हो जाएगा। इस आसव में तालमखाना के बीज का पाउडर मिलाकर 15 दिन के लिए रख दें। इन दिनों के दौरान आसव निर्मल हो जाता है और औषध के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस औषधि को दशमूलारिष्ट या दशमूलासव कहते हैं।

4 तोले की मात्रा में इस दशमूलारिष्ट का सेवन करने से वो शरीर को पुष्ट करता है और साथ ही यह क्षय रोग, उल्टी, पांडुरोग, भगंदर, संग्रहणी, अरुचि, शूल, खांसी, सांस फूलना, वायु के रोग, पीलिया, कुष्ठ, मलाशय के मस्से, प्रमेह, मन्दाग्नि, पेट का रोग, पथरी, मूत्रकृच्छ, धातुक्षय, और कृशता (पतलापन) ये सभी प्रकार के रोगों को नष्ट करता है और बांज को गर्भवती बनाता है और बल, तेज, और वीर्य को बहुत अधिक प्रमाण में बढाता है।

असाध्य (लाइलाज) दुबलेपन के लक्षण

आमतौर पर जो बच्चा जन्म से ही कमजोर और दुबले-पतले शरीर वाला हो, जिस बच्चे की जठराग्नि अतिशय मंद हो और जो बल विहीन हो, तो एसा बालक के लिए कोई उपचार उपलब्ध न होने से ऐसी दुर्बलता असाध्य (लाइलाज) माना जाता है।

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