प्रदर

प्रदर

भागदौड़ भरी जिंदगी में शरीर की देखभाल से ध्यान हट जाता है। सतत कार्यशीलता में भोजन के लिए अव्यवहारिक दृष्टिकोण से आगे बहुत कुछ भोगना पड़ता है और कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

प्रदर होने के कारण

गर्म भोजन, अनियमित आहार, विपरीत आहार, भोजन के बाद दूसरा भोजन, अपच, अत्यधिक सेक्स, लगातार गाड़ी चलाना, भारी वजन उठाना, दिन में सोना, किसी भी प्रकार की चोट, नशीली दवाओं का सेवन, रात में जागना, पर्याप्त आराम की कमी आदि कारणवश महिलाओं में प्रदर रोग हो जाता है।

प्रदर के प्रकार

१ त्रिदोषजन्य

महिलाओं को वात, पित्त, कफ या इन तीनों (त्रिदोष) कुपित होने से भी प्रदर रोग हो जाता है।

२ श्वेत प्रदर

इस रोग में महिलाओं को योनि से चिपचिपा, हल्का, थोड़ा दुर्गंधयुक्त और सफेद पदार्थ निकलता है जिसे श्वेत प्रदर कहते हैं।

३ रक्त प्रदर

इसके आलावा रक्त प्रदर भी होता है। इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित महिलाओं में योनि से रक्त के समान एक लाल रंग का पदार्थ स्रावित होता है।

कभी-कभी यह स्राव काले रंग का भी होता है, तब यह समझ लेना चाहिए कि रोग ने राक्षसी रूप धारण कर लिया है। क्योंकि बहुत आगे बढ़ जाने वाला रोग लाइलाज या कठिन हो जाता है।

इस प्रकार तीन प्रकार के प्रदर को समझा जा सकता है। स्वास्थ्य के दौरान पेडू में हल्का या तेज दर्द होना। शरीर में कमजोरी के साथ ही चक्कर आने की शिकायत भी होती है। यह पाचन तंत्र को भी प्रभावित करता है।

પ્રદર ૨-

लहू की कमी भी प्रकट होती है और इसके परिणामस्वरूप शरीर मुरझाने लगता है। इस बीमारी को समय रहते ठीक कर लेना चाहिए ताकि आगे जाकर यह गंभीर रूप न ले।

प्रदर के लक्षण

वातज प्रदर

इस प्रकार के प्रदर में रुक्ष, झागदार, दर्दनाक और धुला मांस का पानी जैसा रुक रुक के और छोटी मात्रा में लहू बहता है।

पित्तज प्रदर

इस प्रकार के प्रदर रोग में बार-बार रक्तस्राव होता है, जिसमें पीला, नीला और लाल, गर्म और पित्त सबंधी जलन युक्त और पीड़ा युक्त स्त्राव होता है।

कफज प्रदर

इस प्रदर में कच्चा रस समान, सेमल का गोंद जैसा रंग, चिपचिपा, पीला और धुला अन्न का पानी जैसा खून बड़ी मात्रा में बहता है।

त्रिदोष जन्य प्रदर

इस प्रकार के स्राव में शहद, घी और हरताल जैसा रंग का, मज्जा जैसा और मुर्दा की महक वाला रक्त प्रवाहित होता है। इस प्रकार के प्रदर को लाइलाज माना जाता है।

प्रदर रोग में रक्त का प्रवाह बहुत अधिक होने पर रोगी बहुत कमजोर हो जाता है। रक्तस्राव से कमजोरी, थकान, बेहोशी, मतली, प्यास, जलन, बकवास, शरीर में पीलापन, घेन और वायु से पेट फूलना आदि वात के रोग का उपद्रव होता है।

जिस स्त्री को लगातार योनि से खून बह रहा हो, प्यास लगी हो, जलन हो और उसे बुखार हो, साथ ही कमजोर और रक्त क्षीण हो उसे प्रदर से छुटकारा नहीं मिलता है।

इलाज

निम्नलिखित दोनों उपाय करने से निश्चित रूप से प्रदर रोग समाप्त हो जाएगा।

शतावरी

सफेद पानी गिर रहा हो तो शतावरी का सेवन करें। रात को सोते समय गुनगुने दूध में शतावरी का चूर्ण डालकर सेवन करने से सफेद पानी की समस्या दूर हो जाती है।

शतावरी

चूर्ण

नीचे दिखाई गई ५ औषधि को बराबर मात्रामे लेकर पीस लें (कूट के चूर्ण बनाकर)। और कांच के बर्तन में भर लें।

१ चम्मच रोजाना सुबह, दोपहर और शाम को खाने के १ घंटे बाद ठंडे दूध के साथ लें। यह प्रयोग कम से कम २१  दिनों तक किया जा सकता है और ९० दिनों तक जारी रखा जा सकता है।

सब्जा बीज         ५० ग्राम

समुद्रसोख           ५० ग्राम

सिंघाड़ा               ५० ग्राम

आवला                ५० ग्राम

बाबुल का गोंद     ५० ग्राम

सब्जा बीज
समुद्रसोख
सिंघाड़ा
आवला 
बाबुल का गोंद

केले

सफेद पानी गिरने की स्थिति में – 2 पके केले लें और उन्हें छोटे-छोटे गोल टुकड़ों में काट लें, फिर देशी गाय का घी गर्म करके उसमें डालें।

इन केले को २१  से ३१ दिनों तक सुबह खाली पेट लेने से प्रदर रोग मिट जाता है।

केले

इस प्रयोग के दौरान गर्म, मसालेदार, डिब्बा बंद भोजन, बासी भोजन, तला हुआ, मेंदे वाला भोजन, अचार, चाय, कॉफी आदि का सेवन न करें।

अगर किसी को किसी भी प्रकार की लत है, तम्बाकू, धूम्रपान, छींकनी या कुछ और इसे छोड़ दें। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

भिंडी

सफेद पानी में भिंडी एक असरदार जड़ी-बूटी है।

भिंडी

ताजा भिंडी की 2-3 फली सुबह खाली पेट चबाके खाएं और कम से कम डेढ़ घंटे तक कुछ न खाएं-पिएं ऐसा करने से चार से पांच दिनों में सफेद पानी गिरना बंद हो जाएगा।

अगर कच्ची भिंडी नहीं खा सकते हैं तो २ कप पानी में २ से ३ भिंडी की फली उबाल लें और एक कप पानी रह जाने पर सिंधव नमक और थोड़ा सा जीरा पाउडर (स्वादानुसार) डालकर गर्म चाय की तरह पी लें. इस से थोड़े दिनो मे सफेद पानी गिरना बंद हो जाता है।

भिंडी का चूर्ण बनाकर देशी गाय के एक गिलास दूध में ३-४ चम्मच दिन में तीन बार पीने से पुराना से पुराना प्रदर रोग भी कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।

भिंडी के चूर्ण को दही के साथ लेने से सफेद पानी एक बार में ही बंद हो जाता है। एक बड़े कप दही में २ चम्मच भिंडी का पाउडर मिलाएं और इस दही का सेवन करें।

तुलसी

तुलसी

एक चम्मच तुलसी के पत्ते का रस और एक चम्मच शहद दोनों को अच्छी तरह से मिलाके सुबह खाली पेट लेने से कुछ ही दिनों में सफेद पानी का स्त्राव बंद हो जाएगा। रस पिने के बाद एक घंटे तक न कुछ खाएं-पिएं।

जीरा

जीरा

अगर आप किसी संक्रमण या वायरस से पीड़ित हैं और इस कारण से सफेद पानी का स्त्राव हो रहा हो तो सुबह खाली पेट एक बार में एक चम्मच साबुत जीरा चबा के खाने से आप ६से ७ दिनों में सफेद पानी की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।

अमरूद के पत्ते

अमरूद के पत्ते

अमरूद के पत्तों का ताजा रस निकल कर १० से २० मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से कुछ ही दिनों में यह समस्या ठीक हो जाती है।

आवला

आवला

आवला के बीज का कल्क करके उसमें शहद और मिश्री मिलाकर सेवन करने से ३ दिनों में सफेद स्त्राव (सफेद धातु का स्राव) बंद हो जाता है।

नागकेसर (नागेसर)

नागकेसर (नागेसर)

नागकेसर (नागेसर) को कूट के छान कर एक कटोरी गाढ़ी छाछ में मिळाले। अगर आप 3 दिन तक इस मिश्रण का चावल के साथ सेवन करते है तो सफेद प्रदर दूर हो जाता है

चूर्ण

काला नमक
काला जीरा
मुलेठी
नील कमल
कमालगट्टा

काला नमक, काला जीरा, मुलेठी और नील कमल के फूल और कमालगट्टा, इन सभी औषध को १२ -१२ रत्ती ले कर चूर्ण बनाले। फिर इस चूर्ण को 5 तोले दही में गूंद लें। इस मिश्रण में ३ मासा वजन जितना शहद डाले। इस औषध को लेने से वात सबंधी प्रदर ठीक हो जाता है।

चूर्ण

१ तोला मुलेठी और १ तोला मिश्री लेकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को पका चावल का पानी में मिला के पीने से रक्तप्रदर मिटता है।

दारूहल्दी और चौली भाजी

दारूहल्दी
चौली भाजी

दारूहल्दी और चौली भाजी की जड़ों को पीसकर शहद में मिला ले और इसे पका चावल का पानी के साथ पिने से सभी प्रकार का प्रदर ठीक हो जाता है।

अशोक

अशोक

अशोक वृक्ष की छाल ४ तोला लेकर आठ गुना (३२ तोले) पानी में उबाल लें। जब आधा पानी (१६ तोला) रह जाए तो उतनी ही मात्रा में दूध (१६ तोला) डालें।

जब काढ़ा (कवाथ) जल जाए और दूध (15 तोला) रह जाए तब उसे आग से उतारकर ठंडा कर लें।

यह दूध कठिन प्रदर को भी ठीक करता है। यदि रोगी की पाचन क्रिया कमजोर हो तो दूध कम दें।

दर्भ

दर्भ

दर्भ की ताजी जड़ें लाकर पका चावल का पानी के साथ कुटके तीन दिन तक पीने से प्रदर रोग मिटता है।

गूलर

गूलर

गूलर के अच्छे ताजे फल लें और उसका रस निकालें। इस रस में शहद मिलाकर रोगी को पिलाने से और उस पर दूध और चावल का भोजन करवाने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।

दाव्यार्दी कवाथ

दारूहल्दी
रसोन्त
चिरायता
अड़ूसा
नागरमोथा
बेलफल
रक्तचंदन
आंक

दारूहल्दी, रसोन्त, चिरायता, अड़ूसा, नागरमोथा,  बेलफल, रक्तचंदन और आंक का फूल। इन सभी औषध का कवाथ बनाके इसमें शहद मिलाकर इसका सही तरीके से सेवन करने से सभी प्रकार के और दर्दनाक प्रदर खत्म हो जाते हैं।

कपूर

कपूर

गेहूँ का एक दाना बराबर भीमसेनी कपूर लेकर एक पके केले में डाल के इसका तीन दिन तक सेवन करने से सफेद प्रदर रोग दूर हो जाता है।

कपूर से दांतों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए केले के एक टुकड़े को काट के चिरा बनाले और इस चीरे में कपूर रख के निगल जाए या पके केले के साथ कपूर पिस ले और इनका सेवन करे।

चूर्ण

लोधरा
तालमखाना

५० ग्राम            लोधरा

५० ग्राम            तालमखाना

इन दोनों चीजों को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को नाश्ते के आधे घंटे पहले या बाद में गर्म पानी या गर्म दूध के साथ लिया जा सकता है और इसी तरह रात को खाना खाने से आधा घंटा पहले या बाद में गर्म पानी या गर्म दूध के साथ लिया जा सकता है। इससे प्रदर रोग की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

इस औषधि का परिणाम १० से १५ दिनों में प्राप्त हो जाता है और यदि रोग अधिक हो तो इस चूर्ण को एक महीने तक सेवन करने से रोग से मुक्ति मिल जाती है।

काढ़ा

धनिया
आवला

५० ग्राम            धनिया

५० ग्राम            आवला

इस दोनों औषध को बारीक पीस के चूर्ण बना लें। एक गिलास पानी में दो चम्मच इस चूर्ण को डालकर उबाल लें, जब आधा पानी रह जाए तो इसे छानकर सेवन करें. स्वाद के लिए थोड़ा सा सेंधा नमक या मिश्री मिला सकते हैं।

परहेज

ज्यादा मिर्ची वाला, मसालेदार, मांस, मछली, तला हुआ और तैयार भोजन, बासी भोजन,  अत्था दिया हुवा खाद्य पदार्थ और कब्ज करने वाले खाद्य पदार्थों से बचें।

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