दूधी भोपला के पत्ते और लोधरा को बराबर भाग में लेकर बारीक कुटके योनि पर लगाएं। इससे फोड़ा और दर्द तुरंत मीट जाता है।
लेप (२)
एक कटोरी तिल के तेल में पलाश का फल और गूलर का फल कुटके योनि में लगाने से योनि इसके मूल रुपमे आकर मजबूत होती है। (अपनी मूल स्थिति में लौटती है)
चूर्ण
यदि गर्भवती महिला का पेट बड़ा हो गया हो तो प्रसव के 21 दिन बाद सुबह पिपलामूल के चूर्ण को दही के मिश्रण में मिलाकर पीने से उसका पेट पहले जैसा हो जाता है।
प्रसव के बाद पेट में बचे ओझड़ी का उपचार
प्रसूति होनेके बाद ओझड़ी न निकलनेसे दर्द, अफरा, अग्निमांध (पाचन विकृतियाँ) पेदा होते है। इसलिए बानसके ताबतक सावधानी पूर्वक प्रसव कराना और सचेत होकर ओझड़ी बाहर निकालदेनी चाहिए। फिरभि अगर ओझड़ी पेटमे रह जाए तो इसका उपचार करके ओझड़ीको दूर करनी चाहिए।
चूर्ण का धुआं
सर्प कोर्सेट (सर्प की चमड़ीका बाह्य आवरण), कड़वी दूधी भोपला और कड़वा तुरई को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्णको सरसों के तेल में भिगो दें, इस चूर्ण को जलाकर योनि के चारों ओर इसका धुआं दें। ताकि ओझड़ी बाहर गिर जाए।
लेप (३)
कलिहारी की जड़ का कल्क बनाकर गर्भवती महिला के हाथ पैरों के तलवों पर लेप करने से ओझड़ी बाहर निकल जाती है।
ओझड़ी बाहर गिरने के बाद जाँघों को गर्म पानी में भिगोएँ (गर्म पनिकी धार दोनों जाँघों पर लेना)और तेल को मलने के साथ-साथ योनि में भी हल्के से मलें।
मक्कल रोग
एसी वात जो प्रसूता को सुखी हुईसी बढ़ती है। यह बढ़ी हुई वात रक्त को उष्णता और तीक्ष्णता से सुखा देती है, जिससे गांठ बन जाती है।
ये गांठ (ट्यूमर) नाभि के नीचे, कमर में, पेडू (नाभि के नीचेसे जननांग के आधार तक की सतह और अंदरुनि भाग) में और मूत्राशय में हो सकते हैं। इससे मूत्राशय और पेट में तेज दर्द होता है। पेट फूल जाता है और पेशाब रुक जाता है। इसे मक्कल रोग कहते हैं।
इलाज
जवाखार को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर सहन करने योग्य गर्म पानी के साथ पिएं या गर्म घी के साथ पिएं।
पिपलादी कवाथ (काढ़ा)
पिपली, पिपलामूल, काली मिर्च, गजपिप्पली, सौंठ, चीता, जंगली कालीमिर्च, हीना के बीज (या निर्गुण्डी के बीज), इलायची, अजवाइन, सरसों, हिंग, भारंगी, कालीपाट, इन्द्रजौ, जीरा, बकायन, छोटी पिलु, अतिविषा, कटुकी और विडंग इन सभी जड़ी-बूटियाँ समान रूप से लें और इसका कवाथ (काढ़ा) बना लें। इस कवाथमें सेंधा नमक डालके पिलाओ।
यह काढ़ा गोलो (वातसे पेट दर्द के साथ फूलना), उदरशूल, ज्वर, मक्कल और मक्कल का दर्द के साथ-साथ वात और कफ को नष्ट करता है। इसके सेवन से आमवात का पाचन करके जठराग्नि को प्रज्वलित करती है।
त्रिकटु, चतुर्जात और धनिया को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्णको पुराना गुड़ के साथ मिलाकर नियमित देनेसे मक्कल रोग का नाश हो जाता है।
प्रसूता महिला को सेक्स, क्रोध, ठंडी हवाओं से दूर रहना चाहिए।
प्रसव के रोग (सुवारोग)
सुवारोग (प्रसूता के रोग)
सुवारोग के समूह में बुखार, खांसी, अंगों में दर्द, प्यास, भारीपन, सूजन, पेट का दर्द और दस्त जैसे रोग शामिल किए गए हैं।
जैसा कि उपरोक्त में से अधिकांश रोग प्रसूता महिलाओं में होते हैं, इसलिए इसे सूतिका रोग या सुवारोग कहा जाता है।
बुखार, दस्त, सूजन, पेट का दर्द, आफरा, कमजोरी, तंद्रा, भूख न लगना और मतली, ये सब रोग प्रसूताको बल और मांस नष्ट होनेसे होते है इसलिए इसको सूतिका रोग कहे जाते है।
इलाज
वात को नष्ट करने वाली औषधियो का सेवन कराने से सूतिका रोग मीट जाते है।
हल्के गर्म दशमूल के कवाथ (काढ़े) में घी मिलाकर सेवन करने से सुवारोग मिटता है और स्वास्थ्य ठीक रहता है।
दार्व्यादि कवाथ (काढ़ा)
देवदार, बच, कट, पिपली, सौंठ, चिरायता, जायफल, कटुकी, धनिया, हरड, गजपिपपली, बंगकटिया, गोखरू, धमासा, बड़ी कटेरी, अतिविषा, गिलोय, काकराशिंगी और कलोंजी। ये सब औषधीया समान मात्रा मे लेके इसका कवाथ (काढ़ा) बनाए।
जब पानी का आठवां हिस्सा रह जाए तो उसमें सेंधा नमक और हींग डालकर सूतिका महिला को पिलाएं।
इस काढ़े के सेवन से उदरशूल, खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कंपकंपी, सिर दर्द, बकवास, प्यास, सूजन, तंद्रा, दस्त और उल्टी जैसे रोग नष्ट हो जाते हैं।
यह कवाथ (काढ़ा) कफ़्फ़से और वातसे उत्पन्न होने वाले सुवारोग के लिए है। इस कवाथ (काढ़े) को दार्व्यादि कवाथ कहते हैं।
पंचजीरक पाक
जीरा, कलौंजीजिरू, सोआ, सौफ, अजवाइन, बोडी अजवाइन, धनिया, मेथी, सोंठ, पिपली, पिपलामुल, चीता, कपूर कचरी, बेर की मींज, कट और कामला ये सब जड़ी बूटियों 4-4 तोला की मात्रा से लेके पीस लें और चूर्ण बना ले।
१२८ तोला दूध, १६ तोला घी और ४०० तोला गुड़ लेकर उपरोक्त सभी जड़ी बूटियों से पाकशास्त्र के नियमानुसार पाक बना लें। इस पाक को पंचजीरक पाक कहते हैं।
इस पंचजीरक पाक के सेवन से प्रसूता स्त्री के रोग, योनि के रोग, बुखार, क्षय रोग, खांसी, सांस की तकलीफ, पीलिया, कृशता और वात सबंधी सभी रोग ठीक हो जाता है।
सौभाग्य सुंठीपाक (सौंठ का पाक)
32 तोले सौंठ को पीसकर घी में भून लें.
इस चूर्ण को 128 तोले गाय के दूध में डालकर पेस्ट बना लें।
इस मावा में 8 तोला गाय का घी डालकर अच्छी तरह मिला लें।
200 तोला खांडकी चाशनी डालें और अच्छी तरह मिलाएँ।
12 तोला धनिया, 20 तोला सौंफ, 4 – 4 तोला विडंग, जीरा, सौंठ, काली मिर्च, पिपली, नागरमोथा, तेजपत्ता, नागेसर, दालचीनी और छोटी इलायची, ये सब औषधिया लेकर बारीक चूर्ण बनाले और इस चूर्ण को खांड्की चाशनी मे डालके अच्छी तरह मिलाले। फिर इसे एक अच्छे बर्तन मे भर लें। इस तैयार पाक को सौभाग्य सुंठीपाक कहा जाता है।
इस पाक के सेवनसे प्रसूता की बीमारिया, प्यास, उल्टी, बुखार, जलन, शोष, श्वास, खांसी, तिल्ली और कृमि रोग नष्ट हो जाते हैं। इस पाक के सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
प्रसूता के परहेज़
जिस महिला की खून की कमी हो गई हो उस प्रसूता महिला को एक माह तक स्निग्ध, हल्का, आसनीसे पाचन हो एसा ,और भोजन कम कर दिया जाना चाहिए।
नियमित रूप से गर्म शेक और तेल की मालिश जरूर करवाए।
महिला डेढ़ महीने के लिए प्रसूता मानी जाती है। तब तक सब परहेज का पालन किया जाना जरूरी है। प्रसव बाद के 4 महीने पूरे होने तक, यदि कोई उपद्रव नहीं होता है तो परहेज का पालन नहीं करेंगे तब भी ठीक है।
प्रसवोत्तर महिलाओं में बुखार सबसे आम बीमारियों में से एक है। इस बुखार को “प्रसवोत्तर बुखार” कहा जाता है क्योंकि यह प्रसवोत्तर महिलाओं में देखा जाता है।
सूतिकाज्वर के लक्षण
जिन महिलाओं का शरीर टूटता हो (बदन मे तेज दर्द), बदन गर्म, कांपनयुक्त, भारी शरीर और प्यास, सूजन और दस्त हो, तब ये जानना की उन्हें सुवारोग के कारण बुखार हुवा है।
समाधान
कवाथ (काढ़ा)
अजवाइन, जीरा, बांसलोचन, खेरसाल, विजयसार, सौंफ, धनिया और सेमल का गोंद। ये सब औषधिया समान मात्रा में लेके इसका चूर्ण बनालो।
फिर इस चूर्ण से कवाथ (काढ़े) बनालो और 10 दिन तक इस कवाथ पीने से सूतिकाज्वर (बुखार) दूर हो जाता है।
कवाथ (काढ़ा) २
लाल शेवरा (समेर्वो), चट्टा की घास, बंगकटिया, बड़ी कटेरी, गोखरू, बेल, अरणी, अड़ूसा, भद्रपर्णी और कोकम इस औषधिया के मूल बराबर मात्रामे लेके उसे पिसके कवाथ बनाले।
इस कवाथ (काढ़े) को गर्म हो तब 10 दिन तक घी डालकर नियमित रूप से लिया जाए तो सूतिकाज्वर मिटता है।
स्तन रोग
स्तन रोग गर्भवती महिलाओं या प्रसूता महिलाओं में होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान स्तनों में धमनियां और नसें खुल जाती हैं।
यह रोग पांच प्रकार से वात, पित्त, कफ़्फ़, त्रिदोष और आगंतुक से होता है। रक्त विकार आदि से यह रोग नहीं होता और कुँवारियों को भी यह रोग नहीं होता।
महिला के स्तन में दोष उत्पन्न होने के बाद, दोष के कारण मांस और रक्त स्तन में एक गांठ पेदा करती है या गांठ पकती है। इसे स्तन रोग कहते हैं।
इलाज
स्तन रोग के उपचार में पित्तनाशक जड़ी बूटियों का प्रयोग करें लेकिन स्तन के ऊपर गर्म शेकाई मत करे।
स्तनरोगमे गांठ पक जानेकी अवस्थामे विषेला रक्त और विकारों को शल्य चिकित्सा द्वारा दूर करने की सलाह दी जाती है।
लेप
इंद्रायन की जड़ को घिसकर इसका लेप लगाने से स्तन रोग दूर होता है।
लेप २
हल्दी और धतूरे के पत्तों को लेकर पिसके पेस्ट बनाकर स्तनों पर लगाने से स्तन रोग ठीक हो जाता है।
लोहे को बहुत गर्म करें फिर इस लोहे को ठंडे पानीमे डाल कर इसे ठंडा करे। इस पानी को स्तन रोगी को पिलाने से रोग ठीक हो जाता है।
लेप ३
बांझ बन करेला की जड़ को घिसकर स्तन पर लगाने से स्तन रोग का दर्द दूर होता है।