जड़ बुद्धि वाला मूढ़, मूर्ख किसी भी तरह से और किसी भी जोखिम लेकर लिंग को बढ़ाने के लिए उत्सुक रहता है। ऐसे मुर्ख लोगों में अठारह प्रकार के वीर्य संबंधी रोग होते हैं।
लिंग वर्धक उपाय
कल्क
भिलावा का बीज, शुक नाम का पानी का कीड़ा और एक कमल का पत्ता लेकर उन्हें जलाकर राख कर दें। इस भस्म में सैंधव नमक मिळाले।
यह मिश्रण को बड़ी कटेरी के फल के रस में कूट ले। और इसका कल्क बना ले।
लिंग को भैंसा के गोबर से धोने के बाद लिंग पर यह कल्क लगाने से लिंग घोड़े के लिंग की तरह बड़ा हो जाता है।
इस उपाय से रोग होने की संभावना है तो विवेक से काम लें।
अश्वगंधादि तैल
असगन्ध, शतावरी, कट, जटामांसी और बड़ी कटेरी की कलियाँ लेंकर उसका कल्क बना ले।
इस तैयार कल्क और कल्क से चार गुना दूध ले और दोनों मिला लें।
तिल का तेल लेंकर इसमें कल्क और दूध का मिश्रण डालें और तेल को पका लें। (तेल को सिद्ध करें) इस तेल को अश्वगंधादि तैल कहा जाता है।
इस अश्वगंधा तेल से मालिश करने से लिंग, स्तन और कान के लोलकी बड़े हो जाते हैं।
ये अठारह प्रकार के शुक्र के दोष हैं। या इसे वीर्य से संबंधित अठारह रोग भी कहते हैं।
सर्षपिका का लक्षण
शुक्र दोष या दुष्ट योनि के संसर्ग से सफेद सर्षप जैसे कई फुन्सी हो जाते हैं। ये फुन्सी कफ और वायु के कारण होते हैं। इसे सर्षपिका कहते हैं।
अष्टिलिका का लक्षण
अष्टिलिका नामक फुन्सी वायु के कारण होते हैं। ये फुन्सी लंबे और घुमावदार होने के साथ-साथ सख्त भी होते हैं।
ग्रथित का लक्षण
ग्रथित फुन्सीया कफ के कारण होती हैं। जौ के नोक समान होते हैं और लिंग इससे आच्छादित हो जाता है।
कुंभीका का लक्षण
कुंभीका नामक फुन्सिया रक्त और पित्त के कारण होती हैं। वे जामुन के बीज की तरह होती हैं।
अलजी का लक्षण
अलजी नामक फुन्सिया प्रमेह पीड़िका समान होती हैं। यह लाल और काले रंग की होती है। ये फुन्सी रक्त और पित्त के कारण होती हैं।
मृदित का लक्षण
मृदित नामक फुन्सी वायु के प्रकोप के कारण होती है। लिंग को दबाने से उसमें सूजन के साथ ऊपर आ जाती है।
संमुढपिड़का का लक्षण
लिंग को हाथों से रगड़ने से ये फुन्सीया होती हैं। संमुढपिड़का वायु कुपित होने के कारण होती है।
अवमंथ का लक्षण
अवमंथ नामक फुन्सिया लंबी अंकुर वाली बीच में से फटी हुई होती हैं और कई अनुपात में होती हैं। ये फुन्सिया बहुत दर्दनाक होती हैं। वह कफ और रक्त के प्रकोप के कारण होती है।
पुष्करिका का लक्षण
पुष्करिका नामक फुन्सिया छोटी छोटी, पास पास होने वाली और कमल की डोडी के आकार की होती है। ये फुन्सिया पित्त और रक्त के प्रकोप के कारण होती हैं।
स्पर्शहानि का लक्षण
शुक्र दोष से बिगड़ा हुआ रक्त स्पर्शहानि नामक फुन्सिया उत्पन्न करता है।
उत्तमां का लक्षण
शुक्र के अपच के कारण होने वाली ये फुन्सिया मुंग या उरद के दाने समान होती हैं। यह रक्त और पित्त के कारण होती है जिसे उत्तमां कहा जाता है।
शतपोनक का लक्षण
शतपोनक नमक व्याधि वायु और रक्त के कारण होने वाला रोग है। इस व्याधि में छोटे छोटे मुख वाले छिद्रों से लिंग व्याप्त हो जाता है।
त्वकपाक का लक्षण
यह व्याधि पित्त और रक्त के कारण होती है। त्वपाक ज्वर (बुखार) और जलन पैदा करती है।
शोणितार्बुद का लक्षण
शोणितार्बुद नामक फुन्सिया काले और नीले रंग की होती है। इससे काफी पीड़ा और लिंग में दर्द होता है।
मांसार्बुद का लक्षण
लिंग ऊपर का मांस जब दूषित हो जाता है, तब लिंग के ऊपर मांसार्बुद होता है।
मांसपाक का लक्षण
लिंग का मांस गिरने पर जो दर्द होता है उसे सभी दोषों से होने वाला मांसपाक कहा जाता है।
विद्रधि का लक्षण
सन्निपात से विद्रधि होता है। इसके लक्षण प्रमेह के विद्रधि के समान ही होते हैं।
तिलकालक का लक्षण
जैरी प्राणी हैं जो काला, बहुरंगी या सफेद रंग का होता है जिसे शुक कहा जाता है। इसकी राख जहरीली होती है। यही राख इस रोग का कारण बनती है। इस राख के कारन जेरयुक्त मांस लिंग से गिरने लगता है। लिंग को पूरी तरह से ख़त्म कर देता है। और जब यह शुक नामक जेरी प्राणी काला होकर बिखर जाता है तो इसे तिलकालक कहते हैं।
शुक्रदोष की असाध्यता
इन अठारह प्रकार के दोषों में से चार रोगों को असाध्य माना गया है: मांसार्बुद, मांसपाक, विद्रधि और तिलकालक।
शुक्रदोष का उपचार
सभी शुक्रदोषों में विषहर क्रियाओं के माध्यम से जहर को समाप्त करें। जोंक के द्वारा युक्ति से जहर से मुक्ति पाएं। विरेचन कराए। हल्का भोजन कराए और त्रिफला के कवाथ (काढ़े) के साथ गुगुल पिलाए।
ठंडा दूध लगाएं और इसका सेवन भी करें।
दार्वी तैल
दारूहल्दी, तुलसी, मुलेठी, धूम्र की कालिख और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर कल्क बना ले। इस कल्क से तेल को पका लें (तेल सिद्ध करें)।
इस सिद्ध तेल को दार्वीतैल कहा जाता है। इस दार्वीतैल का अभ्यंग से सभी लिंग के रोगों को दूर किया जा सकता है।
रसांजन लेप
सिर्फ अकेला रसदंतीज (रसांजन) लैप मात्र ही लिंग के सभी रोगों को इस प्रकार ठीक करता है कि ऐसा लगता है कि कभी हुआ ही नहीं।
दुर्गंधयुक्त मवाद, व्रण (अल्सर), सूजन, खुजली और शूल से युक्त लिंग के सभी रोग भी रसवंती का लैप ठीक कर देता है।
लिंग वर्धक उपचार
आज के समय में अश्ललीलता समाज में हर जगह पाई जाती है। टीवी विज्ञापनों, उत्पाद सामग्री और मोबाइल फोन व अन्य काफी जगह अश्लीलता व्याप्त है।
इस तरह की अश्लील सामग्री बच्चों को कम उम्र में ही अनैतिकता की ओर ले जाती है और हस्तमैथुन के माध्यम से कच्ची उम्र में पतन की गर्त में गिर जाते है।
परिणाम स्वरूप शारीरिक और मानसिक दुर्बलता के अलावा कई छिपे हुए रोगों को आमंत्रित करता है। इन्हीं बीमारियों में से एक है जननांग की शिथिलता।
कम उम्र में की गई गलतियों के गंभीर परिणाम पीछे भोगना पड़ सकता हैं। हस्तमैथुन और बुरी आदतों के आदी हो जाने पर लिंग का पूरी तरह से उत्थान न हो पाना या पतला या छोटा न होने पर उसका इलाज करना आवश्यक हो जाता है।
यहाँ कुछ मार्गदर्शन और उपचार दिया है जिस का पालन, सेवन और परहेज के कदम से वो अवश्य फायदेमंद होंगे।
योग
प्रथम दुर्बलता और कमजोरियों को नष्ट करने के लिए शरीर का मजबूत होना जरूरी है। और योग उसके लिए एक उत्कृष्ट उपाय है। दूसरा, वीर्य की सुरक्षा बहुत जरूरी है। और उसके लिए भी योग एक बेहतरीन तरीका है।
इसलिए सर्वांगासन और हलासन नामक दो आसनों के अच्छे योग गुरु से शिक्षा दीक्षा लें और इसका नियमित अभ्यास करें। साथ ही लोम अनुलोम क्रिया करके भी समस्याओं को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।
लिंग वर्धक - काम वर्धक आहार
कमजोरी दूर करने और लिंग बढ़ाने के लिए खीर का एक प्रयोग यहाँ प्रस्तुत है। यह प्रीतीपूर्वक करके उसका फायदा उठाना चाहिए।
१ ५० ग्राम उरद दाल (पाउडर)
२ १० ग्राम देसी घी (गाय का)
३ १० ग्राम लहसुन
४ ०३ ग्राम अजवाईन (पाउडर)
५ १० ग्राम सौंफ
६ ०३ ग्राम जावित्री (पाउडर)
७ ०१ ग्राम इलायची (पाउडर)
८ ०३ ग्राम तुलसी के बीज
९ ०३ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण
१० १०० ग्राम दूध
११ मिश्री स्वादानुसार
सबसे पहले उरद दाल के पाउडर को घी में भून लें इससे उसका रंग लाल हो जाएगा।
जब आटा घी में भून जाने पर वो लाल हो जाए तब उसमें दूध मिलाकर इसे हिलाते रहिए।
दूध काफी गर्म होकर उबलने लगे तब इसमें लहसुन, अजवायन, सौंफ आदि सब औषधिया मिलाकर इसे हिलाते रहिए।
जब दूध उबल कर खीर बन जाए तब इसे नीचे उतार लें, थोड़ा ठंडा करके इसका सेवन करें।
सुबह इस खीर का सेवन करने के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाएं-पिएं। अगर और जब रात में सेक्स करना हो तो और तब संभोग से 1 घंटे पहले इस खीर का सेवन करना चाहिए।
इस खीर के सेवन से शरीर की कमजोरियां दूर होती हैं और शरीर को ताकत मिलती है, प्रसन्नता का अनुभव होता है।
इस खीर को फ्रिज में रखकर ठंडा करके नहीं लिया जा सकता, ऐसा करने से फायदे से बजाए नुकसान होगा। अगर इसे एक बार में नहीं खाया जा सकता है तो इसे थोड़ी देर बाद दूसरी बार खाया जा सकता है।
अगर लिंग छोटा है और उसकी लंबाई बढ़ानी है तो लिंग पर मालिश करने की सलाह दी जाती है। यहां इस मालिश का तेल को तैयार करने का तरीका बताया गया है।
१ ५ ग्राम अजवाइन
२ २ ग्राम लहसुन
3 2 ग्राम लौंग
४ ५ ग्राम जायफल
५ ५0 ग्राम सरसों का तेल
सबसे पहले एक पैन में सरसों का तेल लें और इसे धीमी आंच पर गर्म करें। जब यह थोड़ा गर्म हो जाए तो इसमें अजवाइन, लहसुन, लौंग और जायफल डालकर तेल को जरुरत के हिसाब से हिलाते रहे।
इस तेल को तब तक पकाते रहें जब तक कि तेल की सारी सामग्री काली न हो जाए। फिर इसे निचे उतार कर छान कर साफ कांच की बोतल में भर लें।
इस तेल से लिंग पर दिन में दो बार पांच मिनट तक हलके से धीरे-धीरे मालिश करें। लिंग के मूल से लेकर लिंग के ऊपर और नीचे तक तेल की मालिश करें लेकिन आगे के भाग पर (शीर्ष के ऊपर) तेल न लगाएं।
इस मसाज से लिंग को डेढ़ से दो इंच तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इस मालिश को नियमित रूप से करने की जरूरत है। इस प्रयोग को 3 से 6 महीने तक करने से अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
मालिश के दौरान लिंग उत्तेजित होने पर और हस्तमैथुन की तीव्र इच्छा पैदा होने पर संयम बनाए रखे और वीर्य की रक्षा करना। वरना नुकसान हो सकता है।
हस्तमैथुन न करें। अश्लील वीडियो या तस्वीरें न देखें और इसके बारे में सोचें भी नहीं। हर तरह के अश्लील साहित्य से दूर रहें।
किसी अनुभवी योग गुरु से योग और प्राणायाम सीखना इन क्रियाओं को गलत तरीके से करने से लाभ के बजाय नुकसान होता है।
बहुत मसालेदार, बहुत खट्टे और बहुत नमकीन रस का सेवन हानिकारक होने के साथ-साथ बहुत ज्यादा मीठा खाना, बासी खाना, फास्ट फूड, जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन बेहद हानिकारक होता है इसलिए इससे बचे।