गर्भिणी का सुखप्रसव के लिए उपचार
गर्भवती महिलाओं को पहले, दूसरे और तीसरे महीने में मीठा, शीतल, और अधिक तरल हो एसा भोजन खाना चाहिए।
तीसरे महीने से पका हुवा लाल चावल, चौथे महीने में चावल के साथ दही, पांचवें महीने में दूध के साथ चावल, छठे महीने में घी के साथ चावल भोजन के रूप में देना चाहिए। या
तीसरे महीने में मीठा, शीतल और ज्यादा तरल हो एसाआहार दें। चौथे महीने में दूध और मक्खन से भरपूर और हृदय को प्रसन्न करने वाले खाद्य पदार्थों का भोजन के रुपमे सेवन करें।
पांचवें महीने में दूध और घी से युक्त प्रिय भोजन कराना। छठे महीने में गोखरू का कल्क में पका हुआ घी (गोखरू का कल्क से सिद्ध किया हुआ) मिलाकर औषधि के रूप में पिलाए।
सातवें महीने में विदारीकंद और सुगंधित पदार्थों से युक्त अच्छी तरह से पका हुआ भोजन दें। इन पदार्थों का सेवन गर्भिणी के साथ-साथ भ्रूण को भी संतुष्ट और पोषित करता है।
आठवें महीने में पुराने मल से छुटकारा पाने के लिए, पेट को शुद्ध करने के लिए और वायु का अनुलोमन के लिए कवाथ की बस्ती देनी चाहिए। ये कवाथ निचे दी गए प्रकार से बनाए।
कवाथ (काढ़ा) बनाने का तरीका
कपास का पौधा (पंचांग) या बेर का पौधा लें और उसे कुटके कड़ाही में डालें। इसमें पानी डालें, फिर बलाबीज, अतीबला, सोआ, मांस, दूध, दही के पानी, तेल, नमक, मैनफल, शहद और घी के साथ मिलाएं। ये सभी चीजे लेकर इसे अच्छी तरह से मिला ले और आग पर धीमी आंच रखकर कवाथ बनाले।
कवाथ (काढ़ा) बनाने का तरीका (2)
सबसे पहले दूध और जीवनीय द्रव्य लें और उसमें पानी मिलाकर कल्क बना लें। एक कड़ाही में तेल लें, उसमे तैयार किया हुआ कल्क डालें और तेल को अच्छी तरह से पकाएं। (सिद्ध करले)
इस तेल से अनुवासन नामक बस्ती देनी चाहिए। इन क्रियाओं को करने से वायु का अनुलोमन होता है। और ऐसे करने से गर्भवती महिला बिना किसी परेशानी के खुशी से बच्चे को जन्म देती है।
ये सभी क्रियाए करने के बाद गर्भवती महिला को प्रसव तक जंगली जानवरों के मांस के रस, यूश, राब और अन्य रसों से पूर्ण खाद्य पदार्थो से संतुष्ट करना। ऐसा करने से गर्भवती महिला को शक्ति मिलती है और अंगों का स्निग्ध होने से बिना किसी कठिनाई के सुख से प्रसव होता है।