सफेद दाग (कोढ़)
सफेद धब्बे (कुष्ठ) के कई कारण हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह रोग विपरीत आहार करनेसे एवं अशुद्ध आहार और जहरीले पदार्थों के सेवन से हो सकता है। रक्त में अशुद्धताएं भी बीमारी के कारणों में से एक हो सकती हैं।
कुष्ठ रोग होने के कारणों में से एक – पारंपरिक कारण हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति को यह बीमारी है, तो यह बीमारी भविष्य की पीढ़ियों में आ सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार, रोग वात, पित्त और कफ की असमानता होने के कारण होता है। कुष्ठ रोग अठारह प्रकार से होता है।
१ कापालिक, २ उदुम्बर, ३ मंडल, ४ विचर्चिका, ५ रुष्यजिहव, ६ विपादिका, ७ सिध्म, ८ एक कुष्ठ, ९ किटिभ, १० अलस, ११ दद्रु, १२ पामा, १३ विस्फोटक, १४ महाकुष्ठ, १५ चर्मदल , १६ पुंडरीक, 17 शतारू, 18 काकन
इसके अलावा एक श्वीत्रकुष्ठ नामक कुष्ठ रोग भी होता है । जो वात, पित्त और कफ तीन प्रकार के होते हैं।
इस प्रकार, (कुष्ठ) सफेद धब्बे कई प्रकार और कई कारणों से हो सकते हैं।
वज्र तैल
वज्र तैल
यह तैल सभी प्रकार के कुष्ठ रोगो को नष्ट करने में सक्षम है। तैल को निम्नानुसार बनाया जा सकता है।
1 ६४ तोला (७४६ ग्राम) सेहुण्ड (थूहर) का दूध
2 ६४ तोला (७४६ ग्राम) अर्क,(आक) का दूध
3 ६४ तोला (७४६ ग्राम) धतूरा के पत्ते का रस
4 ६४ तोला (७४६ ग्राम) चित्रक के पत्ते का रस
5 ६४ तोला (७४६ ग्राम) भैंस के गोबर का रस
6 ६४ तोला (७४६ ग्राम) तिल का तेल
64 तोला (746 ग्राम) तिल के तेल में उपरोक्त बाकि सभी वस्तुओं को पका कर रख लें।
एक बार जब इस तेल पक जाए (सिद्ध हो जाए) फिर दूसरी बार, यह तैल 2985 ग्राम देसी गाय के मूत्र में पकालों (सिद्ध करलों) । तेल के अच्छे से पक जाने के बाद इसे कांच के बर्तन में छानके भरले।
फिर, इस सिद्ध तेल में, १ शोधित सल्फर (शुद्ध गंधक) , २ शोधित (शुद्ध) भीलावा (भिलावन, बिल्लार), ३ शोधित (शुद्ध) मैनसिल, ४ शोधित (शुद्ध) हरताल, ५ विडंग, ६ अतिविषा, ७ शोधित (शुद्ध) बचनाग- करी हरी, ८ कड़वी तुम्बी, ९ उपलेट, १० (बच) घोड़ावज, ११ जटामांसी, १२ सौंठ, १३ काली मिर्च, १४ पीपर, १५ दारू हल्दी, १६ (मुलेठी) जेठीमध, १७ सज्जीखार (बेकिंग सोडा), १८ जीरा, और १९ देवदार – इन सभी वस्तुओं को १ – १ तौला (११.६६ ग्राम) लें और उन्हें बारीक चूर्ण बना लें और इस तैलमे मिलाले।
इस तरह से तैयार तैल को सुप्रसिद्ध वज्र तेल कहा जाता है । इस वज्र तैल से सभी प्रकार के कुष्ठ रोग नष्ट हो जाते हैं।
त्वचा के जिन भाग पर रोगका आक्रमण हो, वे सभी त्वचा के ऊपर यह तैल लगाने से रोग वश होकर मीट जाता है और रोगी सुख प्राप्त करता हे।