गर्भावस्था को रोकने के नियम और उपाय
गर्भ निरोधक नियम और उपाय
मासिक धर्म के दिनों को छोड़कर, यानि की मासिक धर्म के ४ दिनों बाद 16 दिनों तक गर्भवती रह सकती है। इसलिए यदि इन दिनों में स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा संयम बरता जाए तो गर्भवती होने की संभावना न के बराबर हो जाती है। यह संयमित जीवन एक प्रकार की प्राकृतिक भ्रूण रोकथाम के रूप में भी कार्य करता है। और यही सबसे अच्छा है।
इसके अलावा प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग करके भी गर्भ की रोकथाम की जा सकती है, जिनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं।
चूर्ण
जब स्त्री मासिकधर्ममें होती है तब, पीपर, वावाडिंग और टंकणखार तीनो चीजो को समान मात्रा में लेके उसका चूर्ण बना लो. और ये चूर्ण गायके दूध के साथ ग्रहण करने से गर्भ ठहरता नहीं है ।
गुड़हल
मासिक धर्म के दौरान, महिला को गुड़हल के सूखे फूलोंको पानी के साथ पिस के 3 दिन पीना चाहिए और अनुपान के तोर पे ४ तोला गुड खानेसे गर्भ नहीं ठहरता है।
निम् का तेल
निमके तेल को रुईमे भिगोनेके बाद इस रुई की बत्ती बनाकर योनीमे, मासिक धर्मके बाद लगातार (5 दिनो तक) रखे तो गर्भ नहीं ठहरता।
ढोली दूधी
ढोली दूधीकी जड़को बकरीके दूधमे 3 दिन पीनेसे मासिक स्त्राव बंध हो जाता है। और इसी कारण गर्भ ठहरनेकी आस ही नहीं रहेती।
काढ़ा
बेरके वृक्ष का गोंद तिलके तेलमे उबाल कर दो तोला रोजाना कोई स्त्री पिती है तो इससे गर्भ नहीं ठहरता।
तुलसी के पत्तो का काढ़ा
मासिक धर्म के बाद 4 से 5 दिनों तक तुलसी के पत्तों को उबालकर दिन में एक बार पीने से स्त्री गर्भवती नहीं होती हैं। (यदि कोई महिला को पित्त वाली प्रकृति है या गर्म प्रकृति है, तो ऐसी महिलाओं को इनसे बचना चाहिए)।
लौंग
सुबह जागने के बाद बिना कुल्ला किए दो लौंग चबाकर खाने से गर्भ नहीं ठहरता। लौंग भी प्रकृति में गर्म है इसलिए नियमों के अनुसार पानी का सेवन करके इसका लाभ लिया जा सकता है।
नीम का तेल
नियमित रूप से 5 से 7 मिली नीम के तेल का सेवन करने से गर्भ नहीं ठहरता है।
आवश्यक सूचना
- उपरोक्त सभी प्रयोग प्रभावी हैं, लेकिन हरएक महिला के शरीर के गुण और स्वभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए सावधानी रखनी आवश्यक है।
- गर्भवती होना, कब होना है, कब नहीं होना है, कब तक होना है, …. इनमें से कई सवालों के सही उत्तर नहीं मिल पा रहे हैं। क्यूकी कुदरती और स्वाभाविक रूप से महिला शरीर कार्य करता है मानविय इच्छाए इसमे बाधा नहीं डाल सकती। फिर भी प्रयास करने से समाधान स्वाभाविक रूप से और ईश्वरीय इच्छा से प्राप्त होता है।
अरंडी का तेल
- मासिक धर्म के 4 दिन बाद 4 दिन खाली पेट सुबह 10 मिली. अरंडी का तेल पीने से महीनेभर गर्भवती होने की संभावना नहीं होती है।
चूर्ण
५० ग्राम तालीसपत्र (Abies Webbiana)
५० ग्राम सोनागेरू (Red ochre)
तालीसपात्र और सोनागेरू का चूर्ण बनाकर इस मिश्रण तैयार कर एक साफ बोतल में भर लें। इस चूर्ण को सुबह खाली पेट 4 से 6 ग्राम सादे पानी के साथ, मासिक धर्म आने के 4 दिन बाद 4 दिन तक सेवन करने से गर्भधारण की संभावना समाप्त हो जाती है।
(यदि इस प्रयोग से पता चलता है कि भ्रूण जीवन भर नहीं टिकता है, तो इस दवा को विवेक से लें)
चमेली
जो महिला मासिक धर्म के 4 दिन छोड़ देती है और पांचवें दिन से सुबह खाली पेट चमेली की कली निगल जाती है, वह महिलाको गर्भ नहीं रहता है।
नोट:
इनमें से प्रत्येक प्रयोग की अधिकता या कोई अन्य कारणवश गर्भाशय को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए हर दवा का इस्तेमाल सोच-समझकर और समझदारी से करें।
मूढ़गर्भ की उत्पत्ति और लक्षण
दुष्ट वात अपनी चाल बादल कर अपने स्वयं के स्थान से विस्थापित हो जाती है और भ्रूण की गति को बाधित करती है। दुष्ट वात योनि और पेट में दर्द और पीड़ा का कारण बनती है, साथ ही मूत्र को अवरुद्ध करती है और भ्रूण को उसकी मूल स्थिति से चलायमान कर के जुका या मुड़ा देती है।
यह विस्थापित भ्रूण 4 तरह से होता है। 1 किलक, 2 प्रतिखुर, 3 बीजक, 4 परिध। कुछ प्राचार्य ८ भेदों की गणना करते हैं जिनमें से शेष चार ५ ऊर्ध्वबाहू, ६ चरणक, ७ शीर और ८ पार्श्वक हैं।
1 किलक
जिसका हाथ, पैर और सिर कील की तरह योनि में फंस जाते हैं, उसे किलक मूढ़गर्भ कहते हैं।
2 प्रतिखुर
जिसका दोनों हाथ और पैर बाहर निकले हुए हों और शेष शरीर योनि में अटका हुआ हो, उसे प्रतिखुर मूढ़गर्भ कहते है।
3 बीजक
बीजक मूढ़गर्भ वह होता है जिसका सिर दोनों हाथों के बीच होता है और शरीर का बाकी हिस्सा योनि में फंसा रहता है।
4 परिध
योनि में क्षैतिज रूप से पड़े भ्रूण को परिध मूढ़गर्भ कहा जाता है।
5 ऊर्ध्वबाहू
एसा भ्रूण जिसका सिर योनि के अंदर एक तरफ झुका होता है, एक हाथ से योनिद्वार को बंद करके अटका रहता है। जिसका सिर टेढ़ा हो गया हो, कुछ भ्रूण दोनों हाथों से योनिद्वार को ढंक कर अटका रहता है।
6 चरणक
कुछ भ्रूण जो अपनी दोनों जांघों से योनि द्वार को बंद कर दे एसा होता है। जिसकी एक जंघा मुड़ी हुई होती हो एसा कोई भ्रूण अपनी दूसरी जंघा से योनिद्वारको बंद कर देती है।
7 सिर
जिसकी कमर मुड़ी होती है, एसा कोई गर्भ अपना सिर से योनिद्वारको ढक कर अटका हुआ रहता है। ऐसा कुछ भ्रूण हाथों और पैरों से भी योनिद्वारको अवरोधित करता है।
8 पार्श्वक
एसा कोई भ्रूण जिसके दोनों जंघा मुड़े हुए हों और जिसका शरीर भी मुड़ा हुआ हो, एसा गर्भ जो टेढ़ा हो कर अपना कूल्हेके प्रदेशसे योनिद्वारको अवरोधित करता है। एसा कोई गर्भ जो छातीसे, साइडसे, या अपनी पीठसे योनिद्वारको बंद कर कर अटका रहेता है।
कोई मूढगर्भ सिर से योनिद्वारको रोकके रखता है। कोई मूढगर्भ पेटसे योनिद्वारको रोक लेता है। कोई मुड़ी हुई पीठ से योनिद्वारको रोकता है। एसा कोई भ्रूण जो अपना एक हाथ बाहर निकालता है और शरीर के बाकी हिस्सों से योनि को अवरुद्ध करता है। कोई दोनों हाथों को बाहर निकालता है और शरीर के बाकी हिस्सों से अटक जाता है।
कोई मूधगर्भ टूटी हुई गर्दनके कारण झुके हुए मुंह से अटकती है। यदि भ्रूण लेटा हुआ है या भ्रूण पीछे की ओर घूम रहा है, तो गति बाधित होती है और इसलिए गर्भ योनीमे फ़स जाती है और अटक जाती है।
मूढ़गर्भ वाली गर्भवती महिला के लाइलाज लक्षण
एसी महिला जो अचेतन होकर होश खो देती है, उसके सभी अंग ठंडे हो जाते हैं, उसे होश नहीं आता है, आदि, एक मूढ़गर्भ धारण किए हुए गर्भवती महिला के लक्षण हैं।
गर्भवती महिला के पेट पर नीली नसें दिखाई देती हैं, जो भ्रूण को मार देती हैं, या मृत भ्रूण गर्भवती महिला को मार देता है।
गर्भ में शिशु मर गया हो तब के लक्षण
जब मां के गर्भ में पल रहे शिशु की मृत्यु हो जाती है तो भ्रूण का हिलना-डुलना बंद हो जाता है (भ्रूण की गति रुक जाती है)
शिशुके जन्मके पहले देखे जाने वाले लक्षण दिखाय देना बंद हो जाता है साथ ही पेशाब और कफ़्फ़ पड़ना भी बंद हो जाता है। बच्चे के जन्म के लक्षण दिखना बंद हो जाते हैं।
शरीर का रंग कालाश युक्त और पांडुवर्ण समान हो जाता है। सांसों में दुर्गंध आती है। जब गर्भमे बालककी मृत्यु हो जाती है, तो यह सूज जाता है, जिससे गर्भिणी को बहुत दर्द होता है।
गर्भ और गर्भवती महिला की मौत का कारण
गर्भावस्था के पूरे दिन के दौरान हमले या इस तरह के किसी भी प्रकोप से गर्भ या गर्भवती महिला की मृत्यु हो जाती है।
गर्भवती महिलाके नजदीकी, करीबी, की मृत्यु और उसके आघात से उस गर्भवती महिला या गर्भ की मृत्यु हो सकती है।
मन में अशांति के कारण, जैसे चोरी, डकैती आदि से धन की हानि, साथ ही रोग की असहनीय पीड़ा, गर्भ में गर्भ मर जाता है या गर्भवती महिला की मृत्यु का कारण बनता है।
योनिसंवरण
गर्भवती महिलाओं को वायुजनित पदार्थों का अति स्सेवन करना,, संभोग, रातको जागना आदि के कारण वात बढ़ जाता है और वातप्रकोप होता है। वह वातप्रकोप ऊर्ध्वगतिसे योनि में ऊपर की ओर जाती है और फिर गर्भाशय के दरवाजे को बंद कर देती है। यह योनिसंवरण नामक बीमारी है।
यह वात अजन्मे बच्चे को दर्द देती है। गर्भाशय का दरवाजा वात से अवरुद्ध होने पर बच्चे की दम घुटने से मौत हो जाती है। साथ ही दिल के ऊपरी हिस्से से सांस लेना गर्भवती के लिए घातक साबित होता है।
जब भ्रूण हिलता नहीं है तो वह पेट से जुड़ा रहता है।पेट में वात और खून के कारण पेटमे दर्द पेदा होना, गर्भ की मूढ़ता, खांसी, सांस लेने में तकलीफ आदि गर्भवती महिला की मृत्यु का कारण बनते हैं।
मूढगर्भ का उपाय
संकट के समय कई महिलाओं को सफलतापूर्वक जन्म देने में कुशल दाई को उसके द्वारा किए गए मूढगर्भ के उपाय करने के लिए बुलाना।
यदि भ्रूण जीवित हो तो चतुर दाई को चाहिए कि वह अपने हाथ घीसे सन ले और घीसे साना हाथ योनि में रखे और भ्रूण को चालाकी और सावधानी से बाहरकी ओर खिचके निकाले।
यदि भ्रूण मर जाता है, तो शल्य चिकित्सा में कुशल दाई को गर्भवती महिला की योनि में सशस्त्र हाथ डालना चाहिए और मृत भ्रूण को काटकर बाहर निकाल देना चाहिए। लेकिन अंदर हथियारबंद हाथ डालने के बाद उसे पता चलता है कि भ्रूण में थोड़ी सी चेतना है, उसे मत काटो।
क्योंकि गलती से भी एक सचेत भ्रूणको काट देनेसे गर्भवती महिला की मृत्यु हो जाती है। इसलिए, जब भ्रूण मृत दिखाई दे, तो उसे बिना किसी संदेह के काट देना चाहिए और बाहर निकाल देना चाहिए।
यदि कोई मृत भ्रूण गर्भ में अधिक समय तक रहता है, तो गर्भवती महिला की जान तुरंत चली जाती है इसलिए इसका उपाय तुरंत करना चाहिए।
अटके हुए अंग को काटकर बाहर निकाल के स्त्री की रक्षा करना चाहिए।
भ्रूण को निकालने के बाद महिला के शरीर पर गर्म पानी लगाएं, तेल की मालिश करें और योनि में घी लगाएं जिससे योनि कोमल और दर्द रहित हो जाए।
वात से गर्भ सुख जानेके बाद करने का उपचार
जिस स्त्री का भ्रूण सूख गया हो उसका पेट नहीं बढ़ता और खाली जैसा प्रतीत होता है। ऐसे में महिला को जैविक जड़ी बूटियों (जीवनीयगण की औषधिया) का क़लक़ बनाकर ये क़लक़ से पका हुआ दूध पिलाना चाहिए।
मांस का रस पीलाना। (शाकाहारी महिलाओं को नहीं पीना चाहिए)
उत्तम प्रकारके जड़ी-बूटियों का सेवन कारवाना चाहिए जो भ्रूण का पुन: विकास करने और गति देने के लिए बेहतर पुष्टि प्रदान करते हैं।
जब गर्भमे भ्रूण सुकी लकड़ीकी तरह सुख सा गया हो तब सूखे भ्रूण को कोख से इस प्रकार निकालें कि इससे गर्भवती महिला को कोई नुकसान न हो। आजकल किसी जानकार और अनुभवी डॉक्टर से सर्वोत्तम उपचार लेना सबसे अच्छा है।
गर्भके कारण पेट बड़े होने के बाद सिकुड़ने के लक्षण और उपचार :
नगोदर
वीर्य और रज से बंधा और जिसमें कोई अंग विकसित नहीं हुआ हो ऐसा गर्भस्थ पेटको क्लिष्ट वायु (बिगड़ा हुआ वात) बड़ा कर देता है। और परमात्मा की इच्छा से पेट फिर छोटा हो जाता है। यदि ऐसा कोई लक्षण हो तो उसे “नगोदर” नामक रोग कहते हैं।
वायुके उपद्रव के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ नगोदरसे भ्रूण सिकुड़ता है। ऐसा भ्रूण लंबे समय तक पेट में नहीं हिलता। (स्थिर हो जाता है)
इस प्रकारके लक्षणों को जानकर, तीक्ष्णता और उग्रता रहित औषधोसे स्नेहन इत्यादि कोमल उपचारो से गर्भवती महिला की चिकित्सा करनी चाहिए।
टिटोड़ा के मांस का रस और अच्छी मात्रा में घी लेकर उसमे अच्छेसे पकी हुई राब गर्भवती महिला को सेवन के लिए देंनि चाहिए।
घुघरी बनाकर उड़द, तिल और बिली के फल (कच्चा बिला) लेकर 7 दिन तक घुघरी को इससे सिद्ध कर कर गर्भवती महिला को खिलाएं। और शहद का अनुपान करवाए।