योनिरोग

योनिरोग

योनि रोग यानि ये योनि में होने वाले रोग हैं। यहाँ योनिरोगों को प्रजनन अंगो के संदर्भ में लिया गया है। योनि रोग बीस प्रकार के होते हैं।

१    वात्तिक योनीरोग                           २    पैतिक योनीरोग

३    स्लेष्मिक योनीरोग                         ४    सान्निपातिक योनीरोग

५    रक्तज योनीरोग                            ६    लोहितक्षयरज योनीरोग

७    शुष्का योनीरोग                             ८    वामिनी योनीरोग

९    शंढी योनीरोग                              १०    अंतर्मुखी योनी

११    सुचीमुखी योनी                           १२    विप्लुता योनी

१३    परीप्लुता योनी                            १४    जतग्नी योनी

१५    उपप्लुता योनी                            १६    प्राकचरणा योनी

१७    महा योनी                                   १८    कर्णिनी योनी

१९    नंदा योनी                                   २०    अतिचरणा योनी

योनि के 20 प्रकार के रोग होते हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है। संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है।

१ – वात्तिक योनीरोग

वात्तिक योनिरोग का दूसरा नाम वातला योनि भी है।इस प्रकार की योनि कठोर, सुन्न, शूल वाली और पीड़ादायक होती है।

२ – पैतिक योनीरोग

पित्त के लक्षण, जलन, पक जाना, योनि से काले और पीले रंग के निर्वहन के साथ बुखार। इसका दूसरा नाम पित्तला योनि भी है।

३ – स्लेष्मिक योनीरोग

इस प्रकार की कफयुक्त योनि ठंडी और चिपचिपी होती है। बहुत खुजली होती है। इसे स्लेष्मला योनि के रूप में भी जाना जाता है।

४ – सान्निपातिक योनीरोग

ऐसी योनि में वात , पित्त और कफ ये तीनो दोषो के लक्षण दिखाई देते हैं।

५ – रक्तज योनीरोग

इस प्रकार की योनि विस्थापित होती है। और इसलिए वह बड़ी मुश्किल से बच्चे को जन्म देती है। इस योनि को रक्तजा योनि भी कहा जाता है।

६ – लोहितक्षयरज योनीरोग

ऐसी योनि से योनि स्राव क्षीण, कृष, और वैवर्ण्य जैसा देखा जाता है। इस योनि से जलन के साथ रक्त बहता है।

७ – शुष्का योनीरोग

इस प्रकार की योनि में आर्तव नष्ट पाई जाती हैं। और आर्तव होने पर भी इसका उपयोग प्रजनन के लिए उपयुक्त नहीं होता है।  

८ – वामिनी योनीरोग

इस प्रकार की योनि वीर्य को आर्तव के साथ साथ बाहर निकाल देती है। यह योनि में वायु के रोग की बीमारी के प्रभाव के कारण होता है।

९ – शंढी योनीरोग

ऐसी योनि आर्तव रहित होती है, इसलिए सेक्स करने से खुरदरापन महसूस होता है। ऐसी योनि वाली महिलाओं के स्तन भी मोटे (पुष्ट) नहीं होते हैं। 

१० – अंतर्मुखी योनी

बहुत बड़े लिंग वाले पुरुष के साथ सेक्स करने से लड़की की योनि सूज जाती है और अंडे जैसी हो जाती है। इसे अंतर्मुखी योनि कहते हैं। इसमें योनि अंडे की तरह बाहर निकल आती है। यह भी एक प्रकार का गर्भाशय योनिभ्रंश का प्रकार है।

११ – सुचीमुखी योनी

ऐसी योनि का छिद्र सुई की तरह पतला होता हैं, इसलिए इसे भोगना बहुत मुश्किल हो सकता है (संभोगमे कष्ट)। आधुनिक शब्दों में इस रोग की तुलना (infantile uterus) से की जा सकती है।  

१२ – विप्लुता योनी

इस प्रकार की योनि में वायु के प्रभाव से बहुत पीड़ा होती है। ऐसा दर्द धीरे-धीरे रोजाना शुरू रहता है।

१३ – परीप्लुता योनी

ऐसी योनि में संभोग के दौरान बहुत दर्द होता है।

१४ – जातग्नी योनी

इस प्रकार की योनि – जो भ्रूण बंधा होता है, उसको आर्तव क्षय के कारण मारता है। इसलिए ऐसी योनि को “पुत्रघ्नी” भी कहा जाता है। ऐसी योनि में आदतन गर्भपात की प्रवृत्ति (Habitual Abortion) पाई जाती है।

१५ – उपप्लुता योनी

इस प्रकार की योनि में योनि के आसपास के हिस्सों से बहुत अधिक दर्द के साथ झागदार आर्तव निकलता हैं।

१६ – प्राकचरणा योनी

इस तरह के योनि संभोग के दौरान, पुरुष से पहले चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है और शिथिल हो जाती है। इसमें गर्भ धारण नहीं हो सकता।

१७ – महा योनी

ऐसी योनि में योनि का मुंह हमेशा विकसित होता है।

१८ – कर्णिनी योनी

ऐसी योनि में कलिका के समान मांस की गांठ होती है।

१९ – नंदा योनी

ऐसी योनियों को संभोग से बहुत आनंद मिलता है, और इसलिए उनमें सेक्स की कई इच्छाएँ होती हैं। ऐसी योनि को अत्यानंदा भी कहा जाता है।        

२० – अतिचरणा योनी

ऐसी योनि में कफ़ के प्रभाव से संभोग के दौरान खुजली होती है। यही वजह है कि वह ढेर सारे सेक्स से भी संतुष्ट नहीं होती हैं।

महिलाओं के योनिरोग के लिए कुछ उपाय

१ – सिध्ध तेल

तगर, बैंगन, कट, सेंधा नमक और देवदार। ये सब औषधिया ले के इसका कल्क बना ले। एक कड़ाई में तिल का तेल लेंकर इस कल्क को इसमें डालें और इस तेल को पकाएं (तेल को सिद्ध करले)।

तगर
बैंगन
कट
सेंधा नमक
देवदार

इस सिद्ध तेल में थोडी रुई भिगो कर योनि में धारण करने से विप्लुता योनि का दर्द दूर होता है।

૨ – भाप

जिस योनि वातला, सख्त, बदबूदार, सुन्न या खुरदरी हो तो उस योनी को भाप दें –

वात नाशक औषधिया ले के इसका काढ़ा बना ले। किसी बंद जगह पर गड्ढा बनाएं जहां हवा आती जाती न हो और गड्ढे में किनारे तक एक मटका गाड़ दें। इस मटके को आगे बनाया हुआ काढ़ा से भर दे और इसमें लोहे की सख्त गर्म कीलें डालकर रोगी को उस पर कुकड़ू की तरह बिठाए और भाप के द्वारा योनी से पसीना निकाल दें।

या योनि में हमेशा वायु नाशक तेल में भिगोया रुई का फाया लगाएं रखे।

३ – सिध्ध तेल

पित्त के योनिरोग के लिए पित्तनाशक जड़ी बूटियों से सिद्ध किया हुआ तेल का फाया योनि में पहनना या तेल में निम की फली को डाल कर तेल सिद्ध कर ले और इस तेल में फाया भिगोकर योनि में पहने।

४ – पेय

आवला
मिश्री
हुलहुल

आवला का रस और मिश्री को मिलाकर उसका सेवन करने से या पका चावल के पानी के साथ हुलहुल की जड़ को पीने से योनि की जलन दूर हो जाती है।

५ – चूर्ण (पहनने के लिए)

बच
अडूसा
परवल
प्रियंगु
नीम
अमलतास

योनि से दुर्गंध आने पर – बच, अडूसा, कडवा परवल, प्रियंगु और नीम को लेकर पीस लें और चूर्ण बना ले। इस चूर्ण को रुई में लेकर योनी में पहने। और अमलतास इत्यादि जैसी औषधिया से योनी को धोए। ऐसा करने से योनि से दुर्गंध नहीं आती है।

६ – बाती (पहनने के लिए)

પીપર
पीपली
મરી
काली मिर्च
उड़द
सोआ

कफ से संबंधित योनिरोग के लिए पीपली, काली मिर्च, उड़द, सोआ, कट और सेंधा नमक लेकर तर्जनी (पहली उंगली) जैसी मोटी और लंबी बाती बना लें। इस बाती को योनि में धारण करने से कफ से संबंधित योनि के रोग ठीक हो जाते हैं।

७ – काढ़ा (लगाने के लिए)

गिलोय
जमालगोटा

त्रिफला, गिलोय और जमालगोटा की जड़ का कवाथ (काढ़ा) बनाकर इन से योनि को धोने से योनि की खुजली दूर होती है। चीनी को योनि पर मलने से योनि की खुजली की अवश्य समाप्त हो जाती है। साथ ही अगर योनि में शूल हो तो बच और सोआ की मालिश करें।

८ – चूर्ण (पहनने के लिए)

कत्था
जायफल
सुपारी
मुंग

कत्था, हरड, जायफल, नीम के पत्तो और सुपारी इस सभी का चूर्ण बना लो। मुंग का युष बनाओ। इस चूर्ण को मुंग के युष में पीसकर सुखा लें और कपड़े से छान ले। इस चूर्ण को योनि में लगाने से योनि सिकुड़ जाती है और पानी गिरता हो तो वो बंद हो जाता है।

९ – कवाथ (धोने के लिए)

कवांच

कवांच (कौचा ) की जड़ें लें और उसका काढ़ा (कवाथ) बना लें। इस काढ़े से योनि को धोने से योनि (संकुचित) संकरी हो जाती है।

१० – भांग

भांग

भांग को बारीक़ पीस के छान ले और छोटी छोटी गठरी बना ले। १ प्रहर तक इस गठरी को योनी में पहेनने से योनि बहुत संकरी हो जाती है।

११ – सेमल का गोंद

सेमल का गोंद

सेमल का गोंद को बहुत कूट के एक साफ सूती कपडे में गठरी बनाके यदि अपनी योनि में 1 प्रहर तक पहनती है, तो योनि संकरी हो जाती है।

१२ – कवाथ (धोने के लिए)

कसेरू
बोल
माजूफल
बेर

आंवला की जड़, कसेरू, बोल की जड़, माजूफल, बेर की जड़ और अडूसा की जड़ यह सब ले के कवाथ बना के इससे योनि को धोने से योनि संकरी (संकुचित) होती है।

१३ – दहीं

दही के घोल (मिश्रण) से योनि को धोने से योनि संकरी हो जाती है।

१४ – चूर्ण (पहनने के लिए)

फिटकरी
धवई के फूल

सफेद कत्था, फूली हुई फिटकरी, धवई का फूल और मांजुफल यह सभी को बारीक़ पीस के साफ कपड में छोटी गठरी बना ले। इस गठरी को योनि मे पहनने से योनी संकरी होती है।

योनि के सभी रोगों को दूर करने में फलधृत

मंजीठ, मुलेठी, कट, त्रिफला, मिश्री, अतीबला का बीज, दोगुनी शतावरी (१४ तोला), चोगुनी अश्वगंधा (२८ तोला), अजवाइन, हल्दी, दारुहल्दी, रागी, कटुकी, कमल, पोयन, किशमिश, सुखड़ (चंदन)और रक्तचंदन ये सभी औषधिया एक एक तोला ले और इसे खरल में कूट के चटनी बना ले।

मंजीठ
मुलेठी
अतीबला
शतावरी
अश्वगंधा
अजवाइन
हल्दी
दारुहल्दी
रागी
कटुकी
कमल
किशमिश
सुखड़
रक्तचंदन

इक कड़ाई में ६४ तोला घी लेके इसमें सभी औषधिया से तैयार की गई चटनी मिला दो। फिर इसमें १२८ तोला शतावरी का रस और १२८ तोला दूध मिलाकर धीमी आंच पर रखें।

(जिसका बछड़ा जीवित हो और वर्णी गाय हो ऐसी गाय का दूध लेना और अग्नि गाय के गोबर देना)

जब सारी जड़ी-बूटियां जल जाएं और केवल घी ही बचे तब कड़ाई को नीचे उतार कर घी को छान कर एक साफ बर्तन में भर ले।

यदि कोई व्यक्ति इस औषधीय घी का सेवन करता है और रतिक्रीड़ा करता है, तो वह इसमें शक्तिवान रहता है। साथ ही वीर, बुद्धिमान और स्वरुपवान पुत्र पैदा करने वाले बनते है।

जो महिलाएं को गर्भ का स्त्राव हो जाता हैं और जो महिलाएं मृत बच्चों को जन्म देती हैं या बच्चे जो कमजोर, दुर्बल और अल्पायु हो ऐसा बच्चे को जन्म देती हो या फिर सिर्फ जो महिलाएं केवल बेटियों को ही जन्म देती हैं, उन्हें इस घी का अवश्य सेवन करना चाहिए। ताकि यह सर्वे परेशानी से बचा जा सके।

यह फलधृत योनिस्राव, रक्त के दोष और कई अन्य योनि रोगों को दूर करने वाला है।

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