नपुंसकता
पौरुषेय रोग
जिन रोगो को जातीय रोग में समाहित किया हुआ है ऐसा कुछ पौरुषीय से सबंधित रोगो के बारे मे यहां हम संक्षेप में जानने, समझने और गहराई से समाधान के बारे मे देखेंगे।
ज्यादातर लोग जातीय समस्याओं का खुलासा नहीं करते हैं जिससे समस्या और बढ़कर बड़ा रूप ले कर सताती है। पहले तो ये जातीय गुप्त रोग और उपर से मन ही मन सहन करने के कारन मानसिक तनाव से रोग ओर बढ़ जाता है।
साथ ही रोगी और कमजोर हो जाता है। तो सबसे पहले समझें कि बीमारी क्या है? और इसका कारण क्या है।
पौरुषत्व दोष
पुरुषत्व दोष के अंतर्गत हम वीर्य का अभाव या वीर्य की कमी के कारण उत्पन्न होने वाले दोषों को देखेंगे। ऐसे दोषों को नपुंसकता के रूप में जाना जाता है और ऐसे दोषों को पांच प्रकार का कहा जाता है।
१ इर्ष्यक
२ आसेक्य
३ कुंभीक
४ सुगन्धि
५ षंढ
नपुंसकता पैकी की षंढ नामक दोष से पेहचाने जाने वाली नपुंसकता के दो प्रकार माना जाता है। पहला प्रकार नर षंढ है और दूसरा प्रकार नारी षंढ है।
ऊपर बताए अनुसार नपुंसकता पांच प्रकार की होती है। कहते हैं नपुंसकता का दोष गर्भधारण के समय से ही माता-पिता के दोष के कारण गर्भ रहते समय से ही गर्भ में रहता है, जो जन्म के बाद सही समय पर प्रकट होता है।
आइए पांच प्रकार की नपुसंकताओं के बारे में जानने और समाधान खोजने का प्रयास करें।
इर्ष्यक
ऐसा रोगी संभोग में तब प्रवेश कर सकता है जब वह किसी अन्य पुरुष या जानवर को यौन क्रिया में लिप्त देखता है। ऐसा रोगी उत्तेजित होने पर सेक्स नहीं कर सकता क्योंकि उसका लिंग अचेतन रहता है।
जब वह दूसरे की यौन क्रीड़ा देखता है तब उसके लिंग में चेतना आती है और तभी वह सेक्स करने के लिए समर्थ हो पाता है। और इसलिए इसका दूसरा नाम “दग्योनी” भी है।
आसेक्य
एक प्रकार से इस स्थिति को अनुवांशिकी कहा जा सकता है, क्योंकि ऐसी स्थिति माता -पिता का रज – शुक्र की कमी के कारण पैदा होती है। ऐसा व्यक्ति तब तक संभोग (सेक्स) नहीं कर सकता जब तक कि वो मुंह में किसी और का लिंग लेकर मैथुन करके इसका वीर्यपान न कर ले।
स्खलित वीर्य को पिने के बाद ही उसे संभोग करने की क्षमता प्राप्त होती है। इसलिए इसे “मुखयोनी” भी कहा जाता है।
कुंभीक
जो पुरुष अपने गुदाद्वार में अन्य पुरुष के द्वारा संभोग कराने से तृप्त हो जाता है, वह कुंभीक नपुंसक कहलाता है। ऐसा पुरुष अपनी इच्छा के अनुसार सेक्स नहीं कर सकता लेकिन उसके लिंग में पहले गुदा मैथुन कराने के बाद ही चेतना आती है, और इसलिए वह गुदा मैथुन के बाद ही सेक्स कर सकता है।
एक अन्य मत के अनुसार जब वह किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो उसके लिंग में चेतना नहीं आती है, इसलिए वह सबसे पहले महिला के गुदा में ही मैथुन (सेक्स) करता है। लिंग गुदा में खड़ा होता है, लिंग में चेतना आती है, और फिर वह संभोग (सेक्स) कर सकता है।
ऋषि कश्यप कहते हैं कि यदि श्लेष्म रेत (वीर्य) वाला पुरुष मासिक धर्म वाली महिला के साथ सम्भोग करता है, तो उस समय महिला का काम शांत नहीं होता है और यदि महिला उस समय गर्भवती हो जाती है, तो गर्भ में होने वाला बच्चा कुंभीक पैदा होता है।
सुगन्धि
जो पुरुष पुतीयोनी से उत्पन्न होता है उसे सुगन्धि नपुंसक कहा जाता है। इसे “सौगन्धिक” के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा पुरुष किसी दूसरे पुरुष के लिंग को सूंघने के बाद ही या किसी महिला की योनि को सूंघने के बाद ही उसके लिंग में उत्थान होता है और वह संभोग कर सकता है। इसे “नासयोनी” भी कहा जाता है। (“पुतीयोनी” के बारे में योनि के सबधित लेख में चर्चा देखें)
षंढ
आयुर्वेद के अनुसार – क्षणिक सुख भोगने के लिए मूर्ख पुरुष और स्त्री मासिक धर्म के दौरान निचे पुरुष और स्त्री ऊपर रहके संभोग करते हैं, और यदि गर्भ रहता है, तो ऐसे गर्भ से पैदा होने वाला बच्चा षंढ हो जाता है। . ऐसी नपुंसकता दो प्रकार की होती है।
1 नर षंढ
2 नारी षंढ
नर षंढ
यदि कोई बच्चा पुरुष पैदा होता है, तो उसके लक्षण महिला के समान होते हैं। उनके तौर-तरीके, वाणी आदि एक महिला के समान होते हैं, और उनको दाढ़ी या मूंछ भी नहीं होते। ऐसा षंढ दूसरे पुरुष को अपने ऊपर सुलाकर अपने ही लिंग में वीर्य का स्खलन करवाता है।
नारी षंढ
यदि कोई बच्चा स्त्री रूप में पैदा होता है, तो उसमें पुरुष के समान गुण होते हैं। उसके सभी हावभाव एक आदमी की तरह हैं। वह एक स्तनहीन, दाढ़ी मूंछ वाली और दूसरी महिला को निचे लेटा के उसके साथ योनि को रगड़ती है।
ऊपर बताए गए पांच प्रकार की नपुंसकता में से पहले चार प्रकार के – 1 इर्ष्यक, 2 आसेक्य, 3 कुंभीक, और ४ सुगन्धि में वीर्य होता है। विकृती से भरे हरकते उन्हें मैथुन (सेक्स) करने की शक्ति देते हैं। यह विकृती से भरी प्रवृत्ति उनमें स्वाभाविक और जन्मजात होती है।
लेकिन षंढ नपंसुको में वीर्य नहीं होता, वे मैथुन (सेक्स) नहीं कर सकते।
वर्तमान युग में देखे जाने वाली होमोसेक्स्युअल, लेस्बियन, साथ साथ विकृत मानस और विचारो धारण करने वाला और विकृत यौन क्रियाएँ करने वाला ऊपर वर्णित प्रकारों में शामिल हैं।