मैथुन संबंधित

मैथुन संबंधित

हर प्राणी की शरीर के साथ यौन संबंध बनाने की निरंतर इच्छाए होती रहती है। अगर मैथुन करने की इच्छा के बावजूद भी मैथुन (सेक्स) नहीं करता हैं, तो उसको प्रमेह नामक बीमारी हो जाती है। शरीर की चर्बी बहुत बढ़ जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

नारीत्व की स्थिति

स्त्री को सोलह वर्ष की आयु तक बाला कहा जाता है। वह अगले सोलह साल यानी बत्तीस साल तक युवान बताया जाता है। उसे अगले पचास वर्षों के लिए प्रौढ़ा कहा जाता है और महिला को पचास वर्ष से अधिक के लिए एक वृद्धा (कामक्रीड़ा से निवृत्त) कहा जाता है। वृद्ध उम्र की महिलाओं में काम (सेक्स) के प्रति कोई उत्साह नहीं होता है।

ऋतु के अनुसार महिला का चयन

कामी (मैथुन में आसक्त) पुरुष को गर्मी और पतझड़ में (बाला) कन्या का साथ हितकारी माना जाता है। सर्दियों में युवान स्त्री का साथ सबसे अच्छा माना जाता है और (प्रौढ़ा) वयस्क महिला को वर्षा ऋतु और वसंत ऋतु में हितकारी माना जाता है।

नित्य बाला स्त्री के साथ संभोग करने से वह ताकत बढ़ाती है। एक युवा महिला का सेवन करने से वह ऊर्जा कम करती है। और एक वयस्क (प्रौढ़ा) स्त्री के साथ यौन संबंध रखने से वह बुढ़ापा लाती है।

बल बढ़ाने वाली ६ चीजे

ताजा मांस, नया अन्न, बाला स्त्री, दूध का आहार, घी और गर्म पानी से स्नान ये छह चीजें हैं जो तुरंत ताकत देती हैं।

छह चीजें जो बल को नष्ट करती हैं

सड़ा-गला मांस, बूढ़ी औरत, संक्रांति का सूर्य (कन्या राशि में आया सूर्य), तत्काल जमे हुए या अच्छी तरह नहीं जमे हुए दही, सुबह का मैथुन (सेक्स) और सुबह की नींद, ये छह चीजें तात्कालिक बल को नष्ट करने वाली हैं।

उम्र के अनुसार स्त्रीसंग का फल

अगर कोई वृद्ध आदमी किसी जवान औरत के साथ यौन संबंध रखता है, तो बूढ़ा जवान हो जाता है और अगर युवान पुरुष किसी वृद्धा स्त्री या उससे उम्र मे बड़ीऔरत के साथ यौन संबंध रखता है, तो युवक एक बूढ़े आदमी की तरह हो जाता है।

संयमित जीवन जीने के लाभ

महिलाओं और संभोग (सेक्स) के मामले में संयम बरतने वाले पुरुष लंबे समय तक जीते हैं। संयमी पुरुष तुरंत बूढ़े नहीं होते। ऐसे पुरुषों का शरीर बलवान, सख्त और अच्छे वर्ण वाला होता है। साथ ही उनका शरीर मांसल और लचीला होता है।

ऋतु के अनुसार संभोग का समय

हेमंत ऋतु में पुरुष को चाहिए कि वह वजीकरण जड़ी-बूटियों का अच्छी तरह से सेवन करे और भरपूर शक्ति प्राप्त करे और अपनी इच्छा के अनुसार मैथुन (सेक्स) करे।

शिशिर ऋतु (सर्दियों) में आदमी जितना चाहे उतना सेक्स कर सकता है।

वसंत ऋतु और शरद ऋतु में हर तीन दिन में एक बार सेक्स करें।

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बारिश (वर्षा ऋतु) के मौसम में और गर्मी (ग्रीष्म ऋतु) में हर पंद्रह दिन में एक बार सेक्स करना।

समझदार और संयमी पुरुष को हर मौसम में तीन दिन में एक बार स्त्री के साथ संभोग करना चाहिए।

सर्दियों (शीत काल) में रात में, गर्मी (ग्रीष्म ऋतु) में दिन में, बसंत ऋतु में रात और दिन में भी संभोग (सेक्स) किया जा सकता है।

वर्षा ऋतु में जब गरज (मेघ गर्जना) होती है तब और पतझड़ (शरद ऋतु) में जब भी इच्छा होती है तब कामक्रीड़ा (सेक्स) किया जा सकता है।

संभोग के लिए अनुचित समय

सूर्योदय के समय, दोपहर के वक्त, और सूर्यास्त के समय स्त्री का भोग न भोगे (संभोग न करे)।

किसी पवित्र पर्व के समय, पवित्र ईश्वरीय कर्म करने के समय और आधी रात के समय स्त्री के साथ संभोग न करें।

स्त्रीसंग के लिए स्थान

स्त्री विहार या मैथुन के लिए पुरुष को एकांत, सुगंधित, सुख दे ऐसी जगह, और खुशनुमा सुगन्धित हवा आती हो ऐसा स्थान में रहना।

लेकिन जहां बुजुर्ग पास हों, जहां जगह खुली हो और जहां मन अशांत करने वाली आवाजे आती हो, ऐसा स्थान का त्याग करना, या ऐसी जगह पर स्त्री के साथ मैथुन न करे।

पुरुष को महिला के साथ संभोग करने के संबंध में

जिस पुरुष को पुत्र की चाह हो उस व्यक्ति को गर्म पानी से स्नान कर उसके अंगों पर सुगन्धित द्रव्य (इत्र) लगाना चाहिए। वीर्यवर्धक और उत्तम प्रकार के भोजन का सेवन करें।

भोजन के बाद सबसे अच्छे प्रकार के मुखवास से मुँह सुगंधित करके सबसे अच्छे गहने और कपड़े पहने, और अपने दिल में प्यार भरके एक सुंदर बिस्तर पर महिला के पास काम की इच्छा लेकर (संभोग के लिए) जाना।

वाजीकरण के प्रयोग से एक शक्तिशाली और पराक्रमी पुरुष को सहर्ष सुन्दर, गुणवान, अपने जैसा स्वभाव को रखने वाली, अच्छे कुल की, और बहुत कामेच्छा रखने वाली महिला को विवेक से भोगना चाहिए।

वह युवती (युवान स्त्री) के साथ कामक्रीड़ा में सप्रेम शामिल होना जो सकारात्मक दृष्टिकोण वाली, कामक्रीड़ा में साथ देने वाली, और उत्तम प्रकार के आभूषण से सुशोभित हैं।

जो पुरुष अधीर हो, भूखे या अधिक खाना खाया हो, अंगों में दर्द होता हो और प्यासे पुरुष को स्त्री के साथ संभोग नहीं करना चाहिए।

बच्चों, बुजुर्गों, मल मूत्र के वेग से पीड़ित पुरुषों और यौन सबंध से दर्द हो ऐसे रोगों वाले पुरुषों को सेक्स नहीं करना चाहिए।

कैसी स्त्री के साथ संभोग न करे

ऐसी महिला के साथ संभोग नहीं करना चाहिए जो रजस्वला (मासिकधर्म में) हो।

जो स्त्री में कामेच्छा न हो, जो गंदी हो, जिसमें प्रेम न हो और जो स्नेह बगैर की हो, उस स्त्री के साथ संभोग न करें।

अपने से उम्र में बड़ी हो, किसी रोग से ग्रसित हो, गंदे अंगों वाली, गर्भवती और घृणा करने वाली स्त्री के साथ संभोग न करें।

जिन स्त्रियों को योनि के रोग हैं, जो अपने ही गोत्र में जन्मी हैं, जो गुरुपत्नि हैं और जिन्होंने भेख (संसार त्याग कर साधु जीवन व्यतीत करती हो) लिया हो, उन स्त्रीया भोगने योग्य नहीं है अत: उन्हें प्रणाम करना।

पुरुष जो अपने दिमाग को नियंत्रित नहीं कर सकता है और मासिक धर्म वाली महिला के साथ यौन संबंध रखता है, उसकी दृष्टि, आयुष्य और तेज का ह्रास होता है।

मैथुन निषेध स्त्री के संबंधमे

कोई महिला गर्भवती होने पर उसके साथ संभोग न करे क्योंकि इससे गर्भ में रहे अजन्मे बच्चे को दर्द होता है।

किसी रोग से पीड़ित स्त्री को भोगने (सेक्स करने) से पुरुष की शक्ति का ह्रास होता है। इसलिए ऐसी महिला संभोग के लिए वर्जित है।

कम अंगो वाली, मलिन, द्वेष युक्त, दुर्बल और बांज स्त्री के साथ यौन संबंध बनाने और खुले स्थान में स्त्री के साथ संभोग करने पर वीर्य क्षीण होता है।

जिस स्त्री के बच्चे मर रहे हों, उसके पास कामेच्छा से नहीं जाना चाहिए।

मैथुन निषेध पुरुष के संबंधमे

यदि कोई पुरुष भूखा, प्यासा, बेचैन और शक्तिहीन हो और स्त्री के साथ यौन संबंध बनाता है तो वीर्य की हानि होती है।

यदि कोई पुरुष जो कमजोर और बेचैन है, वह दिन के मध्य में (मध्यान्ह समय पर) किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है, तो वीर्य की हानि होती है और उसे वायु का प्रकोप (वात सबंधी रोग) होता है।

यदि कोई रोगग्रस्त पुरुष कामेच्छा वश होकर किसी महिला के साथ संभोग करता है, तो उसे दर्द, प्लीहा की बीमारिया, बेहोशी और यहां तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है।

भोर के समय और आधी रात को स्त्री के साथ संभोग करने से वायु और पित्त का प्रकोप होता है।

किसी जानवर की योनि में सेक्स करने से, बिना योनि के सृष्टि विरुद्ध मैथुन करने सेऔर रोगग्रस्त योनि में मैथुन (सेक्स) करने से आदमी को चांदी का रोग हो जाता है। साथ ही वायु का प्रकोप और वीर्य और सुख का नाश होता है।

मलमूत्र के आवेग को रोकने से, वीर्य का आवेग को रोकने से, और सीधा लेटके संभोग करने से वीर्य की पथरी होना संभव है।

अत्यधिक संभोग करने से पेट का दर्द, खांसी, बुखार, सांस की तकलीफ, कमजोरी, तपेदिक (क्षय रोग) और अपक्षयी विकार (पार्किंसन) के रोग (यह रोग में शरीर या कोई अंग में कंपन होते रहना, ये वायु से सबंधित रोग है) इत्यादि रोग हो सकता है।

संभोग के बाद लाभकारी पदार्थ

संभोग के बाद गर्म पानी से नहाएं। दूध में मिश्री या शहद मिलाकर सेवन करें। गुड़ से बना व्यंजन का आहार करना। ठंडी और सुगंधित हवा का सेवन करें। मांस का रस पीना और सोना सुखद और लाभकारी होता है।

अत्यधिक संभोग से होने वाले नुकसान

यदि कोई व्यक्ति मद में आकर, वासना वश या किसी भी कारण से अत्यधिक संभोग (सेक्स) करता है, तो उसकी ताकत, सुंदरता, बुद्धि आदि का नुकसान होता है।

अत्यधिक संभोग से शूल, खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ, दुर्बलता, सफेद दाग (पांडुरोग), तपेदिक (क्षय) और अपक्षयी विकार (पार्किंसन) रोग (शरीर कांपना) और वायु सबंधित रोग होता है।

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