बवासीर
6 प्रकार के अर्श (बवासीर)
अर्श (बवासीर) 6 तरह से होता है।
1 वातज अर्श
2 पित्तज अर्श
3 कफज़ अर्श
4 सन्निपातज अर्श
5 खूनी बवासीर
6 सहजात-जन्मजात अर्श
वातज अर्श
जिस व्यक्ति के मलद्वार में सूखा, काला या लाल, सख्त और खुरदरा, नुकीला और फटा हुआ मुँह वाला मस्से हो उसे बवासीर या अर्श कहते हैं।
यदि मनुष्य के गुदा पर मस्से हों जो बोर, बिनौला, सरसों या कदंब के फल के आकार के समान हों तो यह वातज बवासीर है।
जिस व्यक्ति को सिर, पार्श्वभाग, गर्दन, कमर, जांघों और पेट में अधिक दर्द होता है, तब उस मनुष्यको वातज बवासीर की समस्या हो सकती है।
जिस व्यक्ति को डकार या छींक नहीं आती हो, भूख नहीं लगती हो, खाँसी होती हो, सांस लेने में तकलीफ होती हो, पेट में गैस बनती हो, पेट के रोग, मतिभ्रम, कानों में बजना और सीने में दर्द होता हो – ऐसे लक्षण दिखाई देने पर जानना की उसे वायु के बवासीर है।
इलाज
जिमीकंद
एक ताजा जिमीकंद लें, साफ पानी से धो लें, एक साफ कपड़े में लपेटकर ऊपर से मिट्टी लपेट दें। (कपड़मिट्टी कर ले)
इसे पुटपाक विधि के अनुसार अच्छी तरह उबाल लें और कपड़ा हटा कर छोटे टुकड़े में काट लें।
इस उबला हुआ जिमीकंद को गाय के घी या काले तिल के तेल में डुबोकर 3 तोले (30 से 35 ग्राम) तक लगातार 21 दिनों तक खाने से वायु के मस्से (वातज अर्श) दूर होता है।
आक के पत्ते
आक के पके पत्ते लेकर उसके ऊपर सेंधा नमक, साँचर नमक, काला नमक, समुद्री नमक, बेकिंग सोडा, नींबू का रस और तिल का तेल लगाकर जला दें। जल जाने के बाद इसकी राख को गर्म पानी के साथ सेवन करने से वायु के मस्से (वातज अर्श) दूर होता है।
दही का घोल
गाय के दूध को जमा कर इस दही का मिश्रण (बिना मख्खन निकाला – घोल) बनाकर उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर पीने से कब्ज, दस्त और वायु के मस्से (वातज अर्श) ठीक हो जाता है।
कंकायन गुटी
1 20 तोला हरड की छाल
2 4 तोला काली मिर्च
3 4 तोला पिपली
4 4 तोला जीरा
5 8 तोला पिपलामूल
6 12 तोला जंगली कालीमिर्च
7 16 तोला चीता
8 20 तोला सोंठ
9 32 तोला शुध्ध भिलावा
10 64 तोला जिमीकंद
11 8 तोला जवाखार
उपरोक्त सभी जड़ी बूटियों का बारीक चूर्ण बना लें और इसमें 384 तोला गुड़ डालकर अच्छी तरह मिला लें। फिर बहेड़ा जैसी बड़ी गोलियां बना लें। इन गोलियों के सेवन से वायु के बवासीर (वातज अर्श) दूर हो जाता है।
जो बवासीर खारऔर शस्त्रों से नहीं मिटता है वह भी इस कंकायन वटी से नष्ट हो जाता है।
कवाथ
कुकडवेल का काढ़ा (कवाथ) बनाकर गुदा को धोने से या कुकडवेल का धुंआ देने से बवासीर ठीक हो जाता है।
लेप
कांजी में कुकडवेल के बीज और सेंधा नमक का लेप बनाकर बवासीर पर लगाने से गंभीर बवासीर भी ठीक हो जाता है।
लेप
हल्दी और कड़वी तुरई की जड़ या बीज एक साथ पीस के इसका लेप लगाने से बवासीर ठीक हो जाता है।
लेप
आक के पत्ते और सहजन की जड़ से लेप बनाकर इसे मस्से पर लगाने से बवासीर ठीक हो जाता है।
भाप / शेक
अरंडी की जड़, देवदार, रासना और मुलेठी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और चूर्ण बना ले। इसमें एक चौथाई जौ का पाउडर मिला लें और फिर इसे दूध में पका लें।
इस पाक की भाप या शेक गुदा पर लेने से बवासीर और मस्से का दर्द दूर हो जाता है।
लेप
नीम के पत्ते और कनेर की पत्तियों का लेप बनाकर इसे बवासीर पर लगाने से मस्से के दर्द में आराम मिलता है।
लेप
कड़वी दूधी भोपला की जड़, गुड़ और अर्नाल (बिना भूसी के किण्वित कच्चा या पका हुआ गेहूं) का लेप लगाने से बवासीर ठीक हो जाता है।
कासीसादि तेल
हिराकसी (लौह सल्फाइड), सेंधा नमक, पिपली, सौंठ, कट, बचनाग, मनशील, काली मिर्च, विडंग, जमालगोटा की जड़, चीता, शुद्ध हरताल और सत्यानाशी की जड़ – इस सभी औषधिया को बराबर भागों में लें।
काले तिल का तेल लें, तेल से चार गुना गोमूत्र लें।
ऊपर दी गई सभी चीजों को एक कड़ाई में डालें और धीमी आंच पर तेल को पकाएं। (तेल को सिद्ध कर लेना)
इस तैयार तेल को मस्से पर लगाने से मस्से गिर जाते है। हालांकि यह तेल खार (क्षार) की तरह काम करता है, लेकिन यह गुद्दा के किसी भी भाग को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
बृहत सूरणमोदक
1 16 भाग पका हुआ सुरन (जिमीकंद)
2 8 भाग चीता
3 2 भाग सौंठ
4 1 भाग काली मिर्च
5 2 भाग त्रिफला
6 2 भाग पीपली
7 2 भाग पीपलामूल
8 2 भाग तालीसपत्र
9 2 भाग भिलावा
10 2 भाग विडंग
11 8 भाग मुसली
12 16 भाग समुद्रसोख
13 1 भाग भांग
14 1 भाग इलायची
उपरोक्त सभी जड़ी बूटियों को पीस के चूर्ण बना लें। चूर्ण से दोगुना गुड़ डालकर अच्छी तरह मिला लीजिये. फिर सही मात्रा में गोलियां बना लें।
इन गोलियों के नियमित सेवन से गुद्दा के मस्से, हिचकी, सांस लेने में तकलीफ, खांसी, तपेदिक, सूजाक, तिल्ली और कब्ज नष्ट हो जाता है। बवासीर जो शल्य चिकित्सा और क्षार द्वारा नहीं मिटाया गया होता है, उसे भी इस बृहत सुराण मोदक से ठीक किया जा सकता है।
पित्तज अर्श (बवासीर)
पित्तज अर्श काले मुँह वाला, पीला या सफेद कांति वाला, पतला और गर्म खून का स्त्राव करने वाला होता है। इस प्रकार की बवासीर जोंक के मुंह की तरह, मुलायम और दुर्गंध वाला होता है।
पित्तज अर्श के मरीजों में झलन, बुखार, गुद्दे में से स्राव, पसीना, प्यास, बेहोशी और अरुचि जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
इस तरह के मस्से को छूने से गर्म लगता है। इस प्रकार के मस्से के कारण ऐसे रोगियों के मल तरल रूप में होने के साथ-साथ नीली, लाल, पीली, गर्म और कच्ची होती हैं।
यदि ऐसे रोगियों की त्वचा, नाखून, मल और मूत्र पीला या हरा हो जाता है, तो उन्हें पित्तज अर्श के रोगी के रूप में जाना जाना चाहिए।
रक्तज अर्श
रक्तज अर्श गूंजा के सामान रंग जैसा होता है। इसमें से रक्त का विशेष प्रवाह स्त्रावित होता है। मल काला सख्त और सूखा सा होता है। मल कठोर होने के कारण जाड़ा बहुत तकलीफदेय होती है और रक्त के विशेष स्त्राव के कारण रोगी के शरीर का रंग मेंढक के रंग जैसा हो जाता है। शरीर कमजोर और क्षीण होने लगता है। बल, पराक्रम और उत्साह का नाश होता है। गुदा की हवा अच्छी तरह से बाहर नहीं निकल पाती है इसलिए शरीर सुस्त महसूस करता है।
यदि कमर में, जांधो में, गुद्दा में शूल (दर्द) पैदा हो, साथ ही शरीर कमजोर हो जाता है, तो जान लें कि खूनी बवासीर के साथ वायु मिल गया है।
यदि मल ढीला, सफेद, पीला, चिपचिपा, भारी और ठंडा है, साथ ही खून भी रेशेदार और गाढ़ा है और गुदा में चिपचिपापन है, तो जान लें कि रक्तज अर्श के साथ कफ्फ मिला हुआ है।
पित्तज और रक्तज दोनो अर्श (बवासीर) का इलाज
रसोत को बारीक कूट कर 4 घंटे के लिए पानी में रख दें। फिर इसे छानकर सेवन करें। दो महीने तक इसका सेवन करने से पित्त और रक्तज दोनो प्रकार की बवासीर ठीक हो जाते हैं।
पिपल की लाख, हल्दी, मुलेठी, मंजीठ, नीलकमल, – इस सभी औषधि को बारीक पीस के चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2 टांक (१३ ग्राम) बकरी के दूध में लगातार 49 दिनों तक लेने से दोनों प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
नागकेसर को बारीक पीस के मक्खन और शक़्कर के साथ मिलाकर नियमित रूप से सेवन करने से दोनों प्रकार के गुदा के बवासीर दूर हो जाएंगे।
कुटजावलेह
इन्द्रजौ 400 तोले लेकर 1024 तोला पानी में उबाल लें। जब पानी का आठवां हिस्सा रह जाए तो उसे निचे उतार कर छान लें।
छने हुए पानी को दूसरी बार आग पर उबाल लें और इस रस गाढ़ा होने पर ये चीजे डालें –
नागरमोथा, सेमल का गोंद, भोलिया, कैठ का गर्भ, धवई का फूल, भिलावा, विडंग, त्रिकटु (सौंठ, काली मिर्च, पीपली), त्रिफला (हरड, बहेड़ा, आवला), रसोत, चीता, इन्द्रजौ, बच, अतिविषाऔर बेल का गर्भ – यह सभी औषधिया 4 – 4 तोला लेकर उसका चूर्ण बनाकर उसमें डाल दें।
फिर 120 तोला गुड़ और 16 तोला गाय का घी डालकर अच्छी तरह से गाढ़ा होने तक हिलाएं और अवलेह तैयार होने पर निचे उतार ले।
यह अवलेह ठंडा होने पर इसमें 16 तोला शहद डालकर अच्छी तरह मिला लें।
इस अवलेह के सेवन से बहने वाली बवासीर, वादी बवासीर, पित्तज, कफज और सन्निपात के मस्से दूर हो जाते हैं। इसके आलावा कुष्ठ और भगंदर जैसे रोग भी दूर होते हैं। इस औषधि के सेवन से अम्लपित्त, अतिसार, पांडुरोग, अरुचि, संग्रहणी, कृशता, शोफ, पीलिया और क्षीणता सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
इस अवलेह लेने पर दूध, घी, छाछ, पानी, शहद आदि अनुपान रोग के अनुसार देना ताकि रोग से तुरंत ठीक हो सके।
बोळबध्ध रस
1 गिलोय क सत्व
2 शुद्ध पारा
3 शुद्ध गंधक
इन तीनों औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीस ले। (पारा और गंधक की कज्जली करले)
इन तीनों का वजन के बराबर गुड लें और इन्हें अच्छी तरह मिला लें।
फिर इस मिश्रण को सेमल के रस में गुंद कर इस मिश्रण को तैयार कर लें. इस तैयार औषधि को बोळबध्ध रस कहते हैं।
इस तैयार औषध को २. ५ तोला लें और इसमें शहद मिलाएं फिर इसका सेवन करे।
इस औषधि का इस प्रकार नियमित सेवन करने से खुनी बवासीर, पित्तज बवासीर, विद्रधि, प्रमेह, स्त्रीओ के सोम रोग और भगंदर ये सभी रोगो का नाश होता है।
लधु मालिनी वसंत रस
स्वस्थ व्यक्ति के पेशाब में सबसे पहले पुनर्नवा को 21 दिन तक भिगोकर रखें और फिर पीस लें।
काली मिर्च (छिली हुई) को पुनर्नवा से आधा वजन में लें और दोनों को मक्खन से गूंद लें।
फिर उसे नींबू के रस की 100 भावनाए दें और अच्छी तरह गूंद के इस औषध को तैयार करें। इस औषध को लधु मालिनी वसंत रस के नाम से जाना जाता है।
इस लधु मालिनी वसंत रस का सेवन शहद या पीपर के साथ किया जाता है। साथ ही शक्कर युक्त भोजन किया जाता है।
इस औषधि के नियमित सेवन से धातुगत ज्वर, पित्त, भ्रम, पित्त और रक्त के रोग, संग्रहणी और खुनी मस्से नष्ट हो जाते हैं।
मस्से में से रक्त बहेता हो इसी परिस्थिति में –
1 6 तोला बेर के सूखे पत्ते
2 6 तोला आवला
3 24 तोला गाय का मक्खन
सबसे पहले बेर के सूखे पत्ते और आवला का चूर्ण तैयार कर लें।
एक लोहे की कड़ाई में गाय का मक्खन डालकर अच्छी तरह से उबाल लें, फिर तैयार किया हुआ चूर्ण डालें और अच्छी तरह हिला कर मिलाएँ।
फिर इसे ठंडा होने दें और किसी धातु के बर्तन में रख दें।
इस औषध को ६ ग्राम लेके अच्छी तरह पीस के नियमित रूप से सुबह के समय लें। इस औषध को 21 दिन तक सेवन करने से और इस के बाद ठंडे पानी से कुल्ला करने से मस्सों से खून आना बंद हो जाता है।
परहेज
गर्म भोजन जैसे बाजरा, करेला, अचार, उड़द, आम आदि का सेवन न करें।
रसवंती
नीम की फली का बीज और घृतकुमारी को एक खरल में बारीक़ पीस के १ रती की छोटी छोटी गोलिया बना ले।
इस रसवंती की एक गोली सुबह पानी के साथ 21 दिन तक पीने से मस्सों से खून आना बंद हो जाता है।
लेप
रसोत, भीमसेनी कपूर और नीम की फली के बीज ये सभी को खरल में पानी के साथ पीस कर लैप तैयार करें।
इस लेप को मस्से के उपर लगाकर ऊपर से नीलाथोथा घिस के लगाने से मस्से नष्ट हो जाते है।
कफ्फज अर्श
कफज वाले मस्से गहरी जड़ वाला, मोटा, गंधयुक्त और पीड़ादायक, सफेद, लंबा, गोल, चिकना, पूंछ वाला, कोमल त्वचा में लिपटा हुआ, लिसा, खुजली वाला, छूने से अच्छी और तीखी लगते हो ऐसा होता है।
ऐसे रोगी को ये अर्श जंघा जोड़ में दर्द से पीड़ित करने वाले होते हैं, पेडू में अफरा करने वाले होता है, जो गुदा, मूत्राशय और नाभि में दर्द से पीड़ित करने वाले होते हैं।
ऐसे रोगियों में सर्दी, नाक बहना, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, वमन, अरुचि, प्रमेह, मूत्रकृच्छ, सिरदर्द, बुखार, सेक्स करने की इच्छा की कमी, मंदाग्नि, उल्टी, मतली आदि जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
कफज अर्श के रोगी का मल कफ से व्याप्त होता है और तरल होता है और आम विशेष अनुपात में दिखाई देता है। ऐसे रोगी का आम, ग्रहणी और अतिसार आदि विकार से युक्त तथा वसायुक्त होता है।
इस प्रकार के अर्श में से खून नहीं बहता है और इस तरह के मस्सेअभेध्य होते हैं। साथ ही उसकी त्वचा पीली और तैलीय हो जाती है।
कफ्फ्ज अर्श का इलाज
कवाथ
4 तोला अदरक लेकर कवाथ (काढ़ा) बनाकर 21 दिन तक पियें तो बवासीर नष्ट हो जाएगी।
लेप
हल्दी के टुकड़े पर थोर के दूध की 7 भावनाए देकर इस टुकड़े को घिस के मस्से पर लेप करने से कफ्फ के मस्से दूर हो जाता है।
अर्क
1 56 तोला त्रिफला
2 56 तोला दशमूल
3 56 तोला चीता
4 56 तोला निशोथ
5 56 तोला जमालगोटा के मूल
उपरोक्त सभी औषधि को कूट के 14 लीटर पानी में भिगो दें और इसमे 5 किलो गुड़ मिलाए। यह मिश्रण को अच्छी तरह से हिलाकर ढककर 21 दिनों के लिए अलग रख दें।
21 दिनों के बाद, मिश्रण से अर्क निकालें (त्रियाक पतन यंत्र के माध्यम से)।
इस अर्क की 6. 5 ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से ये कफ के अर्श को नष्ट कर देता है।
सन्निपात अर्श
जिस अर्श में वायु, पित्त और कफ इस तीनो दोष के लक्षण पाए जाते हैं तो समजना चाहिए की ये सन्निपात के अर्श के लक्षण है।
सन्निपात वाले अर्श का इलाज
प्राणदा गुटिका
1 12 तोला अदरक
2 4 तोला काली मिर्च
3 8 तोला पीपली
4 4 तोला जंगली कालीमिर्च
5 4 तोला तालीसपत्र
6 2 तोला नागकेसर
7 8 तोला पिपलामूल
8 7 तोला चीता का मूल
9 1 तोला इलायची
10 1 तोला दालचीनी
11 1 तोला कमल का दंड
उपरोक्त सभी औषधियों को लेकर इसका बारीक़ चूर्ण बना लें। और इसमें 160 तोला गुड़ मिलाएं। इस चूर्ण और गुड़ को अच्छी तरह मिलाकर एक-एक तोले की गोलियां बना लें। इस गुटिका को प्राणदा गुटिका कहा जाता है।
एक गोली भोजन से पहले और रोगी के तासीर के अनुसार और बल के अनुसार शहद, मांसरस, दूध, यूष, सूप या पानी के अनुपान के साथ सेवन कराए।
इस गोली के नियमित सेवन से सन्निपात के मस्से दूर हो जाते है। साथ ही मूत्रकृच्छ, वायु के रोग, विषम ज्वर, मंदाग्नि, पीलिया, पेट में गैस, कृमि, हृदय रोग, शूल, अम्लपित्त, बरल, खांसी, सांस की तकलीफ, उल्टी, दस्त और हिचकी आदि विभिन्न अनुपान भेद से समाप्त हो जाते हैं। प्रत्येक रोग का निदान करके रोगी की शक्ति को देखते हुए देश और समय के अनुसार सही अनुपान के साथ इस गोली का सेवन करने से सभी रोगों को दूर किया जा सकता है।
विजय चूर्ण
त्रिफला, सौंठ, काली मिर्च, पिपली, दालचीनी, तमालपत्र, इलायची, बच, भुनी हुई हींग, कालीपाट, बेकिंग सोडा, जवाखार, हल्दी, दारूहल्दी, जंगली कालीमिर्च, कटुकी, इन्द्रजौ, सौंफ, पांच प्रकार के नमक, पिपलामूल, बेल का गर्भ, और अजवायन ये सभी औषधीय लें, इसे बारीक पीस लें और इसे कपड़े से छान लें। इस चूर्ण को विजय चूर्ण कहते हैं।
सन्निपात का अर्श के अलावा इस विजय चूर्ण के नियमित सेवन से सांस की तकलीफ, खांसी, हिचकी, भगन्दर, छाती और पार्श्वभाग के दर्द, वायु, पेट दर्द, प्रमेह, पीलिया, संग्रहणी, विषम ज्वर, पुराना बुखार, मनोभ्रंश और बांझपन नष्ट हो जाता है।
अर्श कुठार रस
1 4 तोला शुद्ध पारा
2 8 तोला शुद्ध गंधक
3 12 तोला तांबेश्वर (तांबे की भस्म)
4 12 तोला गजवेल (शुद्ध लोह)
5 8 तोला सौंठ
6 8 तोला काली मिर्च
7 8 तोला पीपली
8 4 तोला शुद्ध बचनाग
9 8 तोला जमालगोटा की जड़
10 8 तोला कलिहारी की जड़
11 8 तोला चीता की जड़
12 20 तोला जवाखार
13 20 तोला टंकण भस्म
14 20 तोला सेंधा नमक
15 88 तोला गौमूत्र
16 88 तोला थूहर का दूध
सबसे पहले, उपरोक्त सभी जड़ी-बूटियों को लें और जो कूट ने योग्य हों उसे कूट ले और जो खरल में पीसने योग्य हो उसे पीस ले। जिस चीजे चुरा करने योग्य हो उसे बारीक़ चुरा करले। सभी चीजों को अच्छी तरह बारीक़ बना ले।
शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक मिलाकर कज्जली बना के फिर उसे प्रयोग में लाए।
इन सभी चीजों को एक कड़ाई में डालकर अच्छी तरह मिला लें और धीमी आंच पर पका लें। पक जाने के बाद 2 मासा (1.5 ग्राम) वजन की गोलियां बना लें। इस औषधि को अर्श कुठार रस कहा जाता है।
इस अर्शकुठार रस की 1 गोली पानी के साथ नियमित रूप से पीने से असाध्य सन्निपात के अर्श (मस्से) और सभी प्रकार के बवासीर (अर्श) नष्ट हो जाते है।
सभी प्रकार के अर्श का इलाज
कांतिसार – १ (शंकर लोह)
(अनुभवी वैध की देखरेख तले ही ये क्रियाए करे)
कांतिलोह (शुद्ध लोह) लें और इसे छोटे टुकड़ों में काट लें। इन टुकड़ों को सात बार बहुत ज्यादा गर्म करें और तेल में डुबो के ठंडा करे। इसी तरह छाछ में 7 बार, गौमूत्र में 7 बार, कांजी में 7 बार और त्रिफला के काढ़े में 7 बार इन टुकड़ो को खूब गर्म करके ठंडा करें।
फिर इन टुकड़ों को रेती से घिस के बारीक़ पावडर जैसा बनवा लें।
यह पावडर के वजन के बराबर मनशील और सेना को लेकर पीस के उसका भी बारीक़ चुरा बना ले। और इस चूर्ण को भुई-ओक्रा की जड़ का कल्क और पारो ले के इसके साथ अच्छी तरह मिला लें। (यह काम करता है, भले ही भुई-ओक्रा की जड़ का अकेला कल्क हो)
अब इस तैयार मिश्रण को पहले से तैयार लौह के चूरे के साथ मिला लें।
यह सब एक बड़े पात्र में भरके संपुट मुद्रा में, खेर के कोयले की आग से खूब गर्म करे और सेना और मनशील के जल जाने के और गंध आनी बंध हो जाने पर आग से बाहर निकाल लें। इस प्रक्रिया को 10 बार करें।
फिर इसे निकाल कर त्रिफला के रस या कवाथ (काढ़े) और पारे में पीसना (लोहे का चूर्ण का आठवां हिस्सा का पारा लें)। जब पारा लोहे की रेत में समा जाए तो उसे फिर से अग्नि की आंच पर रखे। और इस प्रक्रिया को 4 बार करें।
इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद, तैयार लोहे की रेत को एक खरल में डालकर बारीक़ पीस ले। इस बारीक़ भस्म को पानी में डालने से यह पानी की सतह पर तैरने लगेगी।
यह तैयार की गई भस्म को लोहे की मजबूत कटोरी में भरकर इसे लाल पुनर्नवा के रस का, पलाश के रस का, थूहर के दूध का और शतावरी के रस का 10 – 10 पूट देंना।
फिर 20 पुट निम की गिलोय के रस की दें।
फिर जामुन की छाल का रस 7 पुट और गूलर की छाल का रस का 7 पुट दें। 10 पुट धृतकुमारी (एलोवेरा) के रस का, 20 पुट आंवले के रस का, 20 पुट नींबू के रस का, 10 पुट पलाश की छाल का रस का दें।
लोह की भस्म के आठवे हिस्से का वजन में शुद्ध हिंगलोक लेकर धृतकुमारी (एलोवेरा) के रस में पीस ले और इस रस का 10 पुट देना।
फिर 10 पुट घी और 10 पुट शहद का दे और प्रत्येक पुट के बाद गजपुट अग्नि दें।
अब इस तैयार की गई भस्म को एक साफ और वायुरोधी सुंदर बोतल में भरकर रख दें। इस भस्म को कांतिसार-1 (शंकर लोह) कहा जाता है।
इस भस्म को पहले 1 रति लेकर शुभ दिन पर शहद और काली मिर्च के साथ मिलाकर “ॐ अमृतमक्षयामिस्वाहा” मंत्र का जाप करें और शुभ भाव से इसका प्रयोग बुद्धिमानी और विवेक से करें।
देश, समय, दोष बल, शरीर बल और आयु बल को ध्यान में रखते हुए सुबह रोगी को कांतिसार-1 (शंकर लोह) देना चाहिए। और बलाबीज की जड़ का कवाथ अनुपान के रूप पिलाए। यदि इस भस्म का उचित मात्रा में केवल 3 महीने तक अनुपान के साथ सेवन किया जाए और परहेज में रहे, तो यह सभी प्रकार के (अर्श) बवासीर की व्याधि को मिटा देगा।
इसका सेवन करने से वृद्ध पुरुष युवा समान हो जाते हैं। और बल, वर्ण, पराक्रम, पुष्टता और आयु बल विशेष रूप से प्राप्त होते हैं।
कांतिसार-1 (शंकर लोह) के सेवन से मंदाग्नि, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, पीलिया, गठिया, मूत्रकृच्छ, अंडवृद्धि, और असाध्य रोगों का नाश होता है।
इस भस्म के सेवन के दौरान परहेज में रहें। कद्दू, तेल, उड़द, राई, शराब, खट्टी और गर्म और अस्वास्थ्यकर चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
पर्पटी रस
शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक लेकर उसे मलें और कज्जली बना ले।
इन दोनों का वजन की दोगुना मात्रा में बोल ले के इसे घी में बारीक़ पीस ले। और फिर शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक की बनाई कज्जली में डालकर अच्छी तरह मिला लें।
फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में पिघलाकर गूंद लें। फिर उसकी गोलियां बना लें।
इन गोलियों को लोहे की प्लेट पर रखें और नीचे से आग दें। जब गोलिया गरम होकर पतली हो जाएं तब उन्हें केले के पत्तों के ऊपर पलट दे।
इन गोलिया में से छोटी छोटी पत्तिया बना ले। इस तैयार औषधि को पर्पटी रस कहते हैं।
इस औषध को नियमित रूप से 4 वाल (1 . 25 ग्राम) की मात्रा में लेने और 15 दिन तक सेवन करने से सन्निपात वाले अर्श के साथ सभी प्रकार का अर्श (बवासीर) दूर हो जाते है।
लेप
नीबू के रस में चूना, खाने का सोडा, टंकण भस्म और निलाथोथा को बराबर मात्रा में लेकर 3 दिन के लिए भिगो दें।
फिर इसे मलके मस्से पर लगाने से मस्से दूर हो जाता है।
लेप
सीसे की गोली गाय के घी के साथ घिस के अर्श के ऊपर लेप करने से १० दिन में मस्से मिट जाते है।
चूर्ण
विष्णुक्रान्त ૨ टांक, काली मिर्च २ टांक और भांग ४ रत्ती ले के इसे खरल में पीस ले। यह औषध नियमित रूप से पिने से अर्श रोग शांत हो जाता है।
साध्यासाध्य अर्श के लक्षण
जिस रोगी के गुद्दा की संवरणी नामक वली में एक दोष से उत्पन्न हुआ और एक एक वर्ष के भीतरी का अर्श का रोग हुआ हो तो इस रोग सुखसाध्य जानना।
बवासीर अधिक कठिन होता है यदि रोग एक वर्ष से अधिक समय तक का है, दूसरी विसर्जनी नामक वली में हो, और इसमें दो दोष होते हैं। ये रोग कष्ट साध्य माना जाता है।
मलाशय के तीसरी प्रवाहिका नामक वली में अर्श हो, जो तीनो दोष से युक्त हो और जन्मजात है, तब इस रोग को लाइलाज माना जाता है।
जिस अर्श के रोगी के हाथ पैर में, मुँह पर, नाभि में, गुद्दा एवं अंडकोष में सूजन हो, छाती में और पार्श्व भाग में शूल निकलता हो, मोह, उलटी, व्यथा, ज्वर, प्यास, अरुचि और अतिसार से रोगी पीड़ित हो, जिसके शरीर में से लहू अदृश्य हो गया हो और गुद्दा में पाक हो तब जानना के ये अर्श का रोगी का आयुष्य समाप्त हो गया है।
अर्श के रोगी के पथ्यापथ्य (परहेज)
बवासीर के रोगियों को अपने आहार में हल्का भोजन, दूध, चावल, गाय का घी, तुरई की सब्जी, लहसुन, छाछ, मक्खन, आंवला आदि का सेवन करना चाहिए।
बवासीर के रोगी के लिए उपचार, औषधि, वैद्य में आस्था, स्वच्छ हवा, सपाट आसन, दस्त न रोकना, स्वच्छ आहार आदि लाभकारी होते हैं।
अर्श के रोगियोंको न करने जैसा काम पैकी उन्हें किसी भी परिस्थिति में ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। गर्म और भारी भोजन नहीं करना चाहिए। बाजरे, ग्वार, भारी अन्न, दही, उड़द, खीर, मिष्ठान्न, लड्डू, मेंदे की चीजे, मिर्च, तेल, लाल कद्दू, पका हुआ आम आदि का सेवन हानिकारक होता है।
बवासीर के रोगियों को रात में जागना नहीं चाहिए और महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने, सेक्स से परहेज करने, ऊंट और घोड़ों की सवारी करने और झूठे आहार से दूर रहने से बचना चाहिए।