सन्निपात का ज्वर
त्रिदोष-सन्निपात ज्वर
त्रिदोष से उत्पन्न होने के कारण सन्निपत ज्वर को त्रिदोष-सन्निपात ज्वर भी कहते हैं। आयुर्वेद में 13 प्रकार के सन्निपात ज्वर का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार हैं।
1 संधिक
2 शीतांग
3 तंद्रिक
4 प्दिरलापक
5 रक्तष्टिवी
6 भुग्ननेत्र
7 अभीन्यास
8 जिव्हीक
9 अंतक
10 रुगदाह
11 चित्तविभ्रम
12 कर्णिक
13 कंठकुब्ज
रोगी का आयुष्य (आयु)
सन्निपात रोग के होने से रोगी कितने समय तक जीवित रहेगा यह उपरोक्त प्रकारों से जाना जा सकता है। यदि उपरोक्त प्रकार के लक्षणों को पहचाना जा सके, तो इसके बारे में जानकारी और रोगी की स्थिति को स्पष्ट किया जा सकता है।
यदि कोई मनुष्य संधिक सन्निपात नामक बीमारी से पीड़ित है, तो उसकी जीवन प्रत्याशा (आयु) 3 दिन की ही हो सकती है। शितांग रोग में 15 दिन, तंद्रिक में 25 दिन। प्रलापक में 14 दिन। रक्तष्टिवी में 10 दिन। रुगदाह में 20 दिन। चित्तविभ्रम में 11 दिन, कंठकुब्ज में 13 दिन। और कर्णिक में दर्दी का जीवनकाल तीन महीने का होता है।
इस प्रकार के प्रत्येक सन्निपत रोग में यदि संक्रमण का विशेष बल हो तो रोगी की शीघ्र मृत्यु हो सकती है।
सन्निपात के रोगियों का सामान्य उपचार
सन्निपात के मरीज का ठंडा उपचार न करें। दिन में सोने न दे, अर्धावशेष (उबलता पानी आधा रह जाए वो) पिलाएं और कफ को नष्ट करने वाले उपाय करें। इसके अलावा सन्निपात के दोष का बल कितने प्रमाण में है, यह देखकर सन्निपात के रोगी को लंघन (उपवास) कराना चाहिए इससे सन्निपात रोगमें लाभ मिलता है और मिट जाता है।
संधिक सन्निपात के लक्षण
ऐसे रोगी के हर जोड़ में भयानक शूल उत्पन्न हो जाता है, शरीर सूज जाता है, पेट भारी रहता है, शरीर के सभी अंग शिथिल हो जाते हैं, दुर्बलता बढ़ जाती है और वात कफ का प्रकोप विशेष रूप से होता है और नींद नहीं आती है, संधिक सन्निपात में ये सभी लक्षण दिखाई देता हैं।
उपाय
रासना, बड़ी हरड़ की छाल, नीम की गिलोय, पीला पियाबांसा, चीता, लाजवंती, सौंठ, देवदार, कटुकी, कर्चुर, अड़ूसा, अरंड की जड़, लाल शेवरा, चट्टा की घास, बंगकटिया, बड़ी कटेरी, बेल, अरणी, अड़ूसा, भद्रपर्णी, पाढ़लऔर गोखरू। इन सभी औषध को समान मात्रा में लें और मोटा मोटा सा कूट लें।
इस औषध का कवाथ बनाके रोगी को सुबह-शाम सेवन कराने से सभी लक्षणों सहित संधिक सन्निपात के रोग से छुटकारा मिल जाता है। यह औषध गरदन की जकड़न, अंडकोष वृद्धि, बुखार, अरुचि और जोड़ों के दर्द को ठीक करती है।
शीतांग सन्निपात के लक्षण
जिस रोगी का शरीर बर्फ जैसा ठंडा हो जाए, श्वास, खांसी, हिचकी, मोह, कंपकंपी, बकवा, जलन, उल्टी, सभी अंगों में दर्द, और आवाज में विकार और ज्यादा आवाज, विशेष रूप से अपद्वार से हवा (मलद्वार से हवा निकलना), और मुंह से लार का निरंतर गिरना। ये सभी लक्षण शीतांग सन्निपात के हैं।
शीतांग नामक यह सन्निपात लाइलाज है, इसलिए इस प्रकार का रोगी जीवित नहीं रहता है, तो भी इस प्रकार की बीमारी के लिए उपाय लिखना उचित है।
उपाय
1 शितांग सन्निपत के रोगी को बिच्छू के द्वारा कटवाना। बचनाग को तेल में मिलाकर शरीर की भरपूर मालिश करें।
2 लहसुन और राई को गूंद कर गोमूत्र में रोटी बना लें। इस रोटी को बाल उतरवा कर रोगी के सिर पर बांध लें। इस रोटी को तब तक रखें जब तक शरीर गर्म न हो जाए। यदि इस औषध से रोगी को ताप लगे और शरीर गर्म हो जाए तो रोगी जीवित रहेगा अन्यथा उसकी मृत्यु हो जाएगी।
3
1 4 टांक (17.6 gram) शुद्ध पारा
2 30 टांक (132 gram) काली मिर्च
3 40 टांक (176 gram) धतूरा के कच्चे फल की राख
उपरोक्त औषधि को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से रोगी के शरीर की मालिश करें।
4 काली मिर्च, पिपली, सौंठ, हरड की छाल, भोलिया, पोहकर मूल, हरा चिरायता, कटुकी, कट, कर्चुरऔर इन्द्रजौ। इस सभी औषध को बारीक पीसकर रोगी के शरीर पर विपरीत दिशा में मलें (मालिश करे)।
उपरोक्त औषधियों के उपचार करने से यदि रोगी दीर्घायु होते है तो रोगी स्वस्थ होकर जीवित रहता है, अन्यथा ईश्वर की इच्छा प्रबल होती है।
तंद्रिक सन्निपात के लक्षण
इस प्रकार के रोगी में अत्यधिक उनींदापन, प्यास, दस्त, सांस की तकलीफ, खांसी, गले मे सूजन, खुजली, कफ, शरीर अत्यधिक गर्म होता है, जीभ काली और खुरदरी हो जाती है, बुखार विशेष रूप में दिखना, कानों में बहरापन, और शरीर में जलन। तंद्रिक सन्निपात में रोगी में ऐसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
उपाय
भारंगी, नीम की गिलोय, नागरमोथा, बंगकटिया, हरड़ की छाल, पोहकर मूलऔर सौंठ। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ बनाकर रोगी को 3 दिन तक पिलाने से तंद्रिक सन्निपात दूर हो जाते है।
प्रलापक सन्निपात के लक्षण
इस प्रकार के रोगी में सभी दोष अत्यधिक बढ़ जाते हैं इसी कारण वो बकबक करता है, शरीर कांपता है, तेज बुखार होता है, शरीर गर्म होता है, श्वास, विक्षिप्तऔर स्मृति नष्ट हो जाती है।
उपाय
नागरमोथा, खस, लाल शेवरा, चट्टा की घास, बंगकटिया, बेल, श्योनाक, भद्रपर्णी, बड़ी कटेरी, पाढ़ल, गोखरू, सौंठ, पित्तपापरा, चंदन, धवई की छाल और अड़ूसा। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ बनाए और सुबह-शाम दो बार पीने से प्रलापक नामक सन्निपात ठीक हो जाता है।
आठ प्रकार के बुखार (ज्वर)
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गर्भवती महिला का बुखार
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रक्तष्टिवी सन्निपात के लक्षण
रक्तष्टिवी सन्निपात के रोगी को खून की उल्टी होती है, जीभ काली या सफेद हो जाती है और उस पर चक्का, लाल आंखें, अरुचि, उल्टी, दस्त, मतिभ्रम, पेट फूलना, हिचकी आना, बार-बार गिरना, प्यास लगना और पूरे शरीर में दर्द होता है। ये सभी लक्षण रक्तष्टिवी सन्निपात रोग में देखने को मिलते हैं।
उपाय
रक्तष्टिवी सन्निपात को बहुत लाइलाज माना जाता है लेकिन उपाय किए जा सकते हैं।
नागरमोथा, पदम्, पित्तपापरा, रक्तचंदन, महुआ या मुलेठी, खस, शतावरी, मलयागिरी चंदन, और जूही के पत्ते। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ बनाकर ठंडा करके फिर उसमें शहद मिलाकर पीने से रक्तष्टिवी सन्निपात ठीक हो जाता है।
भुग्ननेत्र सन्निपात के लक्षण
भुग्ननेत्र सन्निपात के रोगी की आंखें बहुत मुड़ी हुई, सांस लेने में तकलीफ, खाँसी, उनींदापन, बकवा, मद, अत्यधिक कंपन, बहरापन, मतिभ्रम और भूलने की बीमारी हो जाती है। इन सभी लक्षणों भुग्ननेत्र सन्निपात के है और यह रोग लाइलाज होने पर भी रोगी की शांति के लिए यह उपाय करना उचित है।
उपाय
दारूहल्दी, जंगली चिचोण्डा, नागरमोथा, बंगकटिया, कटुकी, हल्दी, निम् की अंदरूनी छाल, और त्रिफला। इन सभी औषध को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ बनाले और सुबह और शाम दोनों समय रोगी को पिलाए ताकि भुग्ननेत्र सन्निपात ठीक हो सकें।
अभिन्यास सन्निपात के लक्षण
अभिन्यास नामक सन्निपात के रोगी में त्रिदोष बहुत तीव्र और समान देखा जा सकता है, मोह, उन्माद, सांस फूलना, अत्यधिक गूंगापन, जलन, चिकना मुंह, मंदाग्नि, शक्ति की हानि और अत्यधिक कठोरता पाया जाता है। ये सभी लक्षण अभिन्यास सन्निपात के हैं और चूंकि यह रोग लाइलाज है, इसलिए इसका उपचार सहायक है। इस रोग में उपाय करते समय विशेष सावधानी बरतें।
उपाय
“भार्ग्यादि 32” कवाथ
भारंगी, रासना, जंगली चिचोण्डा, देवदार, हल्दी, सौंठ, पिपली, काली मिर्च, अड़ूसा, इंद्रायन की जड़, ब्राह्मी, हरा चिरायता, निम् की अंदरूनी छाल, नागरमोथा, कटुकी, बच, पाढ़ल की जड़, श्योनाक की जड़, दारूहल्दी, बंगकटिया, निम् की गिलोय, निशोथ, गरुंडी की जड़।, पोहकर मूल, त्रायमाण, कालीपाट, जवासा, इन्द्रजौ, त्रिफला और कर्चुर। इन सभी औषधो को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले और फिर इसका कवाथ बना लें।
इस कवाथ को दिन में दो बार सुबह-शाम लेने से अभिन्यास सन्निपात और सभी प्रकार के सन्निपात , खांसी, गले के रोग, दमा, जोड़ों और हड्डियों में दर्द, हिचकी, आफरा, गुदा के रोग और वात रोग दूर हो जाते हैं। इस औषधि को “भार्ग्यादि 32″ कवाथ कहा जाता है।
जिव्हक सन्निपात के लक्षण
इस प्रकार के सन्निपात के रोगी जिसकी जीभ कठोर कांटों से घिरी हुई होती है, सांस लेने में परेशानी, खांसी, बहरापन, गूंगापन, जलन और बल का क्षय। ये सभी लक्षण जिव्हक सन्निपात के रोग के हैं। यह सन्निपात कष्टसाध्य (मुश्किल से मिटने वाला) है।
उपाय
बच, बंगकटिया, जवासा, रास्ना, निम् की गिलोय, नागरमोथा, सौंठ, कटुकी, काकराशिंगी, पोहकर मूल, ब्राह्मी, भारंगी, निम् की अंदुरुनी छाल, अडूसा और कर्चुर। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले फिर इसका (काढ़ा ) कवाथ बना लें। इस कवाथ को पीने से जिव्हक नामक सन्निपात दूर होता है।
मधुमेह (डायबिटीज)
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दिल की बीमारी (हृदय रोग)
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अंतक सन्निपात के लक्षण
इस प्रकार के रोगी का सिर लगातार हिलता रहता है, सभी अंगों में दर्द बना रहता है, खांसी, हिचकी, सांस लेने में तकलीफ, जलन, बेहोशी, पूरे शरीर में गर्मी, बकवा, कांपना और भूलने की बीमारी होती है। ये सभी लक्षण अंतक सन्निपात के हैं।
अंतक सन्निपातअत्यंत लाइलाज है और इसलिए इसका कोई इलाज नहीं है। इस रोग से पीड़ित रोगी की मृत्यु निश्चित है इसलिए उपाय व्यर्थ हैं।
रुगदाह सन्निपात के लक्षण
रुगदाह सन्निपात के रोगी को शरीर में अत्यधिक जलन होती है, बहुत प्यास लगती है, श्वास, बकवा, भ्रम, मोह, अरुचि, पीड़ा, गर्दन में दर्द, दाढ़ी में दर्द, गले में दर्द, पेट में शूल, और शरीर में दर्द व् थका सा महसूस होता है। इस तरह के सभी लक्षणे रुगदाह सन्निपात में देखा जाता हैं।
रुगदाह सन्निपात भी लाइलाज है फिर भी आधार के लिए उपचार अवश्य किया जा सकता है।
उपाय
हरड़ की छाल, पित्तपापरा, कटुकी, देवदार, अमलतास का गुड़, काला अंगूर, और नागरमोथा। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कूट ले और इसका कवाथ बना लें। यह कवाथ सुबह और शाम दोनों समय रोगी को पिलाने से रुगदाह सन्निपात और महाज्वर (तीव्र बुखार) के वेग को शांत करता है।
चित्तविभ्रम सन्निपात के लक्षण
चित्तविभ्रम सन्निपात के रोगी गाता है, नाचता है, हंसता है, बकता है, विकृत तरीके से देखता है, मोहित हो जाता है, जलन, व्यथा, भय से पीड़ित, सांस की गति तेज, भ्रम, मद, और बुखार से पीड़ित होता है। ये सभी लक्षण इस बीमारी के हैं।
उपाय
ब्राह्मी, बच, लाजवंती, त्रिफला, कटुकी, बड़ी अतीबला की जड़, अमलतास का गुड़, निम् की अंदरूनी छाल, नागरमोथा, जंगली चिचोण्डा, काला अंगूर, लाल शेवरा, चट्टा की घास, बंगकटिया, बड़ी कटेरी, मालवी गोखरू, बेल, अरणी, श्योनाक, भद्रपर्णी, और पाढ़ल की जड़। इन सभी औषधियों को बराबर भाग में लेकर मोटा मोटा सा कूट ले फिर इसका कवाथ बना लें। इस कवाथ को रोगी को सुबह और शाम दोनों समय पिलाए इससे चित्तविभ्रम सन्निपात दूर हो जाता है। यह कवाथ रुगदाह सन्निपात को भी ठीक करता है।
कर्णिक सन्निपात के लक्षण
कर्णिक सन्निपात के रोगी को कान की जड़ में तेज दर्द और सूजन, स्वर बैठना, बहरापन, सांस लेने में तकलीफ, बकवा, जलन, पसीना, खांसी, दमा और कान की जड़ में सूजन-शूल होती है। इस तरह के लक्षण कर्णिक सन्निपात रोग में देखे जाते हैं। इस तरह का सन्निपात कष्टसाध्य (मुश्किल से मिटने वाला) होता है।
उपाय
रासना, अश्वगंधा, नागरमोथा, बंगकटिया , भारंगी, कटुकी, पोहकर मूल, और बच। इन सभी औषध को समान मात्रा ले और कूट के फिर कवाथ बना लीजिए। इस कवाथ को काकराशींगी और हरड़ के साथ दिन में दो बार सुबह-शाम पीने से कर्णिक सन्निपात ठीक हो जाता है।
हल्दी, हिंगोट की जड़, सेंधा नमक, दारूहल्दी, देवदार और इन्द्रायन की जड़। इस सभी औषध को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इस चूर्ण को आंक के दूध में मिलाके कान की जड़ में लगाने से कर्णमूल (कान की जड़) का दर्द मिट जाता है।
कंठकुब्ज सन्निपात के लक्षण
कंठकुब्ज के रोगी की आवाज ऐसी हो जाती है मानो वह सैकड़ों अनाज के नोक से लिपटी हो, सांस की तकलीफ बढ़ जाती है, बकवा, अरुचि, जलन, शरीर में दर्द, मोह, कंपकंपी, प्यास, दाढ़ी में जकडन, दर्द सिर। यह सभी लक्षणे कंठकुब्ज सन्निपात में पाए जाते है। इस प्रकार का सन्निपात कष्टसाध्य (मुश्किल से मिटने वाला) है।
उपाय
काकराशिंगी, चीता, हरड़ की छाल, अडुसा, कर्चुर, हरा चिरायता, भारंगी, हल्दी, बंगकटिया, पोहकर मूल, नागरमोथा, कुडॉ की छाल, इंद्रजौ, कटुकी, और काली मिर्च। इन सभी औषध समान रूप से लेके कूट ले।
इस चूर्ण से बना काढ़ा (कवाथ) दिन में दो बार सुबह-शाम लगातार आठ दिनों तक नियमित रूप से कंठकुब्ज सन्निपत को नष्ट करता है, जिसमें जलन, मोह, अरुचि, दमा, आफरा, गले का दर्द, खांसी और अभिन्यास (एक प्रकार का सन्निपात जिसमें नींद नहीं आती, शरीर कांपता है, और इंद्रियाँ ढीली हो जाती हैं), आदि शामिल हैं।
वजन कम करना चाहते हैं?
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सन्निपात पैकी साध्य व असाध्य
संधिक सन्निपात साध्य (इलाज से ठीक होने वाला) है।
तंद्रिक, चित्तविभ्रम, कर्णिक, जिव्हक, और कंठकुब्ज, यह पांच प्रकार के सन्निपात कष्टसाध्य (इलाज करने पर भी मुश्किल से ठीक होने वाला) हैं।
रक्तष्टिवी, भुग्ननेत्र, शीतांग, प्रलापक, अभिन्यास, और अंतक ये छह प्रकार के सन्निपात असाध्य (लाइलाज) हैं।
सभी सन्निपात के उपाय
1 रसोन्त, पिपली, काली मिर्च, बच, श्योनाक के बीज, और सेंधा नमक। यह सभी औषध बराबर मात्रा में लेकर गोमूत्र में बहुत बारीक कूट लें। इसे आंखों में लगाने से सभी तरह के सन्निपात के उपद्रव से राहत मिलती है।
2 काली मिर्च, महुआ, सेंधा नमक, चीता, कायफल, और पिपली। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर बहुत बारीक पीस ले फिर इसे गर्म पानी में मिलाकर इस की भाप से नस्य लेने से त्रिदोषजन्य सन्निपात ठीक हो जाता है।
(3) चिंतामणी रस
आठ प्रकार के ज्वर को नष्ट करने के उपाय
शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध अभ्रक भस्म, शुद्ध ताम्बेश्वर (तांबे की भस्म), सौंठ, काली मिर्च, पीपली, हरड़, बेहेड़ा, आंवला और शुद्ध जमालगोटा। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर कुकडवेल के पत्तों के रस में दो प्रहर तक गूँधना और फिर धूप में सुखा ले। सूखने के बाद इस चूर्ण को कपड़े से छान लें।
इस औषधि को एक या दो रति मात्रा में उचित अनुपान के साथ रोगी को पीलाने से सभी आठ प्रकार के ज्वर (बुखार) नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा पेट का उदरशूल, अपच, हिचकी, हलीमक (पीलिया जैसा एक रोग), और अमवायु भी नष्ट होते हैं। इस औषधि को “चिंतामणी रस” कहते हैं।
(4) मृत संजीवनी गुटिका
1 2 टांक शुद्ध पारा
2 2 टांक शुद्ध गंधक
3 1 टांक शुद्ध बचनाग
4 4 टांक काली मिर्च
(1 टांक = 4.4 ग्राम)
सबसे पहले पारा और गंधक को पीस लें (पारा-गंधक की कज्जली बना ले), फिर उसमें बचनाग और काली मिर्च मिलाकर अच्छी तरह गूंद लें। अच्छी तरह गूंदने के बाद इसे ब्राह्मी की एक भावना दें, फिर एक भावना चीता के रस की दें और एक रति वजन की गोलियां बना लें।
अदरक के रस के साथ एक गोली का सेवन करने से सन्निपात, बेहोशी, आमवायु, वातशूल, शीतज्वर, जलन, विषमज्वर, मंदाग्नि, और अरुचि आदि अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। यह गोली मरते हुए रोगी को भी एक बार आराम देने वाली है। इस औषधि को “मृत संजीवनी गुटिका” कहते हैं।
(5) कालारि रस
1 12 मासा शुद्ध पारा
2 20 मासा शुद्ध गंधक
3 12 मासा बचनाग
4 40 मासा पीपली
5 20 मासा जायफल
6 5 मासा काली मिर्च
7 12 मासा अकरकरा
8 16 मासा लौंग
9 12 मासा धतूरा के बीज
10 12 मासा शुद्ध टंकण भस्म
(1 मासा = 0972 ग्राम)
सबसे पहले पारे और गंधक की कजली बना लें। उसके बाद इस काजली में दूसरे सभी औषधिया को भी बारीक कूट के मिला ले और 3 दिन तक अच्छे से गूंथ लें. फिर इसकी एक या दो रति की गोलियां बना लें।
इस औषधि की एक या दो गोली लेकर उचित अनुपान के साथ सेवन करने से, सूंघने से (नस्य लेने से) या मालिश करने से वायु रोग और सभी प्रकार के सन्निपात ठीक हो जाते हैं। इस औषधि को “कालारि रस” कहते हैं।
मासिक धर्म की समस्याए
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प्रदर – सफेद पानी
योनि से सफेद स्राव होना, ये प्रदर है। यह रोग विवाहित या अविवाहित किसी को भी हो सकता है। जानिए इलाज इसकी पूरी जानकारी के साथ।
(6) त्रिपुरभैरव रस
1 4 भाग सौंठ
2 4 भाग काली मिर्च
3 3 भाग शुद्ध टंकण भस्म
4 1 भाग शुद्ध बचनाग
इस औषध को बारीक पीसकर नींबू के रस में 3 दिन तक गूंथ लें। फिर इस औषधि को अदरक के रस में 5 दिन और पान के पत्ते के रस में 3 दिन तक गूंथ लें। फिर १ रत्ती वजन के बराबर गोलियां बना लें।
इन 6 गोलियों को सही अनुपान के साथ या अदरक के रस के साथ सेवन करने से सन्निपात, वायु, सिर दर्द, सर्दी, और पेट का हर रोग दूर हो जाता है। इस औषधि को “त्रिपुरभैरव रस” कहा जाता है।
7 संज्ञाकरण
शुद्ध बचनाग, कटुकी, सेंधा नमक, बच, लहसुन, बड़ी कटेरी, कायफल, मुलेठी, और हिज्जल। इस सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और इसको आंक के दूध का 3 पुट दे, फिर मछली के पित्त की 3 भावना देके फिर अच्छी तरह से गूंद लें।
इस औषधि की 1 या 2 रत्ती वजन के अनुसार लेकर नाक में नाल के माध्यम से नस्य देने से कफ, वायु, अपस्मार, नजला, कान, आंखों के रोग और सन्निपात दूर हो जाते हैं और याददाश्त तेज हो जाती है। इस औषधि का नाम “संज्ञाकरण” है।
(1 रत्ती = 0.182 ग्राम)
(8) ब्रह्मास्त्र रस
1 3 टांक शुद्ध पारा की भस्म
2 3 टांक शुद्ध गंधक
3 6 टांक शुद्ध बचनाग
4 12 टांक काली मिर्च
(1 टांक = 4.4 ग्राम)
उपरोक्त जड़ी बूटियों को लें और अच्छी तरह से गूंद ले। फिर सुअर, मोर और भैंसा की पित्त के 7-7 भावना दें। फिर इस औषधि को अग्निशिखा (कलिहारी), जंगली चिचोण्डा और सूरजमुखी के रस में क्रमश: गूंद लें। फिर २१ पुट अदरक के रस की दें।
जब यह औषध सूख जाए तब इसकी 2 रत्ती को दही चावल के अनुपान के साथ सेवन करें और साथ साथ ठंडा उपचार भी करें। इस औषधि के सेवन से सन्निपात ज्वर नष्ट हो जाता है और पेट के सभी रोग और शरीरमे उदभव शूल दूर हो जाता है। इस औषधि को “ब्रह्मास्त्र रस” कहा जाता है।