स्तनपान के बारे में
गर्भावस्था के दौरान स्त्री जो भोजन करती है उसका मीठा रस सार रूप में पूरे शरीर में फैल जाता है। प्रसव के बाद यह सार पूरे शरीर से महिला के स्तन में आता है। यही सार स्तनपान है। प्रसव के बाद हृदय की धमनियां (नब्ज) खुल जाती हैं और दूध का स्राव करवाती हैं।
बच्चे को जन्म देने के बाद जो महिला मां बनी वह बच्चे को अपार स्नेह देती है। यही स्नेह माँ के दूध के प्रवाह का कारण है। जब शिशु माँ के स्तन को छूता है, तो माँ उसके स्पर्श, दृष्टि और स्मरण से अभिभूत हो जाती है और उसके स्तन से दूध छूट जाता है।
शिशु के प्रति प्रेम की कमी, भय, शोक, क्रोध, बहुत अधिक भूखे रहना और दूसरा गर्भ धारण करने से स्त्री का स्तनपान कम हो जाता है।
स्तनपान बढ़ाने के उपाय
आवश्यकता के बावजूद महिला को अक्सर स्तनपान कम हो जाता है। तब स्तनपान बढ़ाने का उपचार करना चाहिए।
स्तनपान बढ़ाने के लिए एक महिला को भूरा चावल, लाल चावल और गेहूं से बने उत्कृष्ट भोजन का सेवन करना चाहिए।
जिस महिलाओं को स्वीकार्य हो उसको मांस-मांस के रस, मछली आदि का आहार के साथ स्तनपान बढ़ाने के उपाय करना चाइए।
दूधी भोपला, नारियल – सुकाया हुआ नारियल, सिंघाड़ा, शतावरी, विदारीकंद और लहसुन के प्रयोग से और खुश रहने से महिला के स्तनपान में वृद्धि होती है।
लाल चावल लेके दूध में पिसके इसका सेवन करनेसे महिला के स्तनों में काफी दूध आता है।
स्तनपान बढ़ाने के लिए महिला को विदरीकंद का जूस पीना चाहिए या विदारीकंद का चूर्ण बनाकर गाय के दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
स्तनपान बिगड़ने के कारण
बहुत अधिक तीखा, बहुत खट्टे खाद्य पदार्थ, बहुत नमकीन और भारी भोजन के साथ-साथ अनुचित परहेज से मां के शरीर में दोषे कुपित हो सकते हैं, जिससे स्तनपान खराब हो सकता है।
महिला के शरीर में अनुचित परहेज और आहार से, वात, पित्त और कफ दोष को विकृत करता है और स्तनपान को खराब करता है। इस दूध के सेवन से शिशु का स्वास्थ्य खराब होता है और उसके शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
वात से बिगड़ा हुआ दूध कसैला जैसा स्वाद देता है और पानी में डुबोने पर पानी पर तैरता है।
पित्त से बिगड़ा हुवा माँ के दूध का स्वाद खट्टा और तीखा होता है। इस दूध के पीले कण बन जाता है जब वो पानी में घुल जाते हैं।
कफ़ से बिगड़ा हुआ दूध पानी में डूबा रहता है और चिपचिपा होता है।
यदि किन्हीं दो दोषों के कारण स्तनपान बिगड़ा हुआ हो तो उन दो दोषों के लक्षण दिखाई देते हैं और स्तनपान में जो तीनों दोषों के कारण खराब है, तीनों दोषों के लक्षण दिखाई देते हैं।
बिगड़ा हुवा स्तनपान को सुधार के उपाय
बिगड़ा हुआ स्तनपान को ठीक करने के लिए माताओं को मुंग का पानी पीना चाहिए।
भारंगी, देवदार, बच और अतीस ये सभी जड़ी-बूटियां समान मात्रा में लेकर उसे पीसके पीने से खराब दूध साफ हो जाता है।
कवाथ
कालीपाट, मोरवेल, (वर्तमान में मोरवेल उपलब्ध नहीं है, इसलिए पिलु का प्रयोग करें), नागरमोथा, चिरायता, देवदार, सौंठ, इन्द्रजौ, अनंतमूल और कटुकी को बराबर मात्रा में लेकर इसका कवाथ बनाकर पीनेसे स्तनपान शुद्ध होता है।.
कवाथ २
परवल, नीम, कठमूली, देवदार, कालीपाट, मोरवेल (पिलु), गिलोय, कटुकी, और सौंठ को बराबर मात्रा में लेकर कवाथ बनाकर पीनेसे मां का दूध को शुद्ध होता है।
स्तनपान जो पानी में एकरूप होता हो, दूध का रंग नहीं बदलता हो , पानी में गिरने से रेशेदार न होता हो,और रंग सफेद, पतला और ठंडा होता हो, ऐसा माँ का दूध शुद्ध मानना।
धात्री रखने के बारे में
जब किसी कारणवश मां स्तनपान कराने के लिए धात्री रखनेके लिए मजबूर होती है, तब धात्री का गुण दोष को ध्यान में रखें।
माँ को चाहिए कि वह अपनी उम्र की महिला (अपनी बिरादरी, जाति, उम्र आदि को ध्यान में रखते हुए) को जो की एक अच्छे स्वभाव वाली, खुशमिजाज, हंसमुख, बालक को बहुत प्यार करने वाली और बालक का बहुत देखभाल करने वाली हो उन्ही स्त्री को धात्री के रूप में चुने।
यह वांछनीय है कि जिस महिला को धात्री के रुपमे रखा हो, वह पुत्रवती, बहुत ज्यादा दूध धारण करने वाली, खुद (माँ) के प्रति विनम्र, कम मिलने पर भी संतुष्ट होने वाली होनी चाहिए।
धात्री एक अच्छा परिवार से, एक कुलवान परिवार से, कपट न करने वाली , बच्चे के ऊपर अपने बेटे के समान मूल्य रखने वाली, और उत्कृष्ट विचारों को रखने वाली होना बहुत ही वांछनीय है।
अवांछित धात्री
दु:ख, बेचैनी, भूख से तड़पती, परिश्रम से थकी हुई, रोग आदि से ग्रसित स्त्री के लक्षण हो उस महिला धात्री के रूप में अवांछनीय है।
जो स्त्री बहुत लंबी या बहुत नीची हो, बहुत मोटी हो या बहुत पतली हो, गर्भवती हो, बुखार से ग्रस्त हो और जिनके स्तन लंबे और ऊंचे हों, उस स्त्रीको धात्री के रुपमे नहीं रखा जाना चाहिए।
जो महिला परहेज न करे ,महिला जो अपच होने पर भी आहार करती रहती हो, क्षुद्र काम में आसक्त रहती हो, और दुःख से पीड़ित हो, इसी महिला को धात्री की जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि ऐसी धात्री से स्तनपान करने से बच्चा बीमार हो जाता है।
धात्री न मिलने पर क्या करे
नवजात शिशु के स्वभाव में दूध ही उसे भाता है। इसलिए यदि मां को दूध नहीं आता है और धात्री भी नहीं मिलती है, ऐसे समय में गाय के दूध या बकरी के दूध का सेवन विवेकपूर्वक (बच्चे की क्षमता) करवाना चाहिए।
बच्चे का अन्नप्राशन (बच्चे को अन्न देना)
छठे या आठवें महीने में बच्चे को शास्त्र विधान से खिलाएं और धीरे-धीरे इसे बढ़ाएं।
बच्चे का पालन
बच्चे को खुशी-खुशी लेके गोदमे सुलाएं ताकि बच्चे को कोई बाधा न सताए। बच्चे को कभी भी तिरस्कृत न करे।
जब बच्चा सोया हो तब उसे न जगाएं और जब तक वह बैठने के लिए लायक न हो जाए तब तक उसे न बीठाएं।
बच्चे को खींचके गोदमे न ले और न ही उसे जल्दी से सुलाएं। बच्चे को बिना आवश्यकता और जरुरत रुलाए नहीं।
हमेशा बच्चे को प्रशंसा देना और उसके दिमाग का अनुकरण करना। उसकी उचित इच्छाओं का पालन करना। इसे ऊंचे स्थानों से बचाएं रखे।
चीजें जो बच्चे को फायदा पहुंचाती हो
तेल से बच्चे की धीरे-धीरे मालिश करें और मालिश के तेलमे बेहतरीन जड़ी-बूटियां मिलाएं। आंखोमे अंजन लगाए, मुलायम और नरम कपड़े पहनाए। कोमल पदार्थों के द्वारा लेपन करना।