गर्भवती महिला को माँ और बच्चे के पूर्ण लाभ और अच्छे स्वास्थ्य के लिए नियमों का पालन करना चाहिए।
गर्भवती महिला के लिए शुभ कर्मों, अच्छे विचारों, शुभ आचरण आदि का ध्यान रखना और उचित आहार के साथ नियमों का पालन करना सही माना जाता है। यहां हम आचरण और व्यवहार के नियमों के बारे में जानेंगे।
बिना किसी कठिनाई के खुशी से जन्म देना और मां और बच्चे दोनों को स्वस्थ अच्छा रहे ये ही वांछनीय है।
गर्भावस्था के दौरान हर मास दरमियान जो आहार लेना होता है इसके बारेमे जानेंगे और साथ साथ ये भी जानेंगे की किसी भी प्रकारकी आपत्ति के बिना शांति से प्रसव हो इसके लिए क्या करना चाइए इसका इलाज क्या है ये यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
जिस तरह गर्भवती महिला को हर महीने अपने आहार में बदलाव करने की जरूरत होती है, उसी तरह पहले महीने से ही भ्रूण की सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। निःसंदेह यदि इन उपायों को प्रसव के महीने तक किया जाए तो गर्भस्थ शिशु की रक्षा होती है।
यहां गर्भावस्था के पहले महीने से लेकर बच्चे के जन्म के महीने तक हर महीने किए जाने वाले आयुर्वेदिक उपचार दिए गए हैं जिनका लाभ मां खुद के साथ साथअपने बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए उठा सकती है।
बच्चे के जन्म के दौरान दर्द होना सामान्य है लेकिन अत्यधिक दर्द अवांछनीय है। अत्यधिक दर्द से गर्भवती महिला की जान को खतरा होता है। प्रसव के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है।
हालांकि, प्रसव के दौरान अत्यधिक दर्द का अनुभव न करने के लिए, आयुर्वेद में बताए गए कुछ उपाय यहां दिए गए हैं जो कुछ गर्भवती महिलाओं के लिए सहायक हो सकते हैं।
प्रसव से पहले के दिन गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन दिनों के दौरान गर्भवती महिला के दिमाग में अनगिनत विचार आते जाते रहते हैं, मुख्य रूप से बच्चे के जन्म की अस्पष्टता के बारे में।
लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई अघटित न हो और प्रसव सुखमय रहे।